सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यूक्रेन संकट, महामारी से प्रभावित MBBS छात्रों के लिए योजना बनाएं NMC


नई दिल्ली: यूक्रेन संकट और कोविड के कारण कठिनाइयों का सामना करने वाले विदेशी विश्वविद्यालयों के एमबीबीएस छात्रों की मदद के लिये आगे आते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू स्तर पर ही उनके क्लीनिकल प्रशिक्षण की व्यवस्था करने के लिए कहा है। न्यायालय ने शुक्रवार को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को निर्देश दिया कि वह दो महीने में एक योजना तैयार करे, जिससे छात्रों को देश के मेडिकल कॉलेजों में क्लीनिकल प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति दी जा सके।

शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एनएमसी की एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसे एक चीनी विश्वविद्यालय के एमबीबीएस स्नातक को अस्थायी रूप से पंजीकृत करने के लिए कहा गया था।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, ”इसमें कोई संदेह नहीं है कि महामारी ने छात्रों सहित पूरी दुनिया के लिए नई चुनौतियां पेश की हैं, लेकिन एक ऐसे छात्र को इंटर्नशिप पूरा करने के लिए अस्थायी पंजीकरण देना, जिसने क्लीनिकल प्रशिक्षण नहीं लिया है, किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य और बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के साथ समझौता होगा।”

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उस छात्र की दुर्दशा पर ध्यान दिया, जो महामारी की स्थिति के कारण चीनी संस्थान में प्रत्यक्ष रूप से नैदानिक प्रशिक्षण पूरा नहीं कर सका। न्यायालय ने कहा कि प्रतिभा को बर्बाद नहीं होने दिया जाना चाहिए और सेवाओं का उपयोग ”देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए।”

न्यायमूर्ति गुप्ता ने निर्णय लिखते हुए कहा, ”इसलिए हम दो महीने के भीतर एक योजना तैयार करने का निर्देश देते हैं ताकि इस छात्र और ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहे अन्य छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेज में क्लीनिकल प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति नहीं दी जाए, जिन्होंने वास्तव में मेडिकल कॉलेज में क्लीनिकल प्रशिक्षण पूरा नहीं किया है।”

न्यायालय ने 18 पृष्ठ के फैसले में कहा कि एनएमसी एक महीने के भीतर ऐसे छात्रों की जांच करने के लिये स्वतंत्र है कि क्या वे 12 महीने की इंटर्नशिप को पूरा करने लिये अस्थायी रूप से पंजीकृत किये जाने के वास्ते पर्याप्त प्रशिक्षित हैं।

न्यायालय ने अपने फैसले में इस सवाल की पड़ताल की कि क्या क्लीनिकल प्रशिक्षण के संबंध में भी किसी विदेशी संस्थान द्वारा दी गई डिग्री एनएमसी पर बाध्यकारी है और छात्र को अस्थायी रूप से पंजीकृत किया जाना है।

न्यायालय ने कहा, ”हम पाते हैं कि अपीलकर्ता (एनएमसी) उस छात्र का अस्थायी पंजीकरण करने के लिए बाध्य नहीं है, जिसने क्लीनिकल प्रशिक्षण सहित विदेशी संस्थान से पाठ्यक्रम की अवधि पूरी नहीं की है।” न्यायालय ने कहा कि व्यावहारिक प्रशिक्षण के बिना, कोई डॉक्टर नहीं हो सकता है और अस्थायी पंजीकरण न करने का निर्णय ”मनमाना नहीं कहा जा सकता।”

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