अहम सुनवाई: राजद्रोह कानून की वैधता मामले को बड़ी पीठ को सौंपने पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट


सार

वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि 1962 में केदारनाथ मामले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ फैसले को बरकरार रखा था।

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सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी संविधान पीठ को भेजने पर विचार करने पर सहमति जताई। शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा, वह 10 मई को इस मामले में सुनवाई करेगी तब तक केंद्र और याचिकाकर्ता लिखित दलीलें दाखिल करें। सीजेआई एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने गौर किया कि केदारनाथ सिंह मामले (1962) में आईपीसी की धारा-124 ए(राजद्रोह) की वैधता को बरकरार रखने का पिछला फैसला पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया था।

उस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि हिंसा भड़काने की भावना के बिना सरकार के काम के प्रति अस्वीकृति दिखाने वाली कड़े शब्दों की टिप्पणियां दंडनीय अपराध को आकर्षित नहीं करेंगी। इसलिए अब इस मामले में बड़ी संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया। लेकिन तीन जजों की पीठ ने फैसला किया कि वह इस पर 10 मई को विचार करेगी। पीठ ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं से लिखित दलीलें भी मांगी हैं।

केदार नाथ मामले के फैसले में राजद्रोह कानून वैध : वेणुगोपाल
अटॉर्नी जनरल ने केके वेणुगोपाल कहा, केदार नाथ सिंह मामले के फैसले के मद्देनजर राजद्रोह कानून वैध है। अदालत इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है। उन्होंने मामले को बड़ी बेंच को भेजने का भी विरोध किया। उन्होंने कहा, कानून का दुरुपयोग नियंत्रित है। बड़ी पीठ के पास भेजने का प्रश्न ही नहीं उठता। बोलने की स्वतंत्रता और राज्य की सुरक्षा को देखते हुए केदारनाथ फैसला बहुत संतुलित है।

किसकी इजाजत है किसकी नहीं यह सबसे महत्वपूर्ण
वेणुगोपाल ने पीठ से यह भी कहा, आप देख रहे हैं कि देश में क्या हो रहा है। किसी को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वे हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहते थे। उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है। एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसकी इजाजत है और किसकी नहीं है। उनका इशारा सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा के मामले की ओर था।

सरकार की आलोचना को असंतोष पैदा करने के रूप में नहीं मान सकते: सिब्बल
वहीं सिब्बल ने कहा, सरकार की आलोचना को असंतोष पैदा करने के रूप में नहीं माना जा सकता है। यह प्रावधान बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। केदार नाथ सिंह के फैसले के बाद काफी बदलाव हुए हैं। सिब्बल ने कहा, औपनिवेशिक स्वामी चले गए हैं। हम अपने भाग्य के स्वामी हैं। हम स्वतंत्र हैं और अब क्राउन (राजा) के अधीन नहीं हैं।

पीठ ने केंद्र से एक साल से लंबित याचिकाओं पर भी जवाब मांगा  
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को करीब एक साल से लंबित याचिकाओं के समूह पर सोमवार तक लिखित जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका भी दिया है।
 

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी संविधान पीठ को भेजने पर विचार करने पर सहमति जताई। शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा, वह 10 मई को इस मामले में सुनवाई करेगी तब तक केंद्र और याचिकाकर्ता लिखित दलीलें दाखिल करें। सीजेआई एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने गौर किया कि केदारनाथ सिंह मामले (1962) में आईपीसी की धारा-124 ए(राजद्रोह) की वैधता को बरकरार रखने का पिछला फैसला पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया था।

उस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि हिंसा भड़काने की भावना के बिना सरकार के काम के प्रति अस्वीकृति दिखाने वाली कड़े शब्दों की टिप्पणियां दंडनीय अपराध को आकर्षित नहीं करेंगी। इसलिए अब इस मामले में बड़ी संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया। लेकिन तीन जजों की पीठ ने फैसला किया कि वह इस पर 10 मई को विचार करेगी। पीठ ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं से लिखित दलीलें भी मांगी हैं।

केदार नाथ मामले के फैसले में राजद्रोह कानून वैध : वेणुगोपाल

अटॉर्नी जनरल ने केके वेणुगोपाल कहा, केदार नाथ सिंह मामले के फैसले के मद्देनजर राजद्रोह कानून वैध है। अदालत इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है। उन्होंने मामले को बड़ी बेंच को भेजने का भी विरोध किया। उन्होंने कहा, कानून का दुरुपयोग नियंत्रित है। बड़ी पीठ के पास भेजने का प्रश्न ही नहीं उठता। बोलने की स्वतंत्रता और राज्य की सुरक्षा को देखते हुए केदारनाथ फैसला बहुत संतुलित है।

किसकी इजाजत है किसकी नहीं यह सबसे महत्वपूर्ण

वेणुगोपाल ने पीठ से यह भी कहा, आप देख रहे हैं कि देश में क्या हो रहा है। किसी को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