‘दहानम’ से धमाल मचाने आ रही हैं ईशा कोप्पिकर, बोलीं- RGV ने देखते ही पूछा, तुम फ्रिज में रहती हो?


साल 2002 की बात है। राम गोपाल वर्मा (Ram Gopal Varma) की फिल्‍म ‘कंपनी’ (Company Movie) रिलीज हुई थी। लेकिन फिल्‍म के पर्दे पर आने से पहले ही एक नाम ने सनसनी मचा दी थी। ईशा कोप्‍प‍िकर (Isha Koppikar) ने ‘खल्‍लास’ गाने में अपनी अदाओं से हर किसी को दीवाना बनाया। फिर ‘कांटे’, ‘पिंजर’, ‘क्या कूल है हम’, और ‘एक विवाह ऐसा भी’ जैसी कि फिल्मों में हमने ईशा कोप्पिकर को अलग-अलग अंदाज में देखा। साल 2011 में ‘शबरी’ फिल्‍म के बाद ईशा कोप्‍प‍िकर बड़े पर्दे से गायब हो गईं। लेकिन एक बार फिर उनका नाम गूंज रहा है। वह राम गोपाल वर्मा की जल्द आने वाली सीरीज ‘दहानम’ (Dahanam Web Series) में नजर आने वाली हैं। इससे पहले वह ओटीटी पर ‘फिक्‍सर’ शो में नजर आ चुकी हैं। ‘दहानम’ में ईशा एक पुलिस अफसर की भूमिका में हैं। ‘नवभारत टाइम्‍स’ से खास बातचीत में ऐक्‍ट्रेस ने अपनी अपकमिंग सीरीज केसाथ ही राम गोपाल वर्मा से लेकर कास्टिंग काउच, महिलाओं के मुद्दों, बेटी रिआना और पति टिम्मी नारंग के बारे में न सिर्फ बात की है, बल्‍क‍ि कई दिलचस्‍प राज़ भी खोले हैं।

एक लंबे गैप के बाद आपने ‘दहानम’ जैसी सीरीज से कमबैक करने की क्यों सोची?
– वो आरजीवी (राम गोपाल वर्मा) ही थे, जिन्होंने आज से तकरीबन 20 साल पहले ‘कंपनी’ में मुझे लॉन्च किया था और अब जब ‘दहानम’ के लिए इतने साल बाद उनका फोन आया, तो मुझे लगा कि यकीनन इसमें कुछ नया जरूर होगा। ऐसा नहीं कि पूरी सीरीज में सिर्फ मैं ही छाई हुई हूं। हम दो सीजन शूट कर चुके हैं और दोनों सीजन में दो हीरो हैं। मैं इसमें कॉप प्ले कर रही हूं। अब तक जो मैंने कॉप किए थे, वो कॉमिडी वाले थे, जबकि ये सीरियस कॉप है। इस सीरीज में एक नॉर्थ इंडियन पुलिस वाली को साऊथ इंडियन रीजन में पोस्ट किया जाता है। ये वो इलाका है, जहां पर दहशत फैली है, मर्डर पर मर्डर हो रहे हैं। मैं इस भूमिका को करने के लिए इसलिए भी तैयार हुई कि ऐसा कॉप मैंने पहले कभी अदा नहीं किया था।

राम गोपाल वर्मा ने आपको ‘खल्लास गर्ल’ (Khallas Girl) की इमेज दी। कैसा लगता है, जब आज भी आपको ‘खल्लास गर्ल’ के नाम से जाना जाता है?
– मुझे तो खुशी होती है कि मेरी कोई इमेज है। जैसे माधुरी को एक दो तीन गर्ल, राजेश खन्ना साहब को ड्रामा किंग, हेमा मालिनी जी को ड्रीम गर्ल कहा जाता है, वैसे कम से कम मेरे पास एक टैग तो है, पहचान तो है। ऐसा नहीं है न? कि मुझे कहने की जरूरत है, पहचान कौन?


इतने साल बाद आरजीवी के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
– बेहद मजेदार। मुझे तो वे देखते ही बोले, तुम खुद के साथ क्या करती रही हो? तुम तो अब पहले से ज्यादा सुंदर लग रही हो? तुम क्या खाती हो? जो इतनी गोरी-गोरी और खूबसूरत लग रही हो। वो तो ये भी बोले कि तुम क्या फ्रिज में रहती हो? ऐसा लग रहा है, मानो समय थम-सा गया है। आरजीवी से जब इतनी तारीफ सुनने मिली, तो बहुत खुशी हुई, क्योंकि अमूमन आरजीवी से आपको सरकास्म ही सुनने मिलता है। उन्होंने मुझे मेरे किरदार के बारे में बताया कि मैं भले पूरी सीरीज के हर फ्रेम में नहीं हूं, मगर मैं ही सीरीज की सूत्रधार हूं, मेरे नजरिए से इस सीरीज की कहानी आगे बढ़ती है।

