Gyanvapi Mosque Case : अब काशी-मथुरा ने तैयार की सियासत की नई जमीन, कोर्ट के रुख पर सरकार व संघ की नजर


सार

काशी-मथुरा इस दायरे से बाहर होने के बावजूद उपासना स्थल कानून को वापस लेने के लिए संघ परिवार अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है। इसका कारण पूछने पर स्वामी जितेंद्रानंद कहते हैं कि सवाल केवल काशी-मथुरा का नहीं है। हिंदुओं के ऐसे 3000 पूजा स्थल हैं, जिन्हें जमींदोज किया गया। यह कानून हिंदुओं के अधिकारों का गला घोंटने के लिए लाया गया।

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अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा ने उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में हिंदुत्व की सियासत की नई जमीन तैयार कर दी है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के दावे और स्थानीय अदालत द्वारा उस क्षेत्र को सील करने के आदेश के बाद पूजा स्थलों की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति बरकरार रखने के लिए 1991 में बने उपासना स्थल कानून की प्रासंगिकता पर नए सिरे से बहस शुरू हुई है।

काशी और मथुरा के मामले फिलहाल अदालत के विचाराधीन हैं। ऐसे में सरकार, संघ और संत समाज की नजरें फिलहाल अदालत के रुख पर टिकी हैं। स्थानीय अदालत का रुख फिलहाल हिंदू पक्ष की तरफ है, इसलिए सरकार और संघ उपासना स्थल कानून मामले में कदम बढ़ाने पर जल्दबाजी में नहीं है।

हालांकि अखिल भारतीय संत समिति का दावा है कि उपासना स्थल कानून के दायरे में काशी और मथुरा है ही नहीं। बावजूद इसके समिति इस कानून को खत्म करने की मांग कर रही है। वहीं संघ इस कानून को खत्म करने के लिए अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है।

संघ व सरकार के बीच कई बार मंथन
काशी और मथुरा मामले में सुनवाई में तेजी के बाद सरकार और संघ के बीच कई बार विचार-विमर्श हुआ है। मार्च में गुजरात में हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा और अप्रैल में देहरादून में चिंतन शिविर में विशेष सत्र इन दोनों मामलों पर चर्चा हुई थी। इस दौरान कोर्ट का रुख भांपने के बाद उपासना स्थल कानून को वापस लेने संबंधी अभियान चलाने पर भी विमर्श हुआ था। उस दौरान सरकार और भाजपा के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

काशी-मथुरा उपासना स्थल कानून के दायरे में नहीं 
संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रा नंद सरस्वती कहते हैं कि उपासना स्थल कानून का इससे कोई लेना-देना नहीं है। बकौल सरस्वती उपासना स्थल विशेष उपबंध कानून की धारा चार (3ए) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऐसे पूजा स्थल जो प्राचीन, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल हैं, जो प्राचीन स्मारक-पुरातात्विक स्थल अवशेष अधिनियम 1958 के दायरे में आता है। इसलिए काशी और मथुरा उपासना स्थल कानून के दायरे में नहीं आते। दोनों मामले में कोर्ट का निर्णय ही सर्वोपरि होगा।

कानून वापस लेने की मांग क्यों?
काशी-मथुरा इस दायरे से बाहर होने के बावजूद उपासना स्थल कानून को वापस लेने के लिए संघ परिवार अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है। इसका कारण पूछने पर स्वामी जितेंद्रानंद कहते हैं कि सवाल केवल काशी-मथुरा का नहीं है। हिंदुओं के ऐसे 3000 पूजा स्थल हैं, जिन्हें जमींदोज किया गया। यह कानून हिंदुओं के अधिकारों का गला घोंटने के लिए लाया गया। सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है। सवाल है कि जब अनुच्छेद 370 खत्म हो सकता है तो यह कानून क्यों नहीं खत्म हो सकता?

