Russia-Ukraine War: आसान नहीं विदेश में पढ़कर भारत में डॉक्टरी, जानें सबसे कठिन टेस्ट में से एक एफएमजीई के बारे में  


सार

एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन का आयोजन एनबीई (National Examination Board) की ओर से हर साल दो बार किया जाता है। परीक्षा जून और दिसंबर महीने में आयोजित की जाती है।

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Russia-Ukraine War: यूकेन और रूस के बीच जारी जंग के बीच भारतीय छात्रों को लेकर चर्चाएं जारी हैं। हर साल भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। केवल यूकेन ही नहीं बल्कि कई अन्य देश ऐसे हैं, जहां भारत के छात्र वर्तमान में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण है देश की कुछ सबसे कठिन परीक्षाओं में से मानी जाने वाली नीट परीक्षा में असफलता और विदेश में मिलने वाली सस्ती पढ़ाई। हालांकि, विदेश में पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को भारत में सीधे डॉक्टरी करने की अनुमति मिल जाए ऐसा भी नहीं है। इसके लिए छात्रों को एफएमजीई (फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन) में सफलता प्राप्त करनी होती है। अमर उजाला आपको बता रहा है इस परीक्षा की पूरी प्रक्रिया और इसके परिणाम के बारे में..

जानें एफएमजीई परीक्षा के बारे में
एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन का आयोजन एनबीई (National Examination Board) की ओर से हर साल दो बार किया जाता है। परीक्षा जून और दिसंबर महीने में आयोजित की जाती है। जो भी छात्र विदेशी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई करते हैं, उन्हें भारत में उच्च शिक्षा और डॉक्टरी (प्रैक्टिसिंग) के लिए इस परीक्षा को पास करना अनिवार्य है। परीक्षा में सफल होने के लिए छात्रों को न्यूनतम 50 फीसदी अंक लाने होते हैं। इस परीक्षा को पास करने वाले छात्रों को मेडिकल कॉउंसिल ऑफ़ इंडिया (MCI) की ओर स् स्थाई पंजीकरण प्रदान किया जाता है। 

इन देशों को मिली है छूट
ज्यादातर देशों में मेडिकल की पढ़ाई कर के आने वाले छात्रों को एफएमजीई परीक्षा में सफल होना जरूरी है। हालांकि, कुछ देश ऐसे भी हैं जहां पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को इस परीक्षा से छूट दी गई है। ये देश हैं – ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाईटेड किंगडम और अमेरिका। 

क्यों जरूरी है एफएमजीई परीक्षा?
कई जानकार बताते हैं कि विदेशों में होने वाली मेडिकल की पढ़ाई के लिए वहां कि विश्वविद्यालय नीट जैसी कोई कठिन परीक्षा का आयोजन नहीं करते हैं। भारत में नीट की परीक्षा में सफल छात्रों को भी अच्छी रैंक लाने पर ही मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिया जाता है। हालांकि, विदेशी विश्वविद्यालयों  में प्रवेश के लिए केवल नीट परीक्षा में सफल होना ही काफी है। अन्य कारण की बात करें तो भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था के ढ़ांचे और इसकी जरूरतों के मुकाबले विदेशी व्यवस्था में काफी अंतर है। वहां की जनसंख्या, मौसमी बीमारियों आदि के मुकाबले भी भारत की स्थितियां भिन्न हैं। इन सब कारणों से एफएमजीई परीक्षा की अनिवार्यता और अधिक बढ़ जाती है। 

कौन-कौन से देश हैं पसंद?
विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने वाले छात्रों की पहली पसंद मुख्यत:  चीन, रूस, यूक्रेन और नेपाल जैसे देश होते हैं। इसका कारण है कि भारत के मुकाबले इन देशों में मेडिकल की पढ़ाई ज्यादा किफायती होती है। हालांकि, इन प्रमुख देशों में पढ़ाई करने वाले छात्रों का असफलता प्रतिशत भी ज्यादा है। फ्रांस, केन्या जैसे देशों में पढ़कर आने वाले छात्रों ने अधिक फीसदी में एफएमजी में सफलता प्राप्त की है।  

