Maharashtra Political Crisis: 15 दिन के घटनाक्रम से जानें महाराष्ट्र सरकार पर खतरा क्यों? समझें सीटों का गणित


सार

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस आखिर किन मुद्दों पर उलझी हैं। इनकी शुरुआत कहां से हुई और अगर कोई पार्टी रूठती है तो महाराष्ट्र का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, जानें…

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भारत में जिस दौरान लोग पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी दौरान देश के कुछ और हिस्सों में भी राजनीतिक गतिविधियां अपने चरम पर रही थीं। जहां कर्नाटक में हिजाब विवाद का मुद्दा गरमाया था, वहीं गुजरात में पाठ्यक्रम बदलाव और अन्य मुद्दों की वजह से सियासी सरगर्मियां बरकरार थीं। एक और राज्य महाराष्ट्र में पिछले करीब दो महीने से भाजपा 10 मार्च के बाद राजनीतिक भूचाल लाने की चेतावनी दे रही थी। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के इन बयानों को पहले तो  सत्तासीन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में शामिल शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस ने हंसी में उड़ाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और पड़ोसी गोवा के चुनावी नतीजे सामने आए, वैसे ही इस गठबंधन की चिंताएं बढ़ गईं। 
1. जब कांग्रेस ने उठाई गठबंधन के खिलाफ आवाज
10 मार्च को गोवा विधानसभा चुनाव के नतीजे से सबसे ज्यादा प्रभावित कांग्रेस हुई। नतीजे के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता नाना पटोले ने दावा किया कि 2024 में महाराष्ट्र में कांग्रेस का ही मुख्यमंत्री होगा। उनके इस बयान के बाद यह अंदाजा लगाया जाने लगा है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में एमवीए से अलग चुनाव लड़ सकती है।  

गठबंधन में दरार पड़ने का अगला संकेत 18 मार्च 2022 को  मिलता है। इस दिन केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने दावा किया कि महाविकास अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। उन्होंने यह तो नहीं बताया था कि आखिर कौन सी पार्टियों के नेताओं ने उनसे संपर्क किया, लेकिन दानवे ने यह जरूर दावा किया था कि ये सभी नेता एमवीए सरकार में नजरअंदाज किए जाने की वजह से नाराज हैं। 
ऐसा नहीं है कि महाविकास अघाड़ी गठबंधन के बीच यह दरार सिर्फ कांग्रेस की वजह से ही पड़ी। सीएम पद होने के बावजूद उद्धव ठाकरे की पार्टी भी गठबंधन में दूसरा दर्जा मिलने की शिकायत करती रही है। यह शिकायत शीर्ष नेतृत्व से तो नहीं आई है, लेकिन सांसद से लेकर विधायक तक इस मुद्दे पर बयान दे चुके हैं। इसी असंतुष्टि को दिखाता बयान 22 मार्च 2022 को आया, जब शिवसेना सांसद श्रीरंग बारने ने दावा किया कि महाराष्ट्र सरकार में सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाली पार्टी शरद पवार की राकांपा है। उन्होंने कहा कि शिवसेना नेतृत्व करने के बावजूद भेदभाव का सामना कर रही है। बारने ने आरोप लगाया था कि राकांपा नेताओं ने उन्हें अपनी लोकसभा सीट छोड़ने की सलाह दी थी, ताकि इस सीट पर अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार को लड़ाया जा सके। बारने का कहना था कि उन्हें इसके बदले राज्यसभा भेजने की बात कही गई थी। 

