Kanpur Violence: भारत की घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की साजिश, PFI के इस जाल को कैसे तोड़ेंगी सुरक्षा एजेंसियां?


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कानपुर में तीन जून को हुई सांप्रदायिक हिंसा का मॉडल फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई हिंसा से काफी कुछ मेल खाता है। इन दोनों ही मामलों में सांप्रदायिक हिंसा का ‘खेल’ उस समय खेला गया जब देश की सर्वोच्च हस्तियां शहर में मौजूद थीं। कानपुर में हुई हिंसा के समय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री शहर में मौजूद थे, तो दिल्ली हिंसा के समय देश-दुनिया का ध्यान दिल्ली पर था क्योंकि उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत यात्रा पर थे। साजिशकर्ताओं ने इन अवसरों पर दंगा फैलाकर अपनी ‘बात’ बड़े स्तर पर उठाने में सफलता पाई। इन दोनों ही घटनाओं की साजिश रचने में पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) का कनेक्शन सामने आ रहा है। ये कनेक्शन सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है।

साजिशकर्ता ने कबूला

कानपुर में तीन जून को हुई सांप्रदायिक हिंसा के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी ने पुलिस की पूछताछ में  स्वीकार किया है कि उपद्रव के लिए इस दिन को बहुत सोच-समझकर चुना गया था। इस दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल आनंदीबेन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर में थे। इस दिन विरोध-प्रदर्शन करके अपनी आवाज बड़े स्तर पर उठाई जा सकती थी। उपद्रवियों ने इस अवसर का लाभ उठाया और व्हाट्सएप चैट के जरिए अपने समर्थकों तक ये बात पहुंचाई। इसके बाद हिंसा की गई जिसमें काफी नुकसान हुआ।

लेकिन साजिशकर्ता अपनी साजिश में कामयाब रहे और भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा 26 मई को एक टीवी डिबेट में इस्लाम के पैग़म्बर के बारे में अभद्र टिप्पणी करने का मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया। अरब देशों के विरोध के दबाव में अंततः भाजपा को नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से हटाना पड़ा। साजिशकर्ता ने इसे अपनी ‘सफलता’ बताया है।

हयात जफर हाशमी ने अभी तक इस हिंसा के मामले में पीएफआई का कनेक्शन होना स्वीकार नहीं किया है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ हो सकता है। इस हिंसा का मॉडल पीएफआई के काम करने के तरीके से मेल खाता है, इसलिए इस बात की ज्यादा आशंका है कि इस मामले में उसकी भूमिका हो सकती है। इसकी जांच की जा रही है।

दिल्ली हिंसा में भी यही साजिश

नागरिकता के अधिकार कानून (CAA) और एनआरसी के विरोध में मुस्लिम समुदाय द्वारा 16 दिसंबर 2019 से दिल्ली सहित पूरे देश में जगह-जगह पर प्रदर्शन किए जा रहे थे। प्रदर्शनकारियों का मानना था कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ है क्योंकि इसमें उनके साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जा रहा था। प्रदर्शनकारियों ने मुख्य सड़कों को जाम कर दिया था, जिससे स्थानीय लोगों में उनके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी। लेकिन सरकार इन सड़कों को खाली कराने के लिए किसी भी तरह बल प्रयोग के पक्ष में नहीं थी।

इन्हीं परिस्थितियों में 23 फरवरी 2020 को पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके में दंगा भड़क गया। दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में फ़ाइल अपनी चार्जशीट में कहा था कि इस हिंसा की साजिश आठ जनवरी को ही रच दी गई थी। साजिश के तहत डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान हिंसक प्रदर्शन कर CAA और NRC के मामले को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में लाना था। पूरी हिंसा योजना के अनुसार रची गई और यह मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था। इस हिंसा की साजिश रचने में पीएफआई का नाम सामने आया था। आरोप है कि इसमें जेएनयू के कुछ छात्र भी शामिल थे।

हालांकि, पुलिस की इस थ्योरी पर कुछ लोगों ने सवाल खड़े कर दिए थे। इन लोगों का मानना था कि ट्रंप क़ी भारत यात्रा की बात 13 जनवरी को सामने आई थी, इसलिए इसकी तथाकथित साजिश इसके पूर्व कैसे रची जा सकती थी। बाद में पुलिस ने अपनी पूरक चार्जशीट में 16-17 फरवरी को इस तरह की बैठक होने की बात कही थी। लेकिन इस घटना में भी पीएफआई का कनेक्शन साफ तौर पर सामने आया था। यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।

क्या है पीएफआई का मॉडल

सुरक्षा से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक, पीएफआई का नाम देश की क़ई सांप्रदायिक दंगों और प्रदर्शनों में सामने आ चुका है। वह हर मामले में लगभग एक सी रणनीति इस्तेमाल करता है। किसी घटना के विरोध में वह अल्पसंख्यक समुदाय को लामबंद करके प्रदर्शन आयोजित करवाता है। इसमें युवा, छात्र, महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं। इससे प्रदर्शनकारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई करना कठिन हो जाता है, जबकि महिलाओं और बच्चों की भागीदारी के कारण इसका व्यापक भावनात्मक असर होता है।

अधिकारी के मुताबिक, शाहीन बाग, कानपुर, दिल्ली दंगे से लेकर बेंगलुरु में हिजाब के समर्थन में हुए प्रदर्शनों में यह बात लगातार सामने आई है। इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर सुरक्षा एजेंसियां मामले की जांच कर रही हैं। इन प्रदर्शनों को ज्यादातर अहिंसक या बेहद हल्के स्तर की हिंसा की जाती है जिससे प्रदर्शनकारियों पर ज्यादा गंभीर मामले न बनें। कानपुर में इसी तरह की रणनीति बनाई गई।

