President Election: द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी के वो पांच साल… जिन्होंने दिया सबसे ज्यादा दर्द, जानें संघर्ष की कहानी


27 अक्टूबर 2009। वक्त सुबह के सात बजे थे। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के पत्रपदा इलाके में हलचल तेज थी। यहां एक घर में 25 साल का एक युवक बिस्तर पर बेसुध मिला। घरवाले आखिरी उम्मीद के साथ अस्पताल ले गए, लेकिन यहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। ये लाश थी लक्ष्मण मुर्मू की। 

लक्ष्मण मुर्मू कोई और नहीं, बल्कि पूर्व मंत्री द्रौपदी मुर्मू के बेटे थे। वही द्रौपदी मुर्मू जो आज भाजपा की अगुआई वाली एनडीए से देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार हैं। संख्या बल के लिहाज से द्रौपदी का अगला राष्ट्रपति बनना लगभग तय है।  

आज हम आपको द्रौपदी की जिंदगी के बारे में बताएंगे। इसमें उन सबसे दर्दनाक घटनाओं के बारे में भी बताएंगे, जिसने द्रौपदी का हंसता-खेलता परिवार बर्बाद कर दिया था। इसके साथ ही आपको बताएंगे पांच साल के त्रासद दौर से मुर्मू परिवार के निकले की कहानी।  

 

पहले जानिए द्रौपदी मुर्मू के बारे में 

द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। भगत टुडू और सरैनी टुडू। 

द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और एक एक बेटी हुई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं। 

 

…और शुरू हुआ राजनीतिक सफर 

राजनीति में आने से पहले मुर्मू ने एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में कार्य किया था।

1997 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा। ओडिशा के राइरांगपुर जिले में पार्षद चुनी गईं। इसके बाद वह जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ीं। राइरांगपुर विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया। 

2002 में मुर्मू को ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2009 में वह राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद 2009 में वह लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं। 2015 में द्रौपदी को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। 

राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के साथ ही वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बन जाएंगी। इसके अलावा देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने का खिताब भी वह अपने नाम करेंगी। 64 साल की द्रौपदी राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की शख्सियत बनेंगी।  

 

बेटे की रहस्यमयी मौत का नहीं हो पाया खुलासा

2009 में हुई लक्ष्मण मुर्मू की मौत रहस्यमयी रही। लक्ष्मण अपने चाचा-चाची के साथ रहते थे। इस घटना के वक्त द्रौपदी रायरंगपुर में थीं। बताया जाता है कि लक्ष्मण शाम को अपने दोस्तों के साथ गए थे। देर रात एक ऑटो से उनके दोस्त घर छोड़कर गए। उस वक्त लक्ष्मण की स्थिति ठीक नहीं थी। चाचा-चाची के कहने पर दोस्तों ने लक्ष्मण को उनके कमरे में लिटा दिया। उस वक्त घरवालों को लगा कि थकान की वजह से ऐसा हुआ है, लेकिन सुबह बेड पर लक्ष्मण अचेत मिले। घरवाले डॉक्टर के पास ले गए, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। इस रहस्यमयी मौत का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है।    

 

चार साल बाद ही मिली दूसरी झकझोर देने वाली खबर

बेटे की मौत के सदमे से द्रौपदी अभी उभर भी नहीं पाई थीं कि उन्हें दूसरी झकझोर देने वाली खबर मिली। ये घटना 2013 की है। जब द्रौपदी के दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। द्रौपदी के दो जवान बेटों की मौत चार साल के अंदर हो चुकी थी। वह पूरी तरह से टूट चुकीं थीं।   

इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। द्रौपदी राजस्थान के माउंट आबू स्थित ब्रह्कुमारी संस्थान में जाने लगीं। यहां कई-कई दिन तक वह ध्यान करतीं। तनाव को दूर करने के लिए राजयोग सीखा। संस्थान के अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं। 

 



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