हरदोई. हिरण्यकश्यप हरिद्रोही था, इसलिए इस नगरी को हरिद्रोही कहा जाता था, जो आज हरदोई के नाम से जाना जाता है. वहीं यह भी कहा जाता है कि यहां हरि ने दो बार अवतार लिया था. इसलिए हरिद्वई के नाम से जाना गया जो अब हरदोई हो गया. यहां यह भी प्रचलित है कि हिरण्यकश्यप भगवान को शत्रु मानता था, इसलिए उसकी राजधानी में कोई राम का नाम नहीं ले सकता था. इसके लिए उसने ‘र’ शब्द के उच्चारण पर ही प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में आज भी हरदोई के कई हिस्सों में लोगों की बोलचाल की भाषा में मुह से ‘र’ शब्द नहीं निकलता है. कई हिस्सों में आज भी लोग हरदी को हददी, उरद को उद्द व बर्ध को बद्ध बोलते हैं.
हरदोई में ही हुआ था होलिका का दहन
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले को लेकर माना जाता है कि आधुनिक होली के बीज इसी शहर से पड़े थे. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्यप की नगरी के नाम से जाना जाता था. हां, वहीं हिरण्यकश्यप जो खुद को भगवान से बड़ा बताने लगा था. सबसे पहले ये जान लीजिए की हरदोई नाम कैसे पड़ा. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु. हिरण्यकश्यप भगवान को बिलकुल नहीं मानता था. इसीलिए हिरण्यकश्यप की राजधानी का नाम हरी द्रोही था, जो आज का हरदोई नाम से जाना जाता है.
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प्राचीन काल से ही मान्यता है हरदोई जिले में कुंड के पास ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जलकर राख हुई थी और उसके बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से शत्रुता और उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्यप पुत्र प्रह्लाद से नाराज रहते थे. उन्होंने अपने बेटे की ईश्वरीय आस्था से नाराज होकर कई बार मरवाने की कोशिश की लेकिन सफल न हुए. हिरणकश्यप की बहन होलिका आग में जल नहीं सकती थी, और हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को बुलाया और प्रह्लाद का वध करने के लिए कहा.
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होलिका की राख उड़ाकर मनाया था उत्सव
मंदिर के पुजारी रामविलास तिवारी बताते हैं कि हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से बेटे प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए. लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानी होलिका जब प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठीं तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ गई, जिसके बाद होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रह्लाद बच गए. होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरण्यकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उत्सव मनाया. कहा जाता है मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से शुरू हुई.
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