नई दिल्ली. पहले कोविड, फिर रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) युद्ध की वजह से ग्लोबल इकोनॉमी पर पड़ रहे असर के बीच भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि यहां की ग्रोथ रेट अभी भी तेज है. इंडियन इकोनॉमी अभी भी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही इकोनॉमी में शुमार है. हालांकि, पेट्रोल-डीजल और नेचुरल गैस के दामों में तेज उछाल से खुदरा महंगाई भड़क गई है जो आम आदमी के जीवन को प्रभावित कर सकती है.
तेज रहेगी भारत की जीडीपी ग्रोथ
ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म केपीएमजी का कहना है कि भारत सरकार की मौजूदा नीतियां आर्थिक रफ्तार को आगे भी बढ़ाए रखेंगी. इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर फोकस और इस क्षेत्र में किए जा रहे निवेश से न सिर्फ विकास दर में तेजी आएगी, बल्कि बेरोजगारी भी घटेगी. केपीएमजी का आकलन है कि वर्ष 2022 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में भारत शामिल रहेगा. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 9.2 फीसदी और 2022-23 में 7.7 फीसदी रह सकती है.
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रिजर्व बैंक ने 7.2 फीसदी लगाया ग्रोथ अनुमान
जबकि रिजर्व बैंक ने 2022-23 में भारत की विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. पहले इसके 7.8 फीसदी रहने का आरबीआई ने अनुमान लगाया था. शुक्रवार को मौद्रिक नीति जारी करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने ग्लोबल रिकवरी के लिए बड़ा चैलेंज पेश किया है. फिर भी कोरोना के बाद भारतीय अर्थव्यस्था में सुधार के बेहतर संकेत दिख रहे हैं. 2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 16.2 फीसदी रहने का रिजर्व बैंक को अनुमान है.
9.1 फीसदी रह जाएगी बेरोजगारी दर
केपीएमजी के मुताबिक, कोविड के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी रेट बढ़ी है. आर्थिक सुधार के मोर्चे पर आगे बढ़ने और मांग में तेजी की वजह से मोबिलिटी इंडेक्स, डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन, बिजली की मांग सभी में उछाल दर्ज किया जा रहा है. 2022 के बजट में केंद्र सरकार की तरफ किए गए ऐलान और मिशन गतिशक्ति भारतीय अर्थव्यस्था की रफ्तार को और आगे बढ़ाएंगे. इससे बेरोजगारी में भी कमी आएगी. केपीएमजी की रिपोर्ट कहती है कि 2021-22 में बेरोजगारी दर 9.2 फीसदी और 2022-23 में घटकर 9.1 फीसदी रह जाएगी.
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महंगाई चिंताजनक
पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, सीएनजी और पीएनजी की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि से खुदरा महंगाई और भड़कने का अनुमान है. यह अर्थव्यवस्था और आम लोगों के लिए बड़ी चुनौती है. केपीएमजी का कहना है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं.
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