वो महज छह साल की बच्ची थी जब उसके नन्हें कंधों पर अपने परिवार को पालने की जिम्मेवारी आ गई. प्रोफेशन था एक्टिंग और फिल्मी नाम रखा गया – बेबी मीना. तेरह बरस बच्चों के खेलने-कूदने की उम्र होती है, इस मासूम उम्र में वो बेबी मीना से पूरी की पूरी एक्टर मीना कुमारी बन गई. अड़तीस बरस सात महीने की उम्र पूरी होते ही उसने दुनिया को अलविदा कहने की तैयारी कर ली. वो ‘ट्रेजिडी क्वीन’ कहलाई, ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार की तरह अपने निभाए चरित्रों के कारण नहीं, बल्कि अपनी निजी जिंदगी में आए त्रासद उतार-चढ़ाव के चलते.
‘ट्रेजिडी क्वीन’ शब्द भी शायद आपको छोटा लगने लगे, जब आपको पता चले कि अभी-अभी पैदा हुई एक नवजात बच्ची को इसलिए अनाथालय छोड़ना पड़ा क्योंकि उसके मां-बाप के पास डॉक्टर की फीस चुकाने के पैसे नही हैं. बाद में ये हो कि मजबूर बाप का दिल नहीं माने और वो अपनी बेटी को लेने अनाथालय के दरवाजे पर वापस पहुंच जाए. जहां वो देखे कि एक दिन की उस नन्हीं जान के शरीर पर चींटियां रेंग रही हैं. तब भी आप उसे क्या सिर्फ ‘ट्रेजि़डी क्वीन’ ही कहकर पल्ला झाड़ लेंगे?
जन्म के साथ शुरू हुआ यह त्रासद सिलसिला लगभग ताउम्र जारी रहा, तब तक, जब तक के सांसों ने शरीर का साथ देने से इंकार नहीं कर दिया. हां ये जरूर है कि जन्म की तारीख 1 अगस्त 1933 से 31 मार्च 1972 के बीच खुशियों के पल भी आए पर उनकी मियाद कभी ज्यादा लंबी नहीं रही. प्यार भी मिला, शायद थोड़े से समय के लिए परवान भी चढ़ा, लेकिन उसकी अपनी ही फिल्मों की तरह अंत, सुखांत कभी नहीं रहा.
कहते हैं दर्द से सराबोर दिल में कुछ अद्भुत रचने की ताकत होती है, फिर वो क्रिएशन किसी रूप में हो, फिल्मी रील पर संजीदा अभिनय हो या गायिकी या फिर शायरी. मीना कुमारी इस उक्ति पर पूरी तरह खरी उतरती है. सजीव अभिनय, जादू जगाती आवाज और अपनी अप्रतिम सुंदरता के बल पर 90 से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को हतप्रभ करने वाली अदाकारा और शायरा ‘नाज़’ अपने बारे में कहती है –
‘तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी,
बेलुत्फ जि़ंदगी के किस्से हैं फीके-फीके.’
मीना कुमारी जिनका वास्तविक नाम महज़बीं बानो था, ‘मीना कुमारी नाज़’ नाम से शायरी किया करती थीं. मीना कुमारी नहीं चाहतीं थीं कि उनकी गज़लें और नज़्में कहीं प्रकाशित हों. उनका लेखन स्वांत: सुखाय वाला लेखन था. अपने दोस्त गुलज़ार के साथ उनकी बैठकें हुआ करती थी और दोनों के बीच शेर-ओ-शायरी, सुनने-सुनाने का दौर चला करता था. मीना कुमारी की मौत के बाद गुलज़ार ने उनकी नज्मों और गज़लों का ‘तन्हा चांद’ के नाम से संकलन जारी किया.
असफल प्रेम की तरह, फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से उनकी शादी भी सफल नहीं रही. ‘पाकीज़ा’ पूरी करने के चलते दोनों फिर साथ आ गए. ‘पाकीज़ा’ को पर्दे पर आते देखने की मीना की चाहत पूरी जरूर हुई, लेकिन फिल्म को सुपर हिट करवाने वाली मीना उसके हिट होने के जश्न का हिस्सा नहीं बन सकीं. मीना कुमारी चाहती थीं कि उनकी कब्र पर इन लाइनों को अंकित किया जाए-
‘वो अपनी जि़ंदगी को
एक अधूरे साज़,
एक अधूरे गीत,
एक टूटे दिल,
लेकिन बिना किसी अफसोस के साथ
खत्म कर गई’
पुराने दौर में फिल्म फेयर अवार्ड की बॉलीवुड में वो हैसियत हुआ करती थी, जो इन दिनों दुनिया में आस्कर अवार्ड की है. देश के इस सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड के आयोजकों को 1962 में मीना कुमारी ने अजीब स्थिति में डाल दिया था. दरअसल, अवार्ड देने वाले अंतिम घोषणा तक दर्शकों को सस्पेंस में डाले रहते हैं कि उस वर्ष विशेष में किस फिल्म या कलाकार को श्रेष्ठता के सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठने का मौका मिलना है.
