नासा ने कहा है कि इन एक्सोप्लैनेट में पृथ्वी जैसी छोटी और चट्टानी दुनिया से लेकर ‘सुपर अर्थ’ शामिल हैं, जो हमारे सौर मंडल के ग्रहों से भी बड़े हैं। इनमें बृहस्पति और ‘मिनी-नेप्च्यून्स’ से बड़े ग्रह भी हैं। कुछ ग्रह तो एकसाथ दो तारों की परिक्रमा करते हैं, जबकि कई ग्रह मरे हुए तारों अवशेषों के चारों ओर घूमते हैं।
नासा एक्सोप्लैनेट साइंस इंस्टीट्यूट के एक रिसर्च साइंटिस्ट जेसी क्रिस्टियनसेन ने कहा कि यह सिर्फ एक नंबर नहीं है। उनमें से हरेक ग्रह एक नई दुनिया है। वैज्ञानिक ने कहा कि वह हर ग्रह को लेकर उत्साहित हो जाते हैं, क्योंकि उनके बारे में अभी कुछ नहीं पता है।
हमारी आकाशगंगा में सैकड़ों अरबों ग्रहों के होने की संभावना है। शुरुआत में हम सिर्फ उन ग्रहों का पता लगाने में सक्षम थे, जिन्होंने हमारे सूर्य को घेरा हुआ था। 1992 में वैज्ञानिकों ने ऑब्जर्वेट्री की मदद से ग्रहों का पता लगाना शुरू किया। इनमें सबसे पहले एक न्यूट्रॉन तारे के बारे में पता चला, जिसे पल्सर के रूप में जाना जाता था। पल्सर से आने वाली आवाज का अध्ययन करते हुए वैज्ञानिकों ने इसके चारों ओर ऑर्बिट में ग्रहों का पता लगाया।
पेपर की मुख्य लेखक अलेक्जेंडर वोल्स्ज्जन ने 30 साल पहले हमारे सौर मंडल के बाहर नए ग्रहों के होने की पुष्टि की थी। तब उन्होंने कहा था कि अगर न्यूट्रॉन स्टार के चारों ओर ग्रहों को ढूंढा जा सकता है तो ग्रहों को हर जगह होना चाहिए।
अब वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जेम्स वेब जैसे नए टेलीस्कोप और उनमें सेटअप किए गए सेंसटिव इंस्ट्रूमेंट एक्सोप्लैनेट रिसर्च को तेजी से आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। अगले कुछ साल में कई और टेलीस्कोप भी लॉन्च होने की उम्मीद है। इनमें, नैन्सी ग्रेस रोमन स्पेस टेलीस्कोप को 2027 में लॉन्च किया जा सकता है। इसके अलावा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के ARIEL मिशन को साल 2029 में लॉन्च किए जाने की तैयारी है।