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मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों के परिणाम सामने हैं। 2023 के सेमीफाइनल कहे जाने वाले इन चुनावों ने भाजपा को कहीं न कहीं सोचने पर मजबूर कर दिया है। 2018 के चुनाव में सत्ता पर पहुंची कांग्रेस 15 महीने बाद ही कुर्सी से हटा दी गई थी। तब से लगातार सक्रिय कांग्रेस के पक्ष में परिणाम भी दिख रहे हैं। पिछली बार 16 नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा था, अब भाजपा सात नगर निगम की सीटों पर हार गई है। यानी लगभग आधी जगह उसे हार का मुंह देखना पड़ा है।
बता दें कि इस बार ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, छिंदवाड़ा और मुरैना में कांग्रेस को जीत मिली है तो कटनी में निर्दलीय उम्मीदवार और सिंगरौली में आम आदमी पार्टी की महापौर प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। इंदौर, भोपाल, देवास, रतलाम, खंडवा, बुरहानपुर, उज्जैन, सतना, सागर में ही भाजपा अपनी सत्ता बचा पाई है। हारे हुए नगर निगम को लेकर भाजपा में मंथन शुरू हो गया है। कारण तलाशे जाने लगे हैं।
हालांकि भाजपा का कहना है कि जनता का विश्वास भाजपा पर बरकरार है। 80 प्रतिशत वॉर्ड पार्टी ने जीते हैं। विधानसभा चुनाव की तैयारी जारी है। कांग्रेस 100 साल पुरानी पार्टी है, हमने करीब-करीब 20 साल से सत्ता संभाली है फिर भी हमारा नंबर कांग्रेस से दोगुना है। ये सिर्फ नगर निगम की बात है। परिषद और पालिका में भी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
तीसरे विकल्प की मौजूदगी का अहसास
राजनीति की खासी समझ रखने वाले पत्रकारों ने बताया कि इन चुनावों में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और औवेसी की पार्टी ने भी चर्चा में आने लायक प्रदर्शन किया है। मुरैना में निर्दलीय प्रत्याशी महापौर के लिए चुना गया है। दूसरे चरण में पूरे प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने 22 पार्षद पद हासिल किए हैं। कहीं न कहीं इसे सत्ती विरोधी लहर के रूप में देखा जा रहा है, हालांकि स्थानीय चुनाव में पार्टी से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है तो विधानसभा चुनावों में पार्टी का रोल बड़ा हो जाता है। इन चुनावों को सत्ता का सेमीफाइनल प्रचारित करवाना भी राजनीति का हिस्सा है। दोनों चुनाव बिलकुल अलग-अलग हैं।
क्या कहना है भाजपा-कांग्रेस का
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि 1999 के बाद से जब से महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से हो रहा है उसमें भी यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। अगर पिछले 23 साल के नगर निगम चुनावों के परिणाम पर नजर डालें तो कांग्रेस पार्टी को 1999 में 2 सीट भोपाल और जबलपुर, 2004 में भोपाल और देवास, 2009 में देवास, उज्जैन और कटनी और 2014 में कोई सीट नहीं मिली, जबकि इस बार 2022 में हमने 5 नगर निगम जीते हैं। पिछले नगरीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 16 नगर निगम जीते थे। वहीं भाजपा के हाथ से 7 नगर निगम निकल गए हैं। भाजपा यह चुनाव पूरी तरह से हारी है। ग्वालियर और चंबल में भाजपा के बड़े-बड़े नेता हैं, लेकिन उसी क्षेत्र में भाजपा की सबसे बुरी हार हुई है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हितेश वाजपेयी का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी 80 प्रतिशत से अधिक पार्षदों पर जीती है निगम, परिषद और पालिका में। 16 में से 9 नगर निगम हमारे पास हैं। अच्छा बहुमत है। जहां हम नहीं जीत पाए, वहां पार्षदों की संख्या बल हमारी ज्यादा है। स्वाभाविक है कि जनता का हम पर विश्वास है। आगामी रणनीति तैयार करके 2023 की तैयारी करेंगे। 80 प्रतिशत वॉर्ड हमारे जीतकर आ रहे हैं तो इसमें जनता की नाराजगी जैसी कोई बात नहीं है।
नगर पालिका के आंकड़े
40 नगर पालिकाओं के नतीजे भी बुधवार को आए। इनमें से आधे यानी 20 में भाजपा ने कब्जा जमाया है। 12 पर कांग्रेस और आठ पर त्रिशंकु स्थिति बनी है। इन आठ पालिकाओं में निर्दलीय किंगमेकर की भूमिका में है। आने वाले दिनों में स्थिति स्पष्ट हो सकती है। खरगोन में दंगे हुए थे, वहां की नगर पालिका में एआईएमआईएम ने तीन सीटें जीतकर चौंकाया है। कई दिग्गज नेताओं के घरों के वार्ड में उनकी पार्टियों को हार का सामना करना पड़ा है। छिंदवाड़ा के न्यूटन चिखली में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गविंद्र कुमार गढ़वाल ने जीत दर्ज की है। यह भी महत्वपूर्ण हो सकता है। दूसरे चरण में पूरे प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने 22 पार्षद पद हासिल किए हैं। यह पहले चरण के मुकाबले उसका बेहतरीन परफॉर्मंस है। आम आदमी पार्टी को छतरपुर में पांच, रतलाम, मुरैना, राजगढ़ में दो-दो, श्योपुर, रीवा, सीधी, बालाघाट, भिंड, सागर, टीकमगढ़, शिवपुरी, शाजापुर, छिंदवाड़ा, आगर मालवा में एक-एक सीट हासिल हुई है।
नगर परिषदों की स्थिति
मध्य प्रदेश की 169 नगर परिषदों के नतीजे भी आज आ गए। इनमें 100 परिषदों का भाजपा का कब्जा होने की बात कही जा रही है। मालवा-निमाड़ अंचल की बात करें तो ज्यादातर इलाकों में भाजपा का दबदबा दिखाई दिया है। इस बार ग्वालियर-चंबल, विंध्य और महाकौशल में जरूर कहीं-कहीं पर कांग्रेस ने दबदबा दिखाया है। जहां तक परिषदों की बात है, करीब 40 में कांग्रेस ने कब्जा किया है। वहीं, 29 परिषदों के नतीजे साफ नहीं हो सके हैं। वहां किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिख रहा है।