पीटीआई, रांची।
Published by: देव कश्यप
Updated Wed, 25 May 2022 01:20 AM IST
सार
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर अब 1 जून को सुनवाई होगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार हाईकोर्ट पहले यह तय करेगा कि इस मामले में दायर की गयी जनहित याचिका सुनवाई योग्य है कि नहीं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
– फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के आदेश के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लाभ के पद का मामला और झारखंड की खनन सचिव रहीं निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल की शेल कंपनियों का मामला एक बार फिर झारखंड हाईकोर्ट के पास आ गया है। हाईकोर्ट इसकी सुनवाई एक जून से शुरू करेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार हाईकोर्ट पहले अब यह तय करेगा कि इस मामले में दायर की गयी जनहित याचिका सुनवाई योग्य है कि नहीं।
सभी पक्षों को अपना जवाब 31 मई तक दाखिल करने का निर्देश
झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रविरंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने इन मामलों में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में सभी पक्षों को अपना जवाब 31 मई तक दाखिल करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए एक जून की तिथि निर्धारित की है।
झारखंड हाईकोर्ट में पहले इस मामले की सुनवाई मंगलवार सुबह 11 बजे निर्धारित थी, लेकिन इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हो रही सुनवाई के मद्देनजर यहां इसकी सुनवाई 12 बजे शुरू की गई। राज्य सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने इससे पहले हाईकोर्ट को सूचित किया था कि सरकार ने जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस जनहित याचिका की वैधता पर सुनवाई के निर्देश दिए हैं। इसके बाद अदालत ने कहा कि न्याय और राज्य के हित में अवकाश में भी इसकी सुनवाई कर रही है। इस मामले में सरकार की ओर से आवेदन देकर चार सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित करने की मांग की गई थी। लेकिन मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और एसएन प्रसाद की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है, इसमें इतना लंबा समय नहीं दिया जा सकता है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि हेमंत सोरेन ने राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने करीबियों के पक्ष में खनन लाइसेंस जारी किया। इसमें यह भी कहा कि खनन विभाग की सचिव पूजा सिंघल, जो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रिमांड में हैं, ने मनी लॉन्ड्रिंग के लिए शेल कंपनियां बनाई थीं।
हाईकोर्ट ने पहले सोरेन को इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था। सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे पर रांची के उपायुक्त छवि रंजन ने हस्ताक्षर किए थे। जबकि रंजन भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी हैं। हाईकोर्ट ने एक आरोपी द्वारा हलफनामा दाखिल करने का विरोध किया क्योंकि यह नियमों के विपरीत है और हाईकोर्ट ने रंजन को एक हलफनामा दायर करने का आदेश दिया जिसमें उनसे सतर्कता अदालत (विजिलेंस कोर्ट) के समक्ष लंबित मामले की स्थिति की व्याख्या करने को कहा गया।
क्या है मामला?
यह मामला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्थर खनन पट्टा आवंटित करने और उनके करीबियों द्वारा शेल कंपनी में निवेश से जुड़ा है जिसको लेकर हाईकोर्ट के अंतरिम निर्देश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। झारखंड हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को इस मामले में सीलबंद रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।
इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल कर कहा कि याचिका अभी सुनवाई के लिए स्वीकार भी नहीं की गई है और ईडी ने हाईकोर्ट में सीलबंद रिपोर्ट पेश कर दी है। उक्त रिपोर्ट की प्रति सरकार को भी मिलनी चाहिए। बिना दस्तावेजों को सरकार इस मामले में जवाब दाखिल नहीं कर पाएगी।