Opinion: मोदी सरकार की सख्ती से NGO पर बनाए गए कानून का दिखने लगा है असर


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पिछले कुछ सालों में उन तमाम गैर-सरकारी संगठनों पर नकेल कसी है, जो कथित तौर पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहते थे. राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक व्यवस्था को पुख्ता करने का काम केंद्रीय गृह मंत्रालय (Union Home Ministry) का होता है और मंत्रालय ने ऐसे ही संगठनों के खिलाफ जांच और उचित कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिए हैं. दूसरी तरफ, जो संगठन देश और देशवासियों के लिए जनकल्याण की भावना से काम करते हैं और भारतीय कानून को मानते हैं, सरकार की तरफ से उचित मदद भी दी जा रही है.
कुछ साल पहले तक केंद्रीय खुफिया एजेंसी आईबी (IB), ईडी (ED), सीबीआई (CBI), एनआईए (NIA), इनकम टैक्स (Income Tax) समेत अन्य एजेंसियों ने एक रिपोर्ट सरकार को दी थी कि देश में कई संगठन, गैर सरकारी संगठन, सरकारी सेवा में कार्यरत कुछ अधिकारी विदेश से प्राप्त चंदे का प्रयोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर देशविरोधी गतिविधियों में कर रहे हैं. इसके चलते देश में कई विकासशील प्रोजेक्ट्स और योजनाओं लंबित हो रही हैं. ये लोग जनभावनाओं को भड़काना और साजिश के तहत धर्मांतरण को बढ़ावा देना जैसे कार्यों में लिप्त हैं. इसी को ध्यान में रहते हुए ऐसे मामलों पर एक ट्रांसपेरेंसी के लिए एफसीआरए संशोधन से जुड़ा एक विधेयक पारित किया गया. ऐसे संगठनो और गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ 1 जनवरी 2022 से उस कानून का असर दिखना शुरू हो चुका है. पिछले साल 2021 के अंत तक 22,762 संगठन एफसीआरए में पंजीकृत थे, लेकिन एक जनवरी को ये संख्या घटकर 16,829 रह गई.

देश के कानून का पालन करना है जरूरी
पिछले साल 2021 के दिसंबर महीने में केंद्रीय गृहमंत्रालय (MHA) द्वारा एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए कोलकाता में स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी (MoC) संस्था का एफसीआरए रजिस्ट्रेशन रद्द करने की खबर आई थी. इस मामले को काफी सुर्खियों मिली थीं. इसके बाद राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई थी, क्योंकि ये मदर टेरेसा द्वारा स्थापित एक संस्था है, जो भारत सहित कई अन्य देशों में काम करती है. जब संस्था के पंजीकरण रद्द करने से संबंधित मसले पर जानकारी इकट्ठा की गई तो ये पता चला कि ये कार्रवाई कानून के तहत हुई है. एफसीआरए संसोधन से जुड़े विधेयक (FCRA Amendment Bill 2020) को साल 2020 में पारित किया गया था. उसे प्रभावी करने के लिए काफी समय से काम चल रहा था. गृह मंत्रालय द्वारा पहले ही एक बयान में साफ कर दिया गया था कि 25 दिसंबर तक अगर कोई NGO एलिजिबिलिटी क्राईटेरिया को पूरा नहीं करेगा, उस संस्था का पंजीकरण रिन्यू नहीं किया जाएगा. लेकिन कई संस्थाओं द्वारा उस मसले पर लापरवाही बरती गई. इसी वजह से हजारों एनजीओ का पंजीकरण रद्द हुआ था. मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था का पंजीकरण रद्द होना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा था. हालांकि बाद में संस्था द्वारा इस मामले पर अपनी लापरवाही समझते हुए तमाम कागजी औपचारिकताओं को पूरा किया गया और उसके बाद कुछ ही दिनों के अंदर मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था की एफसीआरए पंजीकरण बहाल कर दिया गया.

ये तो एक संस्था का उदाहरण है, लेकिन अगर इस मामले को समझना है तो उस कानून और बदलावों को जानना बेहद आवश्यक है. इस कानून के तहत ये बताया गया था कि हर साल हजारों करोड़ रुपये के विदेशी योगदान (Foreign Contribution) के इस्तेमाल और समाज कल्याण का काम करने वाले वास्तविक गैर-सरकारी संगठनों के भुगतान में पारदर्शिता बेहद जरूरी है. यानी विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए किसी भी एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन के लिए विदेशी अंशदान (विनियमन) कानून के तहत पंजीकरण कराना बेहद आवश्यक है.

