नई दिल्ली . पिछले कुछ महीनों में पेटीएम और ज़ोमैटो ने जिस तरह निवेशकों का दिवाला निकाला उससे निवेशक अभी तक उबर नहीं पाए हैं. पेटीएम ने अपने शेयर का इश्यू प्राइस 2150 रुपए प्रति शेयर तय किया था जो 9 फीसदी के घाटे के साथ 1950 पर खुला और तब से इसका गिरना लगातार जारी है. आज पेटीएम 530 रुपए के आस पास कारोबार कर रहा है. वहीं नज़दीकी भविष्य में इसके अपनी स्थिति में सुधार करने के आसार भी कम ही दिखाई देते हैं.
ऐसा ही हाल ज़ोमैटो का भी हुआ. हालांकि, ज़ोमैटो ने आईपीओ लिस्टिंग के समय अपने निवेशकों को निराश नहीं किया और पहले दिन आईपीओ प्राइस 76 रुपए प्रति शेयर से 66 फीसदी के उछाल के साथ 126 पर बंद हुआ. लेकिन अब ज़ोमैटो की सूरत भी लगभग पेटीएम जैसी ही हो गई है. फिलहाल यह शेयर 78 रुपए के करीब कारोबार कर रहा है. जिन निवेशकों ने शुरुआत में इस शेयर से पैसा निकाला वे ज़रूर अपनी किस्मत को सराह रहे होंगे.
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ऐसा हुआ क्यों?
इक्विटी मास्टर के सह-प्रमुख राहुल शाह कहते हैं कि यह दोनों ही कंपनियां जब अपना आईपीओ लाईं तो इनके पास मुनाफे के नाम पर कुछ नहीं था और ये दोनों घाटे वाली कंपनियां थी. पेटीएम को जहां पिछले 5 सालों में 2,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ वहीं ज़ोमैटो ने पिछले 4 साल में लगातार घाटे में रहते हुए 4,000 करोड़ रुपए गंवाए. इसके बावजूद इन कंपनियों ने अपना मूल्यांकन काफी ऊंचा रखा जो काफी बेतुका कदम था. गौरतलब है कि पेटीएम भारत का सबसे बड़ा आईपीओ लेकर आया था. यह बगैर नींव डाले एक ऊंची इमारत खड़ी करने जैसा था जिसका ढहना तय था.
कहां हुई निवेशकों से चूक
बकौल राहुल, निवेशकों ने एक बेहद साधारण नियम की अनदेखी की जिसकी बात ऊपर की गई है. कंपनी का आर्थिक इतिहास देखें बगैर निवेश किया गया. वह कहते हैं कि लोगों को कंपनियों के पिछले रिकॉर्ड को देखना चाहिए और इसे एक नियम में बदलना चाहिए. राहुल के अनुसार, कई बार हो सकता है कि पिछला रिकॉर्ड खराब होने के बावजूद कंपनी शेयर बाज़ार में अच्छा प्रदर्शन करे लेकिन यह केवल अपवाद ही होगा. हालांकि, आप अपवाद के बल पर अपना पोर्टफोलियो तैयार नहीं कर सकते हैं.
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