रायपुर. तेलीबांधा तालाब (मरीन ड्राइव) को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का दिल कहा जाता है. इसी ‘दिल’ के बगल से जल विहार कॉलोनी जाने के रास्ते में ‘नुक्कड़ टी-कैफे’ के बोर्ड पर उकेरी गई कलाकारी आकर्षित करती है. अंदर जाने पर रंगों की कलाकारी, चित्रकारी, देशी अंदाज आपको यहां कुछ पल ठहरने को मजबूर करते हैं. बिलिंग काउंटर पर सजी ढेर सारी किताबें, लाइब्रेरी रूम युवा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे की किताब ‘मुसाफिर कैफे’ के पात्र ‘चंदर-पम्मी’ के कैफे की याद दिलाते हैं. एक पूरी दीवार पर पर्चियां टंगी हैं जिस पर यहां आने वाले मेहमानों के अनुभव लिखे हुए हैं.
टेबल पर एक बॉक्स में पेंसिल और खाली पर्चियां हैं और मेन्यू कार्ड पर संकेतों को समझने और सांकेतिक भाषा में ही बात करने के चित्र बने हुए हैं. मेन्यू कार्ड में खाने और पीने के कई विकल्प हैं, लेकिन चाय की अलग-अलग वैरायटी ध्यान खींचती है. इतने में पीली शर्ट पहने एक लड़का आता है और इशारों में पूछता है क्या लेंगे? मैं कुछ बोलने की कोशिश करता हूं तो टेबल पर रखे कागज और पेंसिल की ओर इशारा करते हुए लिखने का संकेत देता है. मैंने कागज पर गुड़ की चाय लिखकर दे दिया. ये सब देखकर अंदाजा लग जाता है कि यहां बहुत कुछ अलग है. इसी बीच मेरी नजर सीढ़ी की दीवार पर चित्रकारियों के बीच टंगी एक तस्वीर पर पड़ी, जिसमें एक युवा को पुरस्कृत करते राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नजर आ रहे थे. वही युवा मुझे बिलिंग काउंटर पर नजर आया. मैं सवालों भरी नजर से उसे देखने लगा.
क्यों खास है नुक्कड़?
नमस्कार, मैं प्रियांक, शायद कुछ कहना चाह रहे हैं आप? मैंने अपना परिचय दिया और कहा,”हां, मुझे इस कैफे के बारे में कुछ जानना है, आप बताएंगे?” इतने में टेबल पर ऑर्डर की हुई गुड़ की चाय आ गई थी. मैंने उसे 2 कप में सर्व करने का इशारा किया और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. प्रियांक ने बताया, “हमारे कैफे में 80 प्रतिशत से ज्यादा स्टाफ ऐसा है, जो आज भी सामाजिक विसंगतियों का सामना कर रहा है. इस कैफे में आने वाले मेहमानों से ऑर्डर लेकर उन्हें सर्व करने और काउंटर पर बिलिंग तक की जिम्मेदारी मूक-बधिर युवाओं के जिम्मे है. किचन की बागडोर शेफ के साथ ही थर्ड जेंडर संभाल रहे हैं. मूक-बधिर, किन्नर समुदाय के साथ ही मानसिक रूप से दिव्यांग लोगों को यहां रोजगार में प्राथमिकता दी जाती है.”
गांव से मिला टर्निंग प्वाइंट
चाय की चुस्की लेते हुए मैंने कहा, “नुक्कड़ का इंटिरियर गांव की परंपरा रहन-सहन की याद दिलाता है.” इस पर प्रियांक कहते हैं, “साल 2007 में भिलाई के शंकराचार्य कालेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रानिक्स एवं टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. फिर कुछ समय दिल्ली में टेक महिंद्रा में नौकरी करना हुआ. वहां से पुणे गया. करीब पांच साल आईटी सेक्टर की अलग-अलग कंपनियों में काम किया, लेकिन कहीं न कहीं एक डिस्कनेक्ट-सा महसूस होता था. लगता था कुछ छूट रहा है. इसके बाद 2011 में आईसीआईसीआई फाउंडेशन का ‘यंग इंडिया फेलोशिप प्रोग्राम’ करने का अवसर मिला.”
प्रियांक कहते हैं, “इन प्रोजेक्ट्स में अलग-अलग प्रदेशों व गांवों में स्थित स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर काम करना होता था. इस दौरान 14 महीनों में गुजरात, ओडिशा, राजस्थान के गांवों में काम करना एक मायने में जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा. मैं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को करीब से जान सका कि वह कैसे काम करती है. युवाओं से संपर्क कहां टूट जाता है. इस एक्सपोजर के बाद ही कुछ अपना करने की एक रूपरेखा बननी शुरू हुई.”