यह आनंद का विषय है। शिवलिंग दोनों पक्षों की मौजूदगी में मिला है। यह साफ हो गया है कि वहां 1947 में भी मंदिर था। उम्मीद है कि देश इसे स्वीकार करेगा। अब शासन का दायित्व है कि वहां छेड़छाड़ न हो। हम राम मंदिर निर्माण तक अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा करेंगे। भावी रणनीति के लिए 11-12 जून को हरिद्वार में मार्गदर्शक मंडल की बैठक में चर्चा होगी। – आलोक कुमार, कार्याध्यक्ष, विहिप

विस्तार

अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा ने उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में हिंदुत्व की सियासत की नई जमीन तैयार कर दी है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के दावे और स्थानीय अदालत द्वारा उस क्षेत्र को सील करने के आदेश के बाद पूजा स्थलों की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति बरकरार रखने के लिए 1991 में बने उपासना स्थल कानून की प्रासंगिकता पर नए सिरे से बहस शुरू हुई है।

काशी और मथुरा के मामले फिलहाल अदालत के विचाराधीन हैं। ऐसे में सरकार, संघ और संत समाज की नजरें फिलहाल अदालत के रुख पर टिकी हैं। स्थानीय अदालत का रुख फिलहाल हिंदू पक्ष की तरफ है, इसलिए सरकार और संघ उपासना स्थल कानून मामले में कदम बढ़ाने पर जल्दबाजी में नहीं है।

हालांकि अखिल भारतीय संत समिति का दावा है कि उपासना स्थल कानून के दायरे में काशी और मथुरा है ही नहीं। बावजूद इसके समिति इस कानून को खत्म करने की मांग कर रही है। वहीं संघ इस कानून को खत्म करने के लिए अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है।

संघ व सरकार के बीच कई बार मंथन

काशी और मथुरा मामले में सुनवाई में तेजी के बाद सरकार और संघ के बीच कई बार विचार-विमर्श हुआ है। मार्च में गुजरात में हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा और अप्रैल में देहरादून में चिंतन शिविर में विशेष सत्र इन दोनों मामलों पर चर्चा हुई थी। इस दौरान कोर्ट का रुख भांपने के बाद उपासना स्थल कानून को वापस लेने संबंधी अभियान चलाने पर भी विमर्श हुआ था। उस दौरान सरकार और भाजपा के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

काशी-मथुरा उपासना स्थल कानून के दायरे में नहीं 

संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रा नंद सरस्वती कहते हैं कि उपासना स्थल कानून का इससे कोई लेना-देना नहीं है। बकौल सरस्वती उपासना स्थल विशेष उपबंध कानून की धारा चार (3ए) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऐसे पूजा स्थल जो प्राचीन, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल हैं, जो प्राचीन स्मारक-पुरातात्विक स्थल अवशेष अधिनियम 1958 के दायरे में आता है। इसलिए काशी और मथुरा उपासना स्थल कानून के दायरे में नहीं आते। दोनों मामले में कोर्ट का निर्णय ही सर्वोपरि होगा।

कानून वापस लेने की मांग क्यों?

काशी-मथुरा इस दायरे से बाहर होने के बावजूद उपासना स्थल कानून को वापस लेने के लिए संघ परिवार अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है। इसका कारण पूछने पर स्वामी जितेंद्रानंद कहते हैं कि सवाल केवल काशी-मथुरा का नहीं है। हिंदुओं के ऐसे 3000 पूजा स्थल हैं, जिन्हें जमींदोज किया गया। यह कानून हिंदुओं के अधिकारों का गला घोंटने के लिए लाया गया। सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है। सवाल है कि जब अनुच्छेद 370 खत्म हो सकता है तो यह कानून क्यों नहीं खत्म हो सकता?

यह आनंद का विषय है। शिवलिंग दोनों पक्षों की मौजूदगी में मिला है। यह साफ हो गया है कि वहां 1947 में भी मंदिर था। उम्मीद है कि देश इसे स्वीकार करेगा। अब शासन का दायित्व है कि वहां छेड़छाड़ न हो। हम राम मंदिर निर्माण तक अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा करेंगे। भावी रणनीति के लिए 11-12 जून को हरिद्वार में मार्गदर्शक मंडल की बैठक में चर्चा होगी। – आलोक कुमार, कार्याध्यक्ष, विहिप



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