Ripudaman Singh Malik: एयर इंडिया के इतिहास के सबसे खौफनाक बम धमाके की कहानी, जानें हमले में कैसे आया था रिपुदमन का नाम?


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पंजाबी मूल के कनाडाई सिख नेता रिपुदमन सिंह मलिक की गुरुवार को कनाडा के सरे इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई। रिपुदमन पर 1985 में एयर इंडिया कनिष्का बम विस्फोट मामले को लेकर लंबे समय तक कनाडा में केस चला था। इस विस्फोट में 329 यात्रियों और क्रू मेंबर्स की जान गई थी। हालांकि, 2005 में कनाडा की कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था।  

कनिष्क बम विस्फोट मामला क्या था? इस हमले के जिम्मेदार लोग कौन थे? मामले में रिपुदमन मलिक का नाम कैसे आया? मलिक को किस आधार पर बरी किया गया? अन्य आरोपियों को क्या सजा हुई? मलिक की कनाडा में क्या छवि थी? मलिक पर हमले की वजह क्या बताई जा रही है? आइये जानते हैं…

कनिष्क बम विस्फोट मामला क्या था? 

बात 23 जून 1985 की है। एयर इंडिया की फ्लाइट 182 ने मॉन्ट्रियल से लंदन के लिए उड़ान भरी। इसे नई दिल्ली जाना था। एयर इंडिया का यह विमान एक बोइंग 747 जंबो जेट था। जिसे सम्राट कनिष्क के नाम पर कनिष्क नाम दिया गया था। वैंकूवर में एक सूटकेस कार्गो में चेक इन किया गया। इस सूटकेस में बम रखा हुआ था।   

विमान आयरिश हवाई क्षेत्र में था। तभी एक जोरदार धमाका हुआ। जमीन से 31 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए इस धमाके में विमान सवार 22 क्रू मेंबर और सभी 307 यात्री मारे गए। इनमें 268 कनाडाई, 27 ब्रिटिश और 24 भारतीय नागरिक मारे गए। कनाडाई नगारिकों में कई भारतीय मूल के लोग भी थे।  

धमाके के मारे गए लोगों में से केवल 132 शव ही बरामद किए जा सके थे। बाकी 197 शवों का पता तक नहीं चल पाया। धमाके में मारे गए लोगों में नदिया के पार फिल्म में एक्टर सचिन के बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले इंद्र ठाकुर भी शामिल थे। इंद्र के साथ उनकी पत्नी प्रिया और उनके बेटे की भी जान इस आतंकी हमले में चली गई थी।  

धमाके के वक्त विमान हीथ्रो एयरपोर्ट से महज 45 मिनट की दूरी पर था। धमाके के बाद विमान टुकड़े-टुकड़े हो गया। विमान के टुकड़े अटलांटिक महासागर में जा गिरे। कुछ यात्रियों के शव की जांच और मेडिकल चेकअप में पता चला कि उनकी मौत विस्फोट नहीं बल्कि समुद्र में डूबने के कारण हुई। वे विमान के ऐसे हिस्से में बैठे थे जहां वे ब्लास्ट से बच गए।  

इस बम धमाके के करीब एक घंटे पहले जापान की राजधानी टोक्यो के नरिता एयरपोर्ट पर भी एक बैग में रखा बम फट गया था। ये बम कनैडियन फैसिफिक एयरलाइन्स की फ्लाइट में वैंकूवर से टोक्यो लाया गया था। इस बम को एयर इंडिया की बैंकॉक जाने वाली फ्लाइट नंबर 301 में रखा जाना था। जब बम रखे बैग को नरिता में एक विमान से दूसरे विमान में शिफ्ट किया जा रहा था तभी वह फट गया। इसमें दो लोगों की मौत हुई थी। जांच में पाया गया कि दोनों बम धमाके एक दूसरे जुड़े थे। इस पूरे मामले को “कनिष्क केस” के रूप में जाना गया।  

 

इस हमले के जिम्मेदार लोग कौन थे?

कनाडा और भारतीय जांच में पता चला कि इस बम धमाके की योजना बनाने का काम और उसका क्रियान्वयन कनाडा में रहने वाले सिख अलगावादियों ने किया था। ये अलगावादी पंजाब में सक्रिय उग्रवादियों के निर्देश पर काम कर रहे थे। जांचकर्ताओं ने बताया कि बम धमाकों को आतंकवादी समूह बब्बर खालसा ने ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए अंजाम दिया था।

मामले में किन लोगों को आरोपी बनाया गया?

