Judicial Process: मुख्य न्यायाधीश रमण बोले- जल्द गिरफ्तारी, मुश्किल से जमानत, व्यवस्था पर जल्द ध्यान देने की जरूरत


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देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर मुश्किल से जमानत मिलने तक, हमारी न्याय प्रणाली विचाराधीन कैदियों की कैद अवधि लंबी कर रही है और इस पर जल्द ध्यान देने की जरूरत है। देश की जेलों में 6.10 लाख कैदी हैं जिनमें से करीब 80 फीसदी विचाराधीन हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, यह मुद्दा देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था पर असर डाल रहा है। मुख्य न्यायाधीश जयपुर में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की ओर से आयोजित 18वीं अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। बैठक में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने जब कहा कि देश की अदालतों में पांच करोड़ केस का लंबित होना चिंता की बात है तो जस्टिस रमण ने जजों के खाली पदों को जल्द भरने पर जोर दिया।

जेलों को ब्लैक बॉक्स की संज्ञा देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जेल अलग-अलग श्रेणी के कैदियों पर अलग-अलग असर डालते हैं, खासकर वंचित तबके से आने वाले कैदियों पर। उन्होंने कहा, सुधार का लक्ष्य विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसके बदले हमें उस प्रणाली पर सवाल उठाना चाहिए जो कैदियों की संख्या को बढ़ा रही है। कार्यक्रम में जस्टिस रमण ने नालसा के विधिक सहायता प्रबंधन पोर्टल, मोबाइल एप और ईप्रिजन पहलों का उद्घाटन किया। इन कदमों से लोगों को कानूनी सहायता हासिल करने में बहुत आसानी हो जाएगी।

आम आदमी हर सुनवाई के लिए वकीलों को 10-15 लाख कैसे देगा : रिजिजू
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने बैठक में नामी वकीलों द्वारा किसी केस की एक सुनवाई के लिए 10 से 15 लाख रुपये फीस लेने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, इसके कारण देश में न्याय गरीबों और वंचितों की पहुंच से बाहर हो रहा है। उन्होंने कहा, संसाधन वाले लोग इन बड़े वकीलों की सेवा ले पाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में ऐसे वकील हैं जिनकी फीस गरीब नहीं भर सकते। कानून मंत्री ने एक बार फिर से देश की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक लंबित मामलों पर चिंता जताई और कहा कि अगले दो वर्ष में इसे दो करोड़ तक लाने का लक्ष्य होना चाहिए। कानून मंत्री ने निचली अदालतों और हाईकोर्ट स्तर तक स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात कही। रिजिजू ने कहा, आखिर अंग्रेजी को ज्यादा महत्व क्यों मिलना चाहिए। अंग्रेजी जानने और बोलने वाले वकील को ज्यादा फीस क्यों मिले?

न्यायाधीशों की आलोचना पर बरसे गहलोत
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस अवसर पर एक बार फिर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नुपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की टिप्पणियों की आलोचना में जिस तरह अभियान छेड़ा गया वह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, देश में जिस तरह हॉर्स ट्रेडिंग से सरकारें बदली जा रही हैं, यह चिंता का विषय है। गहलोत ने जजों के लिए कहा, न्यायाधीशों और नौकरशाहों को सेवानिवृत्ति के बाद की  महत्वाकांक्षा के बारे में चिंतित होने की जगह देश की सेवा के लिए काम करना चाहिए।

अगर कोई मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद या जज बनता है, तो उसे देश की सेवा करने का मौका मिला है, उसे ऐसा करने पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने अपने भाषण में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा सांसद के रूप में नामांकन का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गोगोई उच्चतम न्यायालय के उन चार न्यायाधीशों में से एक थे, जिन्होंने कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद सांसद बन गए।

राजनीतिक विरोध का वैर में बदल जाना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं : रमण
देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि राजनीतिक विरोध का वैर में बदल जाना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं है, हालांकि दुख की बात है कि इन दिनों ऐसा ही दिख रहा है। उन्होंने कहा, पहले देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष में आपसी सम्मान होता था जो दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अब कम होने लगा है। मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) द्वारा राजस्थान विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने देश की विधायिका के प्रदर्शन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, दुखद रूप से देश विधायिका के प्रदर्शन में गिरावट देख रहा है। कानून बिना विस्तृत विचार-विमर्श और छानबीन के पारित हो रहे हैं।

हमारी न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बनी
जयपुर में ही नालसा 18वीं अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक में जस्टिस रमण ने कहा कि देश की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या का मुद्दा गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है। अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर मुश्किल से जमानत मिलने तक, यह प्रणाली विचाराधीन कैदियों की कैद अवधि लंबी कर रही है और इस पर जल्द ध्यान देने की जरूरत है। 

