नई दिल्ली. बढ़ती महंगाई न सिर्फ आम लोगों को निचोड़ती जा रही है बल्कि देश के विकास में बाधा पैदा कर रही है. कच्चे तेल और कमोडिटीज की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में लगी आग से आने वाले समय में महंगाई में और तेजी की आशंका जताई जा रही है. महंगाई और बढ़ने से मांग में गिरावट आएगी जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटेगी.
इसे देखते हुए इन्वेस्टमेंट बैंक यूबीएस ने भारत के विकास दर अनुमान में कटौती कर दी है. यूबीएस ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. इससे पहले यूबीएस ने ग्रोथ रेट 7.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ग्लोबल हालात चिंताजनक बने हुए हैं. इस वजह से वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, एडीबी सहित तमाम वित्तीय संस्थाएं भारत के विकास दर में अनुमान कटौती कर चुकी हैं.
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अब तक का सबसे कम अनुमान
यूबीएस द्वारा लगाया गया 7 फीसदी का अनुमान अब तक का सबसे कम है. इससे पहले इसी महीने रिजर्व बैंक ने सबको चौंकाते हुए विकास दर अनुमान को घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया था. यूबीएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कमोडिटी की ऊंची कीमतें, ग्लोबल इकोनॉमी में सुस्ती और महंगाई बढ़ने से भारत की घरेलू मांग में गिरावट की आशंका है. आने वाले दिनों में ईंधन, फर्टिलाइजर, खाद्य तेल और खाद्य पदार्थों की कीमतों में और ज्यादा तेजी आने से लोगों की खरीद क्षमता प्रभावित होगी.
6.2 फीसदी रहेगी महंगाई दर
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में महंगाई का दबाव साफ तौर पर देखा जा रहा है. यह अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है. जबकि शहरी इलाकों का प्रदर्शन बेहतर है. यूबीएस को वित्त वर्ष 2022-23 में खुदरा महंगाई की औसत दर 6.2 फीसदी रहने की उम्मीद है. मार्च 2022 में खुदरा महंगाई की दर भड़क कर 17 महीने के उच्च स्तर 6.95 फीसदी पर पहुंच चुकी है.
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यूबीएस का मानना है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए जून 2022 से रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है. रेपो रेट बढ़ने से कर्ज महंगा होगा. वित्त वर्ष के अंत तक रेपो रेट में 1 फीसदी तक की बढ़ोतरी संभव है.
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