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कृत्रिम तारामंडल से इतर अब पर्यटक हिमालय से पूरे ब्रह्मांड का अद्भुत नजारा देख सकेंगे। लद्दाख में समुद्रतल से 14800 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया की सबसे ऊंची एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेटरी में से एक हनले में वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। ऑब्जरवेटरी के आसपास एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के डार्क स्काई रिजर्व बनने से पर्यटक भी अंतरिक्ष की रहस्यमय दुनिया से रूबरू होंगे।
चांद की नगरी कहे जाने वाले लद्दाख के हनले में देश की पहली डार्क स्काई रिजर्व परियोजना पर बनी लघु फिल्म को लद्दाख प्रशासन की ओर से वीरवार को जारी कर दिया गया है।
लद्दाख प्रशासन, स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद लेह और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स बंगलूरू मिलकर डार्क स्काई रिजर्व परियोजना पर काम कर रहे हैं। परियोजना के तहत एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रात के अंधेरे में रोशनी को नियंत्रित किया जाएगा। घरों के बल्ब से लेकर फ्लड लाइट व वाहनों की हाई बीम से निकलने वाले प्रकाश को नियंत्रित करने के लिए सख्त गाइडलाइन जारी होगी।
उच्च पर्वतीय क्षेत्र होने की वजह से हनले में रात के अंधेरे में आसमान पर आकाश गंगा समेत अन्य खगोलीय गतिविधियों का अध्ययन और अवलोकन बेहद रोमांचक होता है। पाबंदियों के बावजूद स्थानीय ग्रामीण इस परियोजना को लेकर उत्साहित हैं। अंतरिक्ष पर्यटन से उनके लिए रोजगार के साधन खुलेंगे।
अंतरिक्ष पर्यटन के लिए टेलिस्कोप लगेंगे
हनले डार्क स्काई रिजर्व क्षेत्र में कुल एक हजार लोगों की आबादी है। इन घरों को इस परियोजना से अंतरिक्ष पर्यटन के जरिये लाभ मिलेगा। स्थानीय लोगों को टेलिस्कोप दिए जाएंगे, जिससे होम स्टे में रहने वाले पर्यटक खगोल गतिविधियों का रोमांच देख सकेंगे। इसके लिए ग्रामीणों का प्रारंभिक प्रशिक्षण भी शुरू हो गया है।
डार्क स्काई रिजर्व को लेकर हम उत्साहित हैं। दूरदराज क्षेत्र में आय के साधन बेहद मुश्किल से मिलते हैं। अंतरिक्ष पर्यटन से हमें रोजगार मिलेगा। प्रशासन के साथ बैठकें हो चुकी हैं। पूरा गांव चाहता है कि परियोजना जल्द साकार हो।
– पलजोर थारचिन, सरपंच हनले
हनले क्षेत्र दूरदराज इलाके में है, जहां आबादी और वाहनों की आवाजाही नहीं है। प्रकाश प्रदूषण न होने से रात को घुप अंधेरा खगोलीय घटनाओं के अध्ययन में मदद करता है। लद्दाख को ठंडा मरुस्थल भी कहा जाता है। यहां बादल बेहद कम नजर आते हैं। यह परिस्थितियां डार्क स्काई रिजर्व के मुफीद हैं।
– दोरजे अंगचुक, प्रभारी इंजीनियर, हनले ऑब्जरवेटरी
मानसून की वजह से दक्षिण भारत में स्थित आब्जरवेटरी जून से सितंबर तक बंद रहती है। साल में केवल आठ माह ही अध्ययन हो पाता है। लद्दाख चूंकि मानसून की पहुंच से दूर है, ऐसे में यहां साल भर अध्ययन हो सकता है। इस वजह से हनले देश के पहले डार्क स्काई रिजर्व के लिए सबसे उपयुक्त है। इसे लेकर प्रयास तेज किए जा रहे हैं।
-प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रह्मण्यम, निदेशक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स