विस्तार

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर मुश्किल से जमानत मिलने तक, हमारी न्याय प्रणाली विचाराधीन कैदियों की कैद अवधि लंबी कर रही है और इस पर जल्द ध्यान देने की जरूरत है। देश की जेलों में 6.10 लाख कैदी हैं जिनमें से करीब 80 फीसदी विचाराधीन हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, यह मुद्दा देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था पर असर डाल रहा है। मुख्य न्यायाधीश जयपुर में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की ओर से आयोजित 18वीं अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। बैठक में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने जब कहा कि देश की अदालतों में पांच करोड़ केस का लंबित होना चिंता की बात है तो जस्टिस रमण ने जजों के खाली पदों को जल्द भरने पर जोर दिया।

जेलों को ब्लैक बॉक्स की संज्ञा देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जेल अलग-अलग श्रेणी के कैदियों पर अलग-अलग असर डालते हैं, खासकर वंचित तबके से आने वाले कैदियों पर। उन्होंने कहा, सुधार का लक्ष्य विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसके बदले हमें उस प्रणाली पर सवाल उठाना चाहिए जो कैदियों की संख्या को बढ़ा रही है। कार्यक्रम में जस्टिस रमण ने नालसा के विधिक सहायता प्रबंधन पोर्टल, मोबाइल एप और ईप्रिजन पहलों का उद्घाटन किया। इन कदमों से लोगों को कानूनी सहायता हासिल करने में बहुत आसानी हो जाएगी।

आम आदमी हर सुनवाई के लिए वकीलों को 10-15 लाख कैसे देगा : रिजिजू

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने बैठक में नामी वकीलों द्वारा किसी केस की एक सुनवाई के लिए 10 से 15 लाख रुपये फीस लेने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, इसके कारण देश में न्याय गरीबों और वंचितों की पहुंच से बाहर हो रहा है। उन्होंने कहा, संसाधन वाले लोग इन बड़े वकीलों की सेवा ले पाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में ऐसे वकील हैं जिनकी फीस गरीब नहीं भर सकते। कानून मंत्री ने एक बार फिर से देश की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक लंबित मामलों पर चिंता जताई और कहा कि अगले दो वर्ष में इसे दो करोड़ तक लाने का लक्ष्य होना चाहिए। कानून मंत्री ने निचली अदालतों और हाईकोर्ट स्तर तक स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात कही। रिजिजू ने कहा, आखिर अंग्रेजी को ज्यादा महत्व क्यों मिलना चाहिए। अंग्रेजी जानने और बोलने वाले वकील को ज्यादा फीस क्यों मिले?

न्यायाधीशों की आलोचना पर बरसे गहलोत

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस अवसर पर एक बार फिर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नुपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की टिप्पणियों की आलोचना में जिस तरह अभियान छेड़ा गया वह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, देश में जिस तरह हॉर्स ट्रेडिंग से सरकारें बदली जा रही हैं, यह चिंता का विषय है। गहलोत ने जजों के लिए कहा, न्यायाधीशों और नौकरशाहों को सेवानिवृत्ति के बाद की  महत्वाकांक्षा के बारे में चिंतित होने की जगह देश की सेवा के लिए काम करना चाहिए।

अगर कोई मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद या जज बनता है, तो उसे देश की सेवा करने का मौका मिला है, उसे ऐसा करने पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने अपने भाषण में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा सांसद के रूप में नामांकन का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गोगोई उच्चतम न्यायालय के उन चार न्यायाधीशों में से एक थे, जिन्होंने कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद सांसद बन गए।

राजनीतिक विरोध का वैर में बदल जाना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं : रमण

देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि राजनीतिक विरोध का वैर में बदल जाना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं है, हालांकि दुख की बात है कि इन दिनों ऐसा ही दिख रहा है। उन्होंने कहा, पहले देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष में आपसी सम्मान होता था जो दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अब कम होने लगा है। मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) द्वारा राजस्थान विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने देश की विधायिका के प्रदर्शन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, दुखद रूप से देश विधायिका के प्रदर्शन में गिरावट देख रहा है। कानून बिना विस्तृत विचार-विमर्श और छानबीन के पारित हो रहे हैं।

हमारी न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बनी

जयपुर में ही नालसा 18वीं अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक में जस्टिस रमण ने कहा कि देश की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या का मुद्दा गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है। अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर मुश्किल से जमानत मिलने तक, यह प्रणाली विचाराधीन कैदियों की कैद अवधि लंबी कर रही है और इस पर जल्द ध्यान देने की जरूरत है। 



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