नई दिल्ली. भारत में कोरोना के मामलों में पिछले कुछ दिनों से कमी देखी जा रही है लेकिन विश्व के कई देशों में कोरोना के मामले कई गुना तेज गति से बढ़ रहे हैं. विश्व के फ्रांस, इटली, जर्मनी, साउथ कोरिया, अमेरिका, इंग्लेंड, डेनमार्क, रूस आदि देशों में हजारों की संख्या में रोजाना कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं. इन सबके पीछे न केवल ओमिक्रोन वेरिएंट बल्कि डेल्टा और ओमिक्रोन से मिलकर बना डेल्टाक्रोन वेरिएंट भी जिम्मेदार बताया जा रहा है. हालांकि विश्व में चारों ओर कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बावजूद भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि इन देशों में कोरोना के बढ़ते केसेज के बावजूद भारत के लिए चिंता की कोई बात नहीं है लेकिन अगर चीन में कोरोना के मामले बढ़ते हैं तो भारत के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा हो सकती है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, डॉ. सीजी पंडित, डॉ. आर आर गंगाखेड़कर न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में कहते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रोन के मामले 24 नवंबर 2021 में सामने आए थे और भारत में दिसंबर के अंत में ही ओमिक्रोन के मामले आने शुरू हो गए. इस दौरान विश्व के अन्य देशों में ओमिक्रोन का प्रकोप देखने को नहीं मिल रहा था, जैसा कि अब दिखाई दे रहा है. अभी उनके यहां तेजी से कोरोना फैल रहा है और वह बढ़ता ही जा रहा है. लिहाजा ये कहा जा सकता है कि बाकी देशों में ओमिक्रोन का सर्ज हमारे देश के बाद में दिखाई दिया है. वहीं वैज्ञानिक रूप से देखें तो विश्व में इस समय जो कोरोना केस आ रहे हैं वे ओमिक्रोन के वेरिएंट बीए. टू के आ रहे हैं. इस वेरिएंट भारत में तीसरी लहर में संक्रमण फैला चुका है. ऐसे में भारत में यह वेरिएंट पहले ही अपना काम कर चुका है और ज्यादा जनसंख्या को अपनी गिरफ्त में ले चुका है. उस दौरान देखा गया था कि इस वेरिएंट के ज्यादा संक्रामक होने के बावजूद कोई नुकसान नहीं हुआ था तो अब कैसे हो सकता है.
डॉ. गंगाखेड़कर कहते हैं कि जब तक विश्व में संक्रमण का मुख्य वायरस बीए. टू (BA.2) वेरिएंट है, तब तक भारत के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. भारत में वैक्सीन का कवरेज भी काफी अच्छा है. इसके अलावा बहुतायत में लोगों को पहले ही ओमिक्रोन हो चुका है. अब विश्व के कई देशों में संक्रमण फैलने से फिर से लोगों को ओमिक्रोन हो जाएगा या किसी व्यक्ति को दो बार ओमिक्रोन का संक्रमण हो जाएगा, तो इस संबंध में अभी कोई अध्ययन या आंकड़े उपलब्ध नही हैं. जहां तक मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति का सवाल है तो ऐसा देखा भी नहीं गया है कि अगर एक वेरिएंट प्रभावित कर चुका है तो वही वेरिएंट फिर से शरीर में पहुंचकर नुकसान पहुंचाए क्योंकि यहां रोग प्रतिरोधक शक्ति काम करती है और वायरस को आने से रोकती है. इसके बावजूद खतरा पूरी तरह टला नहीं है. भारतीय लोगों के लिए भी कोरोना का खतरा बना हुआ है.