मेहमान असहज न हों, इसलिए नियुक्ति से पहले ट्रेनिंग
प्रियांक कहते हैं, “संकेतों की भाषा समझना और समझाना आसान नहीं है. आमतौर पर किन्नर समुदाय के भी कई लोग असहज महसूस करते हैं. हमारे यहां आने वाले मेहमान परेशान न हों, इसलिए हमारे सभी कर्मचारियों को सांकेतिक भाषा में काम करना सीखना होता है, जिसकी औपचारिक ट्रेनिंग हम देते हैं. साथ ही एक्सपेरेंशियल ऑन जॉब ट्रेनिंग, जो उन्हें उनके कार्यों के लिए तैयार करती है, दी जाती है. समय समय पर कौशल विकास से जुड़ी, सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग भी ट्रेनर्स द्वारा दी जाती है और ये सुनिश्चित किया जाता है कि हमारे टीम के साथी वक्त के साथ अपडेट और अपग्रेड हो रहे हैं. मेहमानों के लिए भी यहां समय की कोई पाबंदी नहीं है. वे चाहें तो बगैर कुछ खरीदे भी यहां समय बिता सकते हैं. हम चाहते हैं कि मेहमान यहां आएं, किताबें पढ़ें, गाना गाएं, म्युजिक सुनें, बातें करें और इत्मीनान से पल व्यतीत करें.”
8 सालों में 5 कैफे, 95 लाख तक का टर्नओवर
प्रियांक बताते हैं, “रायपुर में साल 2013 में एक छोटी सी दुकान से नुक्कड़ टी-कैफे की शुरुआत हुई. तब से अब तक हम रायपुर और भिलाई में 5 कैफे खोल चुके हैं. छत्तीसगढ़ के दो शहरों में और जल्द ही अन्य राज्यों और शहरों में प्रसार की योजना है. हमारे यहां 55 से 60 लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है, जिसमें से करीब 80 प्रतिशत विशेष समुदाय के लोग हैं.” प्रियांक कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से नुक्कड़ का औसतन सालाना टर्नओवर लगभग 80 लाख से 95 लाख रुपये तक का है.
राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित
छत्तीसगढ़ में नए प्रयोग के जरिए रोजगार का अवसर तैयार करने वाले प्रियांक पटेल को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिले हैं. दिसंबर 2021 में विश्व दिव्यांगता दिवस पर सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता का राष्ट्रीय पुरस्कार नुक्कड़ टी-कैफे को मिला. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों प्रियांक पटेल को सम्मानित किया गया. इसके बाद साल 2022 में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने प्रियांक को राजभवन में सम्मानित किया. छत्तीसगढ़ महिला व बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया ने भी प्रदेश में बेहतर नियोक्ता के तौर पर प्रियांक को सम्मानित किया.
अलग नहीं किया, बस अलग तरीके से किया
बातचीत लंबी हो रही थी और गुड़ चाय खत्म हो चुकी थी. प्रियांक ने कुल्हड़ चाय मंगाई और चर्चा का सिलसिला आगे बढ़ा. प्रियांक कहते हैं, “सोशल एंटरप्राइज ही देश का भविष्य है. भारत में मूक-बधिर और तृतीय लिंग समुदाय के लाखों लोग हैं, जिन्हें आज भी सामाजिक विसंगतियों का सामना करना पड़ता है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण भी बहुत सीमित उपलब्ध हैं. निजी उपक्रम रोजगार के मौके देने से कतराते हैं. हमने एक ऐसा मॉडल बनाने का प्रयास किया है जो समाज के वंचित वर्गों के लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास करता है. साथ ही समाज को इस समुदाय और इसकी क्षमताओं के बारे में एक सकारात्मक संदेश देता है.”
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प्रियांक कहते हैं, “सिर्फ किन्नर या मूक-बधिर ही नहीं हमारा प्रयास समाज के हर वंचित वर्ग के लिए सम्माननित रोजगार मुहैया कराना और उन्हें मजबूत करना है. जिससे समाज में उनकी उपस्थिति दर्ज हो. निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान और उपक्रम हमारे प्रयोगों से प्रेरणा लें और अपने संस्थानों में वंचित वर्गों के लिए रोजगार तय करें. ये संभव भी हो रहा है. हमसे प्रेरणा लेकर कैफे, इंडस्ट्रीज पार्क, डिलीवरी कंपनी, सुपर मार्ट और अन्य कुछ संस्थानों में अब मूक-बधिर और अन्य वंचित वर्ग के युवाओं को रोजगार दिया जा रहा है.” प्रियांक कहते हैं, “देखा जाए तो मैं एक टी कैफे या यूं कहें कि रेस्टोरेंट संचालित करता हूं. मैंने कुछ अलग नहीं किया, बस अलग तरीके से किया.”
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FIRST PUBLISHED : May 13, 2022, 13:28 IST