1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था तो इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान में 12.9% हिंदू अल्पसंख्यक रह गए थे। समय बदला, हालात बदले और 75 साल में हिंदू अल्पसंख्यकों की आबादी भी बदल गई। इस आबादी की पाकिस्तान की कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी 12.9% से 2.14% हो चुकी है।
पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातार खराब हो रही है। इन विपरित परिस्थितियों के बीच पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए एक अच्छी खबर आई। पहली बार पाकिस्तान में कोई हिंदू महिला डीएसपी बन पाई है। ये महिला है मनीषा रुपेता। मनीषा पाकिस्तान में डीएसपी के तौर पर नियुक्त होने वाली पहली हिंदू महिला हैं। सिंध लोक सेवा की परीक्षा पास करने और प्रशिक्षण हासिल करने के बाद उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।
आज हम आपको मनीषा के बारे में सबकुछ बताएंगे। कैसे उन्होंने तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए इस मुकाम को हासिल किया? जो 75 साल में नहीं हुआ वो अब कैसे हो गया? आइए जानते हैं…
पहले मनीषा के बारे में जान लीजिए
मनीषा सिंध के पिछड़े और छोटे से जिले जाकूबाबाद की रहने वाली हैं। यहीं से उन्होंने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हासिल की। उनके पिता जाकूबाबाद में व्यापारी थे। मनीषा जब 13 साल की थीं तब उनका निधन हो गया था।
मनीषा की मां ने मेहनत करके अपने पांच बच्चों की अकेले परवरिश की। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वो कराची आ गईं। मनीषा ने पाकिस्तानी मीडिया को अपने संघर्ष की कहानी बताई। उन्होंने कहा, उन दिनों जाकूबाबाद में लड़कियों को पढ़ाने लिखाने का माहौल नहीं था। अगर किसी लड़की की शिक्षा में दिलचस्पी होती थी तो उसे केवल मेडिकल की पढ़ाई पढ़ने के लिए उपयुक्त माना जाता था। मनीषा की तीन बहनें एमबीबीएस डॉक्टर हैं, जबकि उनका इकलौता और छोटा भाई मेडिकल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा है।
कैसे बन गईं डीएसपी?
मनीषा कहती हैं, ‘मैंने भी डॉक्टर बनने की कोशिश की थी, लेकिन एक नंबर कम होने की वजह से एमबीबीएस में एडमिशन नहीं मिला। इसके बाद मैंने डॉक्टर ऑफ फिजिकल थेरेपी की डिग्री ली। पढ़ाई के दौरान ही मैं बिना किसी को बताए सिंध लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी भी करती रही। परीक्षा में मुझे 16वां स्थान मिला। तब ओवरऑल 438 आवेदक सफल हुए थे।
पुलिस स्टेशन और अदालतों में नहीं जातीं महिलाएं
मनीषा ने पाकिस्तान की कुरीतियों का भी जिक्र किया। कहा यहां आमतौर पर महिलाएं पुलिस स्टेशन और अदालतों के अंदर नहीं जाती हैं। इन स्थानों को महिलाओं के लिए सही नहीं माना जाता है। इसलिए जरूरत पड़ने पर यहां आने वाली महिलाएं पुरुषों के साथ आती हैं।
मनीषा कहती हैं, ‘मैं इस धारणा को बदलना चाहती थीं कि अच्छे परिवार की लड़कियां पुलिस स्टेशन नहीं जाती हैं। हमें यह स्पष्ट तौर पर पता है कि कौन सा पेशा महिलाओं के लिए है और कौन सा था। लेकिन मुझे हमेशा पुलिस का पेशा आकर्षित करता रहा और प्रेरित भी करता रहा। मुझे लगता है कि यह पेशा महिलाओं की स्थिति को सशक्त बनाता है।’
कराची में ट्रेनिंग, रिश्तेदार अभी भी डरते हैं
- मनीषा ने स्वतंत्र रूप से डीएसपी का प्रभार संभालने से पहले कराची के सबसे मुश्किल इलाके ल्यारी में ट्रेनिंग ली। इस इलाके में पुलिस विभाग में ऑफिसर बनने वाली मनीषा पहली महिला हैं। मनीषा कहती हैं कि मेरे रिश्तेदार और समुदाय (हिंदुओं) का मानना है कि वह लंबे समय तक इस नौकरी में टिक नहीं पाएगी। लोगों का मानना है कि मैं जल्द ही अपनी नौकरी बदल दूंगी।
- मनीषा अपनी नौकरी के अलावा लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कराने वाली एक एकेडमी में पढ़ाती भी हैं।