कोरोना को लेकर ये है खतरा
डॉ. गंगाखेड़कर कहते हैं कि सबसे बड़ा सवाल है कि जब बाकी देशों में फैल रहे कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है तो फिर डर किस बात का है. तो यहां ध्यान देने वाली बात है कि इस विषाणु का जब रेप्लिकेशन होता है तो कमियों की वजह से म्यूटेशन होते हैं. यह वायरस जितने ज्यादा बार म्यूटेट करेगा, उतने ही ज्यादा म्यूटेंट बनने की संभावना पैदा हो जाती है. आमतौर पर देखें तो यह वायरस 15 दिन एक मनुष्य के शरीर में रहता है. इन दिनों में कोई भी वायरस कितने बार आखिर म्यूटेट होने की कोशिश करेगा. इतनी छोटी अवधि में शरीर के अंदर रहने पर बहुत कम म्यूटेशन होने की संभावना है. अगर कोई वायरस ज्यादा दिन तक शरीर में रहता है तो उसमें म्यूटेशन का खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ जाता है.
गौरतलब है कि जिस जगह या जिस देश में असुरक्षित जनसंख्या ज्यादा है, और जिस जनसंख्या के ज्यादा से ज्यादा वायरस की चपेट में आने की संभावना रहती है वहां वायरस के म्यूटेशन का खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ जाता है और नए-नए वेरिएंट आने की आशंका पैदा हो जाती है. मान लीजिए किसी देश में 2 करोड़ लोग हैं और यह वायरस उन लोगों के शरीर में गया, कहीं पर 50 करोड़ लोग हैं और उनके शरीर में गया तो जहां जनसंख्या ज्यादा है वहां वायरस के म्यूटेशन ज्यादा होने की संभावना है, बजाय कम जनसंख्या के.
इसलिए भारत को चीन से है डर
डॉ. खेड़ेकर कहते हैं कि अब सबसे बड़ा सवाल है कि भारत के लोगों को डर किससे है ? तो हमें सिर्फ चीन से खतरा है. वायरस को चीन को बेहतर तरीके से नियंत्रित करना है. चाहे फ्रांस हो, जर्मनी हो, इटली हो, हांगकांग या साउथ कोरिया या अन्य कोई देश हो, इनकी जनसंख्या काफी कम है. महज कुछ करोड़ों में है. इतनी जनसंख्या वाले हमारे देश में राज्य हैं. अगर इन छोटे देशों में वायरस गया और शरीरों में रिप्रोड्यूस होना शुरू हुआ तो वहां से बाहर निकलना मुश्किल है क्योंकि इनकी जनसंख्या काफी कम है, ऊपर से कम लोगों में संक्रमण के चलते म्यूटेशन भी कम होगा लेकिन चीन में विश्व के पहले नंबर पर जनसंख्या है. वहां अगर चीन कोरोना के प्रति अपनी जीरो कोविड नीति नहीं अपनाता है तो वहां सारी जनसंख्या इस वायरस की चपेट में आ जाएगी और फिर यह संक्रमण बहुत तेजी से फैलेगा और उसमें नया वेरिएंट बन जाएगा.
डॉ. खेड़कर कहते हैं कि वुहान से वायरस आने के दौरान चीन की जीरो कोविड की पॉलिसी सफल रही थी लेकिन इस वक्त भी सफल होगी, यह अभी सवालों के घेरे में हैं. ऐसे में जरूरी है कि चीन में आ रहे कोरोना के मामलों में नजर रखी जाए और देखा जाए कि वहां किस हद तक केसेज बढ़ रहे हैं. चीन में हुआ आउटब्रेक भारत को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए कम से कम एक से दो महीने तक कोविड से निपटने के लिए चीन की नीति को देखना होगा. वहां फिलहाल कोविड का बढ़ता हुआ ट्रेंड देखने को मिल रहा है. सौ दो सौ से शुरू होकर मामले पांच हजार रोजाना या इससे भी ऊपर पहुंच चुके हैं.
वे कहते हैं कि जहां तक भारत की बात है तो बाकी के देशों में कोविड फैल भी रहा है तो भी भारत सुरक्षित है. इसकी वजहें वैक्सीनेशन, ओमिक्रोन की तीसरी लहर में लोगों का ज्यादा से ज्यादा संख्या में संक्रमित होना, लोगों में हाइब्रिड इम्यूनिटी का विकसित होना आदि. इसीलिए भारत को अभी डरने की जरूरत नहीं है.
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