इस बम धमाके के मामले में तीन लोग मुख्य आरोपी बनाए गए। इनमें रिपुदमन सिंह मलिक के साथ इंद्रजीत सिंह रेयात और अजब सिंह बागरी शामिल थे। ये तीनों ही भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन के सदस्य इंदरजीत सिंह रेयात को जांच के बाद दोषी पाया गया। उसे 15 साल की सजा हुई। वहीं, रिपुदमन सिंह मलिक और अजब सिंह बागरी को जांच के बाद बरी कर दिया गया। 

मलिक की कनाडा में क्या छवि थी?

गुरुवार को जब रिपुदमन की हत्या हुई उस वक्त उनकी उम्र 75 साल थी। वह महज 25 साल की उम्र में 1972 में कनाडा आए थे। यहां उन्होंने टैक्सी ड्राइवर का काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने एक सफल बिजनेसमैन के रूप में अपनी पहचान बना ली। इसके साथ ही कनाडा के सिख समुदाय में उनकी खास जगह बन गई। 

वह वैंकूवर स्थित खालसा क्रेडिट यूनियन के अध्यक्ष भी रहे। इस यूनियन से 16 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं। इसके साथ ही खालसा स्कूल चलाने वाली ब्रिटिश कोलंबिया की सतनाम एजुकेशन सोसाइटी के भी वह अध्यक्ष थे। 

 कनिष्क केस में मलिक का नाम कैसे आया? 

मलिक और बागरी को अक्टूबर 2000 में वैंकूवर से गिरफ्तार किया गया। वहीं, ब्रिटिश कोलंबिया में रहने वाले  तीसरे आरोपी रेयात को फरवरी 1988 में गिरफ्तार किया गया था। रेयात एक ऑटो मकैनिक और इलेक्ट्रीशियन था। 

रेयात पर बम बनाने का सामान खरीदने, दोनों एयरक्राफ्ट में प्लांट करने के लिए उन्हें सप्लाई करने का आरोप था। मई 1991 में रेयात जापान में हुए धमाके के मामले में दोषी करार दिया गया। इस मामले में उसे दस साल की सजा हुई। इसके साथ ही कनिष्क ब्लास्ट मामले में भी उसे पांच साल की सजा हुई।  

2003 में कनिष्क बम विस्फोट मामले में मुकदमा शुरू हुआ। नरिता विस्फोट के लिए बम बनाने में अपनी भूमिका स्वीकारने के बाद रेयात को मलिक और बागरी के खिलाफ अभियोजन पक्ष का गवाह बनाया गया। उस वक्त तक रेयात जेल में 12 साल बिता चुका था।  

बागरी और मलिक को किस आधार पर बरी कर दिया गया? 

मामले की सुनावाई के दौरान अभियोजन पक्ष का गवाह बने रेयात ने कहा कि उसे बमबारी की साजिश का विवरण याद नहीं है। इसमें शामिल लोगों के नाम भी उसे याद नहीं है। इसके बाद मलिक और बागरी को बरी कर दिया गया। वहीं, झूठी गवाही देने के मामले में रेयात को नौ साल की सजा हुई। ।

रेयात की गवाही के बाद 2005 तक कनाडा की जेल में बंद रहे मलिक और बागरी को बरी किया गया।  कनिष्क बम धमाके में सजा पाने वाला रेयात इकलौता शख्स है। हमले का शिकार हुए लोगों के परिजन आज भी मानते हैं कि मलिक और बागरी के मामले में अगर रेयात ने झूठी गवाही नहीं दी होती तो उन्हें न्याय मिलता।  

मलिक पर हमले की वजह क्या बताई जा रही है? 

रिपुदमन को गोली क्यों मारी गई, यह अभी तक पता नहीं चल सका है। रिपुदमन के परिवारवालों ने बताया, ‘जब वे कार से ऑफिस से घर जा रहे थे, तब उन पर हमला हुआ है।’  रिपुदमन सिंह पहले खालिस्तान के हिमायती थे लेकिन बाद में उनकी विचारधारा बदल गई थी। अंतिम समय तक वह सिख समुदाय के लोगों को अलगावादी नेताओं से दूर रहने के लिए प्रेरित करते थे। 