दो दिन पहले यानी 28 मार्च को ही शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने एक कार्यक्रम के दौरान कुछ ऐसे बयान दिया। इसमें सावंत ने कहा कि शिवसेना के सभी वरिष्ठ नेताओं का यही मानना है कि सरकार में पार्टी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। उन्होंने कहा था कि चाहे कोंकण क्षेत्र हो या पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा या विदर्भ सभी जगहों पर पार्टी को नजरअंदाज किया जा रहा है और यह बात राज्य के बजट में भी दिखी है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र का बजट राकांपा नेता और वित्त मंत्री अजीत पवार की तरफ से पेश किया गया था, जिसे लेकर शिवसेना पहले भी कई तीखे बयान दे चुकी है। सावंत ने यहां तक आरोप लगाया था कि उन्हें कई ग्राम पंचायतों से फोन आता है कि राकांपा नेताओं की ओर से प्रस्तावित एक करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी मिल गई है, जबकि शिवसेना नेता अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन का इंतजार ही करते रह गए। 
महाविकास अघाड़ी गठबंधन में अब तक जिस पार्टी ने असंतुष्टि जाहिर नहीं की है, वह है राकांपा। पार्टी ने अब तक सीधे तौर पर तो शिवसेना या कांग्रेस पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन रिपोर्ट्स की मानें तो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने सीएम ठाकरे की उस योजना के खिलाफ आवाज उठाई है, जिसमें मुख्यमंत्री ने विधानसभा और विधानपरिषद के 300 सदस्यों के लिए मुंबई में घर बनवाने का प्रावधान किया है। पवार ने कहा था कि नेताओं के लिए घर बनवाने का फैसला महाविकास अघाड़ी सरकार ने चर्चा के बाद लिया है, लेकिन वे निजी तौर पर इस योजना के खिलाफ हैं। 
1. कांग्रेस के 25 विधायक नाराज, सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी  
दरअसल, कांग्रेस के 25 विधायक गठबंधन से नाराज बताए जा रहे हैं। इन विधायकों ने  पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी चिट्ठी लिखी है और चीजों को जल्द सही करने की मांग की है। कांग्रेस के एक नेता का तो यहां तक कहना है कि अगर मंत्री विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में काम को लागू करने के अनुरोधों की अनदेखी करते हैं, तो पार्टी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कैसे करेगी?
दूसरी तरफ कांग्रेस ने अब गठबंधन में जारी विवाद को एक कदम आगे ले जाने का भी काम किया है। पार्टी के नेता नसीम खान, जिन्हें 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के दिलीप लांडे के खिलाफ हार मिली थी, उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, परिवहन मंत्री अनिल परब और सरकार के कई और नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। खान का आरोप है कि इन नेताओं ने 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान अभियान की समयसीमा खत्म होने के बावजूद पदयात्राएं निकालीं और आचार संहिता का उल्लंघन किया। कांग्रेस नेता के इस तरह अपने ही गठबंधन के साथी को घेरने से यह स्पष्ट हो चुका है कि महाराष्ट्र सरकार के लिए आने वाले दिन काफी मुश्किल साबित हो सकते हैं। 
महाराष्ट्र सदन की क्षमता 288 सदस्यों की है। इनमें से 170 विधायक महाविकास अघाड़ी गठबंधन के साथ हैं, जबकि एनडीए के विधायकों का आंकड़ा 113 है। एमवीए प्रमुख तौर पर तीन पार्टियों- शिवसेना (57), राकांपा (53) और कांग्रेस (43) के दम पर ही सत्ता में रहने में सफल हुआ है। इन तीन पार्टियों की कुल सीटों की संख्या ही एमवीए को बहुमत के आंकड़े- 145 से आठ सीट आगे यानी 153 पर खड़ा करती है, जबकि बाकी पांच पार्टियां और आठ निर्दलीय नेता इस गठबंधन को मजबूती देते हैं। 
कांग्रेस के 25 विधायकों ने सीधे तौर पर महाविकास अघाड़ी गठबंधन से असंतुष्टि जता दी है। दूसरी ओर भाजपा ने भी दावा किया है कि एमवीए के 25 नेता उसके संपर्क में हैं। एमवीए में शामिल तीन बड़ी पार्टियों के अलावा बाकी चार पार्टियों के रुख को लेकर कुछ भी साफ कहना जल्दबाजी होगी। इसी तरह जिन आठ निर्दलियों ने शिवसेना को समर्थन दिया है, उनमें से चार का सीधे तौर पर भाजपा से जुड़ाव रह चुका है।
उधर एनडीए के पास फिलहाल 113 विधायक हैं। उसे बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए 32  विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। अगर भाजपा नेता रावसाहेब दानवे के दावों को सच भी मान लिया जाए तो एनडीए के पास विधायकों का आंकड़ा 138 तक पहुंचता है। यानी अभी भी भाजपा गठबंधन बहुमत से दूर है।

विस्तार

भारत में जिस दौरान लोग पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी दौरान देश के कुछ और हिस्सों में भी राजनीतिक गतिविधियां अपने चरम पर रही थीं। जहां कर्नाटक में हिजाब विवाद का मुद्दा गरमाया था, वहीं गुजरात में पाठ्यक्रम बदलाव और अन्य मुद्दों की वजह से सियासी सरगर्मियां बरकरार थीं। एक और राज्य महाराष्ट्र में पिछले करीब दो महीने से भाजपा 10 मार्च के बाद राजनीतिक भूचाल लाने की चेतावनी दे रही थी। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के इन बयानों को पहले तो  सत्तासीन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में शामिल शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस ने हंसी में उड़ाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और पड़ोसी गोवा के चुनावी नतीजे सामने आए, वैसे ही इस गठबंधन की चिंताएं बढ़ गईं। 



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