विस्तार

कानपुर में तीन जून को हुई सांप्रदायिक हिंसा का मॉडल फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई हिंसा से काफी कुछ मेल खाता है। इन दोनों ही मामलों में सांप्रदायिक हिंसा का ‘खेल’ उस समय खेला गया जब देश की सर्वोच्च हस्तियां शहर में मौजूद थीं। कानपुर में हुई हिंसा के समय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री शहर में मौजूद थे, तो दिल्ली हिंसा के समय देश-दुनिया का ध्यान दिल्ली पर था क्योंकि उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत यात्रा पर थे। साजिशकर्ताओं ने इन अवसरों पर दंगा फैलाकर अपनी ‘बात’ बड़े स्तर पर उठाने में सफलता पाई। इन दोनों ही घटनाओं की साजिश रचने में पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) का कनेक्शन सामने आ रहा है। ये कनेक्शन सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है।

साजिशकर्ता ने कबूला

कानपुर में तीन जून को हुई सांप्रदायिक हिंसा के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी ने पुलिस की पूछताछ में  स्वीकार किया है कि उपद्रव के लिए इस दिन को बहुत सोच-समझकर चुना गया था। इस दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल आनंदीबेन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर में थे। इस दिन विरोध-प्रदर्शन करके अपनी आवाज बड़े स्तर पर उठाई जा सकती थी। उपद्रवियों ने इस अवसर का लाभ उठाया और व्हाट्सएप चैट के जरिए अपने समर्थकों तक ये बात पहुंचाई। इसके बाद हिंसा की गई जिसमें काफी नुकसान हुआ।

लेकिन साजिशकर्ता अपनी साजिश में कामयाब रहे और भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा 26 मई को एक टीवी डिबेट में इस्लाम के पैग़म्बर के बारे में अभद्र टिप्पणी करने का मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया। अरब देशों के विरोध के दबाव में अंततः भाजपा को नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से हटाना पड़ा। साजिशकर्ता ने इसे अपनी ‘सफलता’ बताया है।

हयात जफर हाशमी ने अभी तक इस हिंसा के मामले में पीएफआई का कनेक्शन होना स्वीकार नहीं किया है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ हो सकता है। इस हिंसा का मॉडल पीएफआई के काम करने के तरीके से मेल खाता है, इसलिए इस बात की ज्यादा आशंका है कि इस मामले में उसकी भूमिका हो सकती है। इसकी जांच की जा रही है।

दिल्ली हिंसा में भी यही साजिश

नागरिकता के अधिकार कानून (CAA) और एनआरसी के विरोध में मुस्लिम समुदाय द्वारा 16 दिसंबर 2019 से दिल्ली सहित पूरे देश में जगह-जगह पर प्रदर्शन किए जा रहे थे। प्रदर्शनकारियों का मानना था कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ है क्योंकि इसमें उनके साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जा रहा था। प्रदर्शनकारियों ने मुख्य सड़कों को जाम कर दिया था, जिससे स्थानीय लोगों में उनके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी। लेकिन सरकार इन सड़कों को खाली कराने के लिए किसी भी तरह बल प्रयोग के पक्ष में नहीं थी।

इन्हीं परिस्थितियों में 23 फरवरी 2020 को पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके में दंगा भड़क गया। दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में फ़ाइल अपनी चार्जशीट में कहा था कि इस हिंसा की साजिश आठ जनवरी को ही रच दी गई थी। साजिश के तहत डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान हिंसक प्रदर्शन कर CAA और NRC के मामले को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में लाना था। पूरी हिंसा योजना के अनुसार रची गई और यह मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था। इस हिंसा की साजिश रचने में पीएफआई का नाम सामने आया था। आरोप है कि इसमें जेएनयू के कुछ छात्र भी शामिल थे।

हालांकि, पुलिस की इस थ्योरी पर कुछ लोगों ने सवाल खड़े कर दिए थे। इन लोगों का मानना था कि ट्रंप क़ी भारत यात्रा की बात 13 जनवरी को सामने आई थी, इसलिए इसकी तथाकथित साजिश इसके पूर्व कैसे रची जा सकती थी। बाद में पुलिस ने अपनी पूरक चार्जशीट में 16-17 फरवरी को इस तरह की बैठक होने की बात कही थी। लेकिन इस घटना में भी पीएफआई का कनेक्शन साफ तौर पर सामने आया था। यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।

क्या है पीएफआई का मॉडल

सुरक्षा से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक, पीएफआई का नाम देश की क़ई सांप्रदायिक दंगों और प्रदर्शनों में सामने आ चुका है। वह हर मामले में लगभग एक सी रणनीति इस्तेमाल करता है। किसी घटना के विरोध में वह अल्पसंख्यक समुदाय को लामबंद करके प्रदर्शन आयोजित करवाता है। इसमें युवा, छात्र, महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं। इससे प्रदर्शनकारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई करना कठिन हो जाता है, जबकि महिलाओं और बच्चों की भागीदारी के कारण इसका व्यापक भावनात्मक असर होता है।

अधिकारी के मुताबिक, शाहीन बाग, कानपुर, दिल्ली दंगे से लेकर बेंगलुरु में हिजाब के समर्थन में हुए प्रदर्शनों में यह बात लगातार सामने आई है। इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर सुरक्षा एजेंसियां मामले की जांच कर रही हैं। इन प्रदर्शनों को ज्यादातर अहिंसक या बेहद हल्के स्तर की हिंसा की जाती है जिससे प्रदर्शनकारियों पर ज्यादा गंभीर मामले न बनें। कानपुर में इसी तरह की रणनीति बनाई गई।



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