Reserve Bank Repo Rate: रिजर्व बैंक का अनुमान- घटेगी महंगाई, लेकिन आरबीआई से क्यों सहमत नहीं विशेषज्ञ


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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने कहा है कि वैश्विक परिस्थितियों के असर से भारत भी अछूता नहीं रहा है। इन परिस्थितियों का ही परिणाम है कि पिछले दिनों महंगाई दर सात फीसदी से ज्यादा रही। लेकिन उसका अनुमान है कि आने वाले दिनों में महंगाई (Inflation) घटेगी और वित्त वर्ष 2022-23 में महंगाई 6.7 फीसदी रह सकती है। आरबीआई का यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में कमी आने, ग्लोबल सप्लाई चेन में सुधार आने और खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में कमी आने की संभावना के आधार पर लगाया गया है। लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि रिजर्व बैंक का यह अनुमान सही नहीं है और आने वाले दिनों में भी भारत में महंगाई सात फीसदी से ज्यादा बनी रह सकती है।

रेपो रेट (Repo rate) में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए भी आरबीआई ने माना है कि वैश्विक कारणों का भारत की अर्थव्यवस्था (Economy) पर असर पड़ रहा है और इसके कारण वैश्विक सप्लाई चेन बाधित हुई, जिसके कारण महंगाई बढ़ी। यूक्रेन से कुछ मात्रा में गेहूं की सप्लाई अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुई है। यदि इसी तरह गेहूं की सप्लाई बनी रहे तो दुनिया के बाजारों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी आ सकती है और इससे महंगाई पर कुछ अंकुश लग सकता है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की इस समय जैसी परिस्थितियां हैं, उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि यह युद्ध अभी कितना दिन आगे खिंचेगा। यूक्रेन से गेहूं की सप्लाई कभी भी बाधित हो सकती है और इससे इसकी कीमतें दोबारा बढ़ सकती हैं।

भारत सहित पूरी दुनिया में महंगाई का एक बड़ा कारण तेल कीमतों में बढ़ोतरी रही थी। अब इसके मूल्यों में कमी आने और कुछ स्थिरता बने रहने के कारण महंगाई पर कुछ लगाम लगाने में मदद मिली है, लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं, यदि युद्ध और ज्यादा भड़का तो एक बार दोबारा पूर्व वाली परिस्थितियां बन सकती हैं और महंगाई बेलगाम हो सकती है।

चीन के लॉकडाउन का असर पड़ेगा

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरूण कुमार ने अमर उजाला से कहा कि चीन के अलग-अलग प्रांतों में कोरोना अभी भी खतरनाक रूप में पैर पसार रहा है और वहां प्रशासन को अलग-अलग शहरों में लॉकडाउन लगाना पड़ा है। लॉकडाउन लगाने से उन शहरों में हो रहा उत्पादन ठप पड़ जाता है और ग्लोबल सप्लाई में बाधा आ सकती है। यदि चीन में समय रहते कोरोना पर लगाम नहीं लगा तो आने वाले समय में महंगाई दोबारा बड़ी समस्या बनकर उभर सकती है।

ताइवान-चीन के संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। इस समय चीन भी युद्ध जैसी परिस्थिति पैदा करने के पक्ष में नहीं होगा, लेकिन यदि दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो इसका असर भी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।

घरेलू बाजार से भी बहुत सकारात्मक संदेश नहीं

रेपो रेट की बढ़ोतरी कर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान होता है कि इससे बाजार में तरलता में कमी आएगी और महंगाई पर अंकुश लगेगी। लेकिन इससे लोगों के कर्ज की ईएमआई बढ़ती है और उनकी जेब में खर्च के लिए कम पैसा बचता है। इसका सीधा असर लोगों की खरीद क्षमता पर पड़ता है और मांग में कमी आने की संभावना बन जाती है। मांग में कमी आने का सीधा असर कंपनियों पर पड़ता है और उनका उत्पादन प्रभावित होता है।

प्रो. अरूण कुमार ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे प्रमुख योगदान असंगठित क्षेत्र का होता है। इस सेक्टर में कामकाज अभी भी प्री-कोविड स्तर का नहीं हो सका है, जिसके कारण लोगों के पास पैसा नहीं पहुंच रहा है। इससे वे त्योहारी सीजन में भी आवश्यक वस्तुओं की खरीद में सक्षम नहीं होंगे और इस कारण त्योहारी सीजन भी सुस्त रह सकता है। अमेरिका और यूरोप में महंगाई दर अपने सार्वकालिक स्तर पर चल रही है। इन देशों में महंगाई होने से इनका आयात और भारत से होने वाला निर्यात कमजोर रह सकता है। इससे भी भारतीय उद्योगों का संकट बढ़ेगा।

