अधिकार : हाईकोर्ट ने किया साफ- घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला ससुराल में रहने की हकदार


अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Wed, 23 Mar 2022 04:35 AM IST

सार

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को उचित ठहराया। कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है।

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उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला ससुराल में रहने की हकदार है। यह अधिकार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है। अदालत ने यह टिप्पणी महिला को घर में रहने के अधिकार संबंधी निचली अदालत के आदेश को उचित ठहराते हुए की।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने एक दंपती की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि शुरू में उनकी पुत्रवधू के ससुराल वालों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे। हालांकि, समय के साथ यह बिगड़ना शुरू हो गया। 

महिला ने 16 सितंबर 2011 को अपना ससुराल छोड़ दिया। याची ने कहा दोनों पक्षों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ 60 से अधिक दीवानी और आपराधिक मामले दायर किए गए। इनमें से एक मामला पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत था और कार्यवाही के दौरान प्रतिवादी ने संबंधित संपत्ति में निवास के अधिकार का दावा किया था। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने महिला की याचिका स्वीकार कर कहा कि पत्नी उक्त संपत्ति की पहली मंजिल पर निवास के अधिकार की हकदार है।

विस्तार

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला ससुराल में रहने की हकदार है। यह अधिकार हिंदू विवाह अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है। अदालत ने यह टिप्पणी महिला को घर में रहने के अधिकार संबंधी निचली अदालत के आदेश को उचित ठहराते हुए की।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने एक दंपती की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि शुरू में उनकी पुत्रवधू के ससुराल वालों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे। हालांकि, समय के साथ यह बिगड़ना शुरू हो गया। 

महिला ने 16 सितंबर 2011 को अपना ससुराल छोड़ दिया। याची ने कहा दोनों पक्षों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ 60 से अधिक दीवानी और आपराधिक मामले दायर किए गए। इनमें से एक मामला पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत था और कार्यवाही के दौरान प्रतिवादी ने संबंधित संपत्ति में निवास के अधिकार का दावा किया था। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने महिला की याचिका स्वीकार कर कहा कि पत्नी उक्त संपत्ति की पहली मंजिल पर निवास के अधिकार की हकदार है।



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