हुआ यूं कि 1962 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन फिल्मों को नामिनेशन मिला था, ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘मैं चुप रहूंगी’ और ‘आरती’. तीनों ही फिल्मों की नायिका थीं, मीना कुमारी. इस साल मीना कुमारी का कम्पीटीशन, मीना कुमारी से ही था. यह बिरला अवसर था जब नॉमिनेशन के साथ ही तय हो गया था किस अभिनेत्री को उस साल का फिल्म फेयर अवार्ड मिलेगा. यानि मिस्ट्री मूवी का सस्पेंस शुरू होते ही खत्म. बहरहाल, अवार्ड, ‘न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया’ गीत को पर्दे पर साकार करने वाली ‘साहिब बीवी और गुलाम’ की ‘छोटी बहु’ को मिला. इस फिल्म को बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय समारोह के लिए नामांकित किया गया, जहां मीना कुमारी को प्रतिनिधित्व के लिए चुना गया.
मीना कुमारी ने शुरूआती कुछ फिल्मों में ही पार्श्व गायन किया बाद में उन्होंने एक्टिंग पर फोकस किया. भले ही उनके गाए गीत पॉपुलर नहीं हुए लेकिन उन पर फिल्माए गए गीतों को लोग बड़े चाव से सुना करते थे, सुना करते हैं. उनकी अंतिम फिल्म ‘पाकीज़ा’ में लता मंगेशकर द्वारा गाए गीत आज भी हवा में गूंज रहे हैं – इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा, चलो दिलदार चलो, यूं ही कोई मिल गया था, ठाड़े रहियो ओ बांके यार.
इसके अलावा पर्दे पर गाए उनके गीत – हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे (दिल एक मंदिर), पिया ऐसो जिया में (साहिब बीवी ओर गुलाम), तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल), हम इंतजा़र करेंगे तेरा कयामत तक (बहु बेगम), नगमा ओ शेर की बारात किसे पेश करूं (गज़ल), दिल जो न कह सका (भीगी रात), दूर कोई गाए धुन ये सुनाए (बैजू बावरा) और ना बोले ना बोले राधा न बोले रे (आजाद) भी खूब सुने जाते हैं.
1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी के नाम को घर घर तक पहुंचा दिया. फिल्म पूरे सौ सप्ताह तक सुनहरे पर्दे को रोशन करती रही. 1954 में उन्हें इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए पहले फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया. ‘परिणीता’ (1953) ने महिलाओं के दिल में खास जगह बनाई. लोग न सिर्फ उनके अभिनय की अलग शैली के कायल हुए बल्कि उनकी दिलकश आवाज़ ने भी दर्शकों को लुभाया. ‘परिणीता’ के लिए उन्हें लगातार दूसरा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला. इसी साल आई उनकी सामाजिक सरोकार वाली फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ (1953) आई. इस फिल्म को 1954 के कांस फिल्म समारोह में पुरस्कृत होने वाली पहली फिल्म का दर्जा मिला.
उनकी चर्चित फिल्मों में चांदनी चौक, एक ही रास्ता, आजाद (दिलीप कुमार), यहूदी, शारदा, सहारा, दिल अपना प्रीत पराई, कोहिनूर, मैं चुप रहूंगी, चित्रलेखा, काजल, दिल एक मंदिर शामिल हैं. गुलज़ार की शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना अभिनीत ‘मेरे अपने’ में नानी मां की भूमिका में भरपूर सराहना मिली. इसी तरह राजेश खन्ना – मुमताज़ की हिट फिल्म ‘दुश्मन’ की विधवा भाभी भी लोगों के ज़ेहन में लंबे समय तक छाई रही.
मुंबई की मीठावाला चाल में जन्म लेने वाली मीना कुमारी का बचपन जिस जगह और जिन हालात में गुजरा, उस माहौल में बच्चे पढ़ाई से दूर भागते है. यहां बच्ची महज़बीं को पढ़ने का खूब शौक था, लेकिन अर्थाभाव ने उसे स्कूल से दूर कर अभिनय की व्यावसायिक दुनिया में ढकेल दिया. बाद में दुनियादारी ने उसे जिंदगी का ऐसा सबक सिखाया कि संजीदा शायर बन गई.
अजीब सफर था मीना का! कहां से शुरू हुआ और कहां पहुंच गया! ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ फिल्म में हिचकोले खाती नाव में, सफेद साड़ी में बैठी मीना कुमारी गीत गा रही है या अपनी दास्तां सुना रही है, पता नहीं?
ये रोशनी के साथ क्यूं, धुआं उठा चिराग़ से,
ये ख्वाब देखती हूं मैं, के जग पड़ी हूं ख्वाब से,
अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खतम
ये मंजि़लें हैं कौन-सी, न वो समझ सके न हम’
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)