रिपुदमन सिंह की हत्या कट्टरपंथियों द्वारा किए जाने की आशंका है। बताया जा रहा है कि वह खालिस्तान की विचारधारा से दूर होकर भारत सरकार के प्रति कनाडा के कट्टरपंथियों में अलख जगा रहे थे। रिपुदमन सिंह मलिक श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की छपाई कर चर्चा में आए थे। रिपुदमन और बलवंत सिंह की ओर से प्रकाशित पावन स्वरूपों के मुद्दे पर कनाडा की सिख संगत में भारी रोष था। मामला श्री अकाल तख्त साहिब तक भी पहुंचा, इस कारण रिपुदमन सिंह ने छपाई बंद कर दी थी और पावन स्वरूप शिरोमणि कमेटी को सौंप दिए थे।

विस्तार

पंजाबी मूल के कनाडाई सिख नेता रिपुदमन सिंह मलिक की गुरुवार को कनाडा के सरे इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई। रिपुदमन पर 1985 में एयर इंडिया कनिष्का बम विस्फोट मामले को लेकर लंबे समय तक कनाडा में केस चला था। इस विस्फोट में 329 यात्रियों और क्रू मेंबर्स की जान गई थी। हालांकि, 2005 में कनाडा की कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था।  

कनिष्क बम विस्फोट मामला क्या था? इस हमले के जिम्मेदार लोग कौन थे? मामले में रिपुदमन मलिक का नाम कैसे आया? मलिक को किस आधार पर बरी किया गया? अन्य आरोपियों को क्या सजा हुई? मलिक की कनाडा में क्या छवि थी? मलिक पर हमले की वजह क्या बताई जा रही है? आइये जानते हैं…

कनिष्क बम विस्फोट मामला क्या था? 

बात 23 जून 1985 की है। एयर इंडिया की फ्लाइट 182 ने मॉन्ट्रियल से लंदन के लिए उड़ान भरी। इसे नई दिल्ली जाना था। एयर इंडिया का यह विमान एक बोइंग 747 जंबो जेट था। जिसे सम्राट कनिष्क के नाम पर कनिष्क नाम दिया गया था। वैंकूवर में एक सूटकेस कार्गो में चेक इन किया गया। इस सूटकेस में बम रखा हुआ था।   

विमान आयरिश हवाई क्षेत्र में था। तभी एक जोरदार धमाका हुआ। जमीन से 31 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए इस धमाके में विमान सवार 22 क्रू मेंबर और सभी 307 यात्री मारे गए। इनमें 268 कनाडाई, 27 ब्रिटिश और 24 भारतीय नागरिक मारे गए। कनाडाई नगारिकों में कई भारतीय मूल के लोग भी थे।  

धमाके के मारे गए लोगों में से केवल 132 शव ही बरामद किए जा सके थे। बाकी 197 शवों का पता तक नहीं चल पाया। धमाके में मारे गए लोगों में नदिया के पार फिल्म में एक्टर सचिन के बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले इंद्र ठाकुर भी शामिल थे। इंद्र के साथ उनकी पत्नी प्रिया और उनके बेटे की भी जान इस आतंकी हमले में चली गई थी।  

धमाके के वक्त विमान हीथ्रो एयरपोर्ट से महज 45 मिनट की दूरी पर था। धमाके के बाद विमान टुकड़े-टुकड़े हो गया। विमान के टुकड़े अटलांटिक महासागर में जा गिरे। कुछ यात्रियों के शव की जांच और मेडिकल चेकअप में पता चला कि उनकी मौत विस्फोट नहीं बल्कि समुद्र में डूबने के कारण हुई। वे विमान के ऐसे हिस्से में बैठे थे जहां वे ब्लास्ट से बच गए।  

इस बम धमाके के करीब एक घंटे पहले जापान की राजधानी टोक्यो के नरिता एयरपोर्ट पर भी एक बैग में रखा बम फट गया था। ये बम कनैडियन फैसिफिक एयरलाइन्स की फ्लाइट में वैंकूवर से टोक्यो लाया गया था। इस बम को एयर इंडिया की बैंकॉक जाने वाली फ्लाइट नंबर 301 में रखा जाना था। जब बम रखे बैग को नरिता में एक विमान से दूसरे विमान में शिफ्ट किया जा रहा था तभी वह फट गया। इसमें दो लोगों की मौत हुई थी। जांच में पाया गया कि दोनों बम धमाके एक दूसरे जुड़े थे। इस पूरे मामले को “कनिष्क केस” के रूप में जाना गया।  

 



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