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आप हमेशा से एक बेबाक ऐक्‍ट्रेस रहीं, अपनी बात को खुलकर रखने वाली, आपको अपनी इस आदत का कितना खामियाजा भुगतना पड़ा?
– मैं किसी बने-बनाए रास्ते को फॉलो नहीं कर सकती। मुझे हमेशा से अपना रास्ता बनाना था और जिसे अपना रास्ता बनाना होता है, उसे काफी संघर्ष का सामना करना पड़ता है। मुझे हमेशा से ऐसी भूमिकाएं करनी थीं, जिन्हें लोग याद रखें, भले वे मेरे किरदार से नफरत करें, मगर वे उसे उपेक्षित न कर पाएं। ‘क्या कूल हैं हम’ की उर्मिला मातोंडकर हो या ‘एक विवाह ऐसा भी’ की चांदनी हो या ‘शबरी’ हो या फिर ‘कृष्णा कॉटेज’ की दिशा हो। मैंने अगर किसी फिल्म में 15-20 मिनट का किरदार भी किया हो, तो लोगों ने उसे याद रखा होगा।


पिछले दिनों आपने अपने एक इंटरव्यू में अपने साथ हुए कास्टिंग काउच का खुलासा भी किया था। उस खुलासे के क्या परिणाम मिले आपको?
– मुझे अपनी बात रखनी थी, मैंने रखी। हो सकता है, उसके बाद लोग मुझे काम देने से परहेज करने लगे हों, मुझे नहीं पता। जिन्होंने मुझे काम नहीं देना था, नहीं दिया और जिन्होंने देना था, दिया। मुझे एक बात तय थी कि मैं अपने मूल्यों और संस्कारों से कोई समझौता नहीं करना चाहती थी। मुझे मेरे परिवार और माता-पिता ने जो कुछ सिखाया है, वो मेरे लिए हमेशा अहम रहा है। मैं अपनी शर्तों पर ही काम करती हूं और जिसे मेरी शर्तें पसंद नहीं आती, उसे मैं टाटा-गुडबाय कह देती हूं।

कास्टिंग काउच तो हर इंडस्ट्री में एक बहुत ही गंभीर समस्या है, मगर उसके अलावा आप महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या मानती हैं?
– मुझे लगता है एक महिला का मल्टीटास्किंग होना सबसे बड़ा चैलेंज है। औरतें जब आत्मनिर्भर होती हैं, तो उन्हें काफी कुछ मैनेज करना पड़ता है। सबको खुश रखना पड़ता है। काम में अव्वल रहना होता है, तो घर पर भी नंबर वन। जो लोग ये कर पाते हैं, उन्हें मेरा सलाम। मुझे लगता है, आज के दौर में शिक्षा सबसे जरूरी है। मुझे लगता है शिक्षा को कंपलसरी कर देना चाहिए। महिलाओं की दशा को ठीक होते-होते और सौ साल लगेंगे, क्योंकि रूढ़िवादी सोच की जड़ें बहुत गहरी हैं। मगर मैं मानती हूं कि शिक्षा हर किसी के लिए आवश्यक है, तभी एक स्वस्थ और सभ्य समाज का निर्माण हो पाएगा।


आप खुद को कैसी मां मानती हैं?
– मैं खुद को अच्छी मां मानती हूं। मेरे मानने से ज्यादा लोग जब रिआना के बारे में मुझसे कहते हैं कि मैंने उसे अच्छे संस्कार दिए, सही सीख दी है, तो मुझे बहुत खुशी होती है। रिआना दूसरे फिल्मी बच्चों की तरह नहीं है। मैं सिर्फ अकेली ऐसी मां नहीं हूं। हमारी फिल्म फ्रेटर्निटी में बहुत-से ऐसे कपल्स हैं, जिन्होंने अपने बच्चों की सही परवरिश की है। बच्चों की परवरिश के अलग-अलग फेज होते हैं, उनकी उम्र के हिसाब से उनकी रिक्वायरमेंट बदलती रहती है। मैं नहीं जानती कि दस साल बाद वो कैसी लड़की बनेगी? मगर अभी सब मेरी तारीफ करते हैं कि मैं उसे सही तरह से पाल-पास रही हूं।

आपके चेहरे की चमक बता रही है कि आप अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश हैं, तो आपके हस्बैंड टिम्मी नारंग कितने सपोर्टिव हैं?
-टिम्मी जी बहुत ही सपोर्टिव रहे और शादी के पहले ही दिन से मुझे उनका सहयोग मिलता रहा है। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया। हालांकि हमारी बिजनेस फैमिली है। अगर किसी को इंडस्ट्री में मेरे काम करने से प्रॉब्लम भी थी, तो तब भी उन्होंने मेरा साथ दिया। वो मेरे लिए लड़े हैं कि उसको अगर काम करना है, तो करने दो। उनके लिए मेरी खुशी सबसे ज्यादा अहम है। मैं भगवान का शुक्रिया अदा करती हूं कि मुझे टिम्मी जी जैसे पति मिले, पर कभी कोई परेशानी नहीं हुई। वे बेहद मजाकिया भी हैं। किसी भी सिचुएशन को हल्का-फुल्का बना लेते हैं। रिआना भी बहुत हंसमुख है। मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश हूं।



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