क्या है एफएमजीई में सफलता प्रतिशत?
एनबीई की ओर से कराई जाने वाली एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन में भाग लेने वाले छात्रों के सफलता प्रतिशत को देखने पर परिणाम चिंता में डालने वाले दिखाई पड़ते हैं। अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो करीब 80 फीसदी छात्र जो विदेशी कॉलेजों से पढ़ाई कर के एफएमजीई परीक्षा में भाग लेते हैं, वह सफल नहीं हो पाते। 

आंकड़ों पर नजर

सत्र परीक्षा में शामिल छात्र सफल छात्र असफल छात्र
दिसंबर – 2021 23,691 5,665 17,607
जून- 2021 18,048     4,283     12,895
दिसंबर- 2020 19,122 3,722 13,713
जून- 2020 17,789 1,697     13,790
दिसंबर- 2019 15,663 4,032 10,026
जून- 2019 13,364     2,767 9,006

क्या है मुख्य समस्या?
जब छात्र देश के बाहर जाकर शिक्षा प्राप्त करते हैं तो छात्रों को समस्याएं तो होती ही हैं, साथ ही देश को आर्थिक घाटा भी झेलना पड़ता है। इसके साथ ही बड़ी रकम खर्च कर के पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को एफएमजीई में बार-बार असफलता मानसिक रूप से परेशान भी कर देती है। वर्तमान में भारत में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 600 के करीब हैं और इनमें 1.5 लाख के लगभग सीटें उपलब्ध हैं। वहीं, अगर साल 2021 की बात करें तो नीट यूजी परीक्षा के लिए 16 लाख से अधिक छात्रों ने आवेदन किया था। यह आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि क्यों छात्र बड़ी संख्या में विदेशों का रुख कर रहे हैं। इसका नतीजा है कि देश में आबादी की जरूरत के मुकाबले डॉक्टरों की संख्या में भारी कमी है। 

क्या हो सकते हैं उपाय?
केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें चाहे तो इस समस्या का उपाय भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। देश के भीतर ही सरकारी मेडिकल कॉलेजो की संख्या को बढ़ाकर छात्रों को बाहर जाने से रोका जा सकता है। इसके साथ ही प्राइवेट संस्थानों की फीस को काबू कर के और डोनेशन पर रोक लगाकर भी इस समस्या को काबू में किया जा सकता है। इसके साथ ही विभिन्न देशों के साथ मेडिकल की शिक्षा के क्षेत्र में एमओयू भी किए जा सकते हैं, जिससे पाठ्यक्रमों का आदान-प्रदान किया जा सके। नेशनल मेडिकल कमीशन जल्द ही स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रमों में प्रवेश और प्रैक्टिसिंग के लाइसेंस की जरूरत के लिए NEXT (नेशनल एग्जिट टेस्ट) पात्रता सह प्रवेश परीक्षी का आयोजन करने वाला है। इस परीक्षा के माध्यम से ही विदेश से पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को भी पात्रता दी जाएगी।

विस्तार

Russia-Ukraine War: यूकेन और रूस के बीच जारी जंग के बीच भारतीय छात्रों को लेकर चर्चाएं जारी हैं। हर साल भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। केवल यूकेन ही नहीं बल्कि कई अन्य देश ऐसे हैं, जहां भारत के छात्र वर्तमान में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण है देश की कुछ सबसे कठिन परीक्षाओं में से मानी जाने वाली नीट परीक्षा में असफलता और विदेश में मिलने वाली सस्ती पढ़ाई। हालांकि, विदेश में पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को भारत में सीधे डॉक्टरी करने की अनुमति मिल जाए ऐसा भी नहीं है। इसके लिए छात्रों को एफएमजीई (फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन) में सफलता प्राप्त करनी होती है। अमर उजाला आपको बता रहा है इस परीक्षा की पूरी प्रक्रिया और इसके परिणाम के बारे में..



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