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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने कहा है कि वैश्विक परिस्थितियों के असर से भारत भी अछूता नहीं रहा है। इन परिस्थितियों का ही परिणाम है कि पिछले दिनों महंगाई दर सात फीसदी से ज्यादा रही। लेकिन उसका अनुमान है कि आने वाले दिनों में महंगाई (Inflation) घटेगी और वित्त वर्ष 2022-23 में महंगाई 6.7 फीसदी रह सकती है। आरबीआई का यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में कमी आने, ग्लोबल सप्लाई चेन में सुधार आने और खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में कमी आने की संभावना के आधार पर लगाया गया है। लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि रिजर्व बैंक का यह अनुमान सही नहीं है और आने वाले दिनों में भी भारत में महंगाई सात फीसदी से ज्यादा बनी रह सकती है।

रेपो रेट (Repo rate) में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए भी आरबीआई ने माना है कि वैश्विक कारणों का भारत की अर्थव्यवस्था (Economy) पर असर पड़ रहा है और इसके कारण वैश्विक सप्लाई चेन बाधित हुई, जिसके कारण महंगाई बढ़ी। यूक्रेन से कुछ मात्रा में गेहूं की सप्लाई अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुई है। यदि इसी तरह गेहूं की सप्लाई बनी रहे तो दुनिया के बाजारों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी आ सकती है और इससे महंगाई पर कुछ अंकुश लग सकता है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की इस समय जैसी परिस्थितियां हैं, उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि यह युद्ध अभी कितना दिन आगे खिंचेगा। यूक्रेन से गेहूं की सप्लाई कभी भी बाधित हो सकती है और इससे इसकी कीमतें दोबारा बढ़ सकती हैं।

भारत सहित पूरी दुनिया में महंगाई का एक बड़ा कारण तेल कीमतों में बढ़ोतरी रही थी। अब इसके मूल्यों में कमी आने और कुछ स्थिरता बने रहने के कारण महंगाई पर कुछ लगाम लगाने में मदद मिली है, लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं, यदि युद्ध और ज्यादा भड़का तो एक बार दोबारा पूर्व वाली परिस्थितियां बन सकती हैं और महंगाई बेलगाम हो सकती है।

चीन के लॉकडाउन का असर पड़ेगा

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरूण कुमार ने अमर उजाला से कहा कि चीन के अलग-अलग प्रांतों में कोरोना अभी भी खतरनाक रूप में पैर पसार रहा है और वहां प्रशासन को अलग-अलग शहरों में लॉकडाउन लगाना पड़ा है। लॉकडाउन लगाने से उन शहरों में हो रहा उत्पादन ठप पड़ जाता है और ग्लोबल सप्लाई में बाधा आ सकती है। यदि चीन में समय रहते कोरोना पर लगाम नहीं लगा तो आने वाले समय में महंगाई दोबारा बड़ी समस्या बनकर उभर सकती है।

ताइवान-चीन के संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। इस समय चीन भी युद्ध जैसी परिस्थिति पैदा करने के पक्ष में नहीं होगा, लेकिन यदि दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो इसका असर भी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।

घरेलू बाजार से भी बहुत सकारात्मक संदेश नहीं

रेपो रेट की बढ़ोतरी कर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान होता है कि इससे बाजार में तरलता में कमी आएगी और महंगाई पर अंकुश लगेगी। लेकिन इससे लोगों के कर्ज की ईएमआई बढ़ती है और उनकी जेब में खर्च के लिए कम पैसा बचता है। इसका सीधा असर लोगों की खरीद क्षमता पर पड़ता है और मांग में कमी आने की संभावना बन जाती है। मांग में कमी आने का सीधा असर कंपनियों पर पड़ता है और उनका उत्पादन प्रभावित होता है।

प्रो. अरूण कुमार ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे प्रमुख योगदान असंगठित क्षेत्र का होता है। इस सेक्टर में कामकाज अभी भी प्री-कोविड स्तर का नहीं हो सका है, जिसके कारण लोगों के पास पैसा नहीं पहुंच रहा है। इससे वे त्योहारी सीजन में भी आवश्यक वस्तुओं की खरीद में सक्षम नहीं होंगे और इस कारण त्योहारी सीजन भी सुस्त रह सकता है। अमेरिका और यूरोप में महंगाई दर अपने सार्वकालिक स्तर पर चल रही है। इन देशों में महंगाई होने से इनका आयात और भारत से होने वाला निर्यात कमजोर रह सकता है। इससे भी भारतीय उद्योगों का संकट बढ़ेगा।



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