16,754 एनजीओ पर प्रतिबंध, मामला कोर्ट में
पिछले कुछ सालों के आंकड़ों की बात करें तो तकरीबन 16,754 से ज्यादा एनजीओ का पंजीकरण रद्द हो चुका है. इसके विरोध में करीब 6,000 से ज्यादा एनजीओ के एफसीआरए (FCRA) लाइसेंस रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई. ग्लोबल पीस इनिशिएटिव और इस संगठन के संस्थापक डॉ के.ए. पॉल द्वारा याचिका दायर की गई थी. एनजीओ के तरफ से वकील संजय हेगड़े ने उन गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस का विस्तार करने के लिए एक वैकल्पिक निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई. परंतु, 25 जनवरी को हुई इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि “एनजीओ अपने लाइसेंस रिन्यू करने के लिए केंद्र सरकार के सामने अपनी बात रखें. केंद्र आपके सुझावों और दलीलों पर अपने विवेक के मुताबिक कानून के तहत उचित फैसला ले.” यानी गैर सरकारी संगठनों को सुरक्षा संबंधी अंतरिम आदेश देने से देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल इन्कार किया है. कोर्ट ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार का ये नीतिगत फैसला है, आप फिलहाल सरकार के पास जाएं और वहां की कार्रवाई से अगर आप असंतुष्ट होते हैं तो आप फिर कोर्ट में आएं. उसके बाद कोर्ट उसे अवश्य सुनेगा. फिलहाल की स्थिति के मुताबिक, कोर्ट केंद्र सरकार के इस नीतिगत फैसले पर दखल नहीं देना चाहता है. हालांकि कोर्ट की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील में ये कहा कि करीब 11,594 एनजीओ ने रजिस्ट्रेशन रिन्यू करने के लिए आवेदन दिया था और कटऑफ तिथि के उनके लाइसेंस नवीनीकरण यानी रिन्यू कर दिए गए हैं.

कैसे होता रहा है विदेशी चंदे से “खेल”
खुफिया एजेंसी और जांच एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, देश में कई एनजीओ के खिलाफ तफ़्तीश करने पर ये पाया गया कि पांच प्रमुख तरीके से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता रहा है, जो प्रमुख तौर पर इस प्रकार से हैं-
1. भारत में कार्यरत एनजीओ में एफसीआरए के माध्यम से विदेशों से लाखों-करोड़ों रुपये का निवेश करवाकर देश के पॉलिसी, कानून में बदलाव, सरकारी योजनाओं का विरोध प्रदर्शन, बांध का निर्माण, न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स, आदिवासियों से जुड़े मसले इत्यादी में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर अपना एजेंडा चलाया जाता रहा है, ताकि विकास प्रभावित हो सके.
2. मानवाधिकार के नाम पर अप्रत्यक्ष तौर पर अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों, संगठनों को मदद करना, उसके समर्थन में सरकार और कानून का विरोध प्रदर्शन करवाना, संदिग्ध लोगों और उसके संगठनों को वित्तीय सहायता (Terror funding), वैचारिक तौर पर उसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म, कुछ मीडिया न्यूज़ आर्टिकल के द्वारा अपने गंदे विचारों को प्रसारित/प्रचारित करने के कार्यों को अंजाम दिए जाने का आरोप लगता रहा है.
3. धार्मिक मुद्दों पर लोगों को बांटने, एक साजिश के तहत धर्मांतरण को बढ़ावा देने का कार्य करना, इसके लिए कई एनजीओ के कार्यकर्ताओं को जंगल, गांवों और शहरों में एक साजिश के तहत लगातार ऐसे कार्यों को अंजाम देने का आरोप लगता रहा है, जो विदेशी चंदे का दुरुपयोग करके किये जाते हैं.
4. कई एनजीओ पर ये भी आरोप लगता रहा है कि जिस कल्याणकारी योजनाओं के लिए विदेश से चंदा लिया जाता है, उस पैसों को उस कार्य के बजाय किसी अन्य संदिग्ध गतिविधियों में लगाया जाता रहा है. लिहाजा सैकड़ों-हजारों एनजीओ के खिलाफ मिले इनपुट्स को देखते हुए ही ऐसा कानून बनाया गया है.
5. कई प्राइवेट कंपनियों द्वारा कालेधन यानी ब्लैकमनी को छुपाने के लिए एनजीओ के मार्फत काला खेल खेलने की जानकारी मिली थी और उससे जुड़े सबूतों को प्राप्त किया गया था.
2020 के संशोधन में क्या था

केंद्र सरकार द्वारा संदिग्ध गतिविधियों को अंजाम देने वाले गैर सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं पर नकेल कसने के लिए साल 2020 में जो संशोधन किया गया. उसी के चलते अब हजारों संदिग्ध एनजीओ पर कार्रवाई हो रही है, उस कानून को जानना भी बेहद आवश्यक है, जो प्रमुख तौर पर इस प्रकार से हैं –

1. पहले गैर सरकारी संगठनों (NGO) के कई अलग बैंक एकाउंट होते थे, जिसमें विदेशों से करोड़ों रुपये का चंदा आता था. नए संसोधन के तहत अब NGO को विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए मान्यता प्राप्त एक बैंक शाखा का निर्धारण किया गया है. दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI Bank of India) शाखा में बैंक एकाउंट खुलवाना अनिवार्य कार्य दिया है. इससे बैंकिंग लेनदेन पर नजर रखी जा सकेगी. यदि कोई जनकल्याण से जुड़े मसले पर कार्य कर रहा है उसे और बेहतर तरीके से मदद दी जा सकेगी.
2. एनजीओ की ऑडिटिंग अनिवार्य कर दी गई है. जिसकी जानकारी सरकार द्वारा नियुक्त एजेंसी द्वारा मांगे जाने पर देनी ही होगी.
3. फंड के दुरुपयोग पर लगी पाबंदी: जिस कार्य हेतु संस्था को विदेशी चंदा मिला है, उसी कार्य में उस संस्था को उन पैसों को निवेश करना होगा. उससे जुड़ी तमाम जानकारी, सबूतों को अपने पास सुरक्षित रखना होगा.
4. एनजीओ संस्था को अपनी एक्टिविटी दिखानी होगी. कुछ साल पहले तक एनजीओ की लाइसेंस नवीनीकरण यानी रिन्यू की प्रक्रिया बेहद ढीली और कमजोर थी, जिसका फायदा उठाकर कई संदिग्ध कार्यों और करोड़ों रुपये के लेनदेन होते रहे थे. इसलिए नवीनीकरण की प्रक्रिया को ट्रांसपेरेंट किया गया है.
5. खुफिया एजेंसी आईबी (Intelligence Agency IB) द्वारा गृह मंत्रालय को दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ समय पहले कई NGO संस्थाओं द्वारा विदेश से आए चंदे की रकम को किसी अन्य संदिग्ध कार्यों में खर्च कर दिया जाता था. उसका हिसाब जांच एजेंसी या संबंधित विभागों द्वारा मांगने पर झूठी जानकारी साझा करते हुए बता दिया जाता था कि दफ्तर के प्रशासनिक कार्यों में पैसा खर्च हुआ है. जैसे कि एनजीओ में कार्य करने वाले कर्मचारियों की सैलरी, दफ्तर का रेंट, वाहन-विमान सुविधाओं पर खर्च इत्यादी. गलत जानकारी देकर 50 फीसदी खर्चे को कागजों पर दिखा दिया जाता था, जबकि वैसा होता नहीं था. अब इस मसले पर हुए नए कानूनी संसोधन के बाद विदेशी चंदे का मात्र 20 प्रतिशत रकम ही संस्था द्वारा एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े कार्यों में खर्च कर सकते हैं.
6. एनजीओ को आधार कार्ड सहित अन्य महत्वपूर्ण पहचान पत्रों से जोड़ा गया और PAN कार्ड के दुरुपयोग को भी रोका गया.

इस तरह से केंद्र सरकार द्वारा देश के अंदर हजारों एनजीओ पर थोड़ी लगाम अवश्य लगाई गई है. सरकार की सोच देश को आगे बढ़ाने और देश की सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करने की है. इसीलिए ये कानून बना है. इसे पालन करने में उन संस्थाओं को थोड़ी परेशानी होगी, जो गलत काम कर रहे थे. अच्छी नीयत वाले संस्थाओं और सामाजिक कार्य करने वालों को खुशी भी होगी. भारत में शिक्षा, पर्यावरण, संस्कृति, धार्मिक मामलों को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये का चंदा विदेश से कई संस्थाओं द्वारा प्रदान किया जाता है. अगर उसे सही तरीके से और नेक दिल से प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही हमारे देश के विकास के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है.

(डिसक्लेमर – लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)

Tags: Modi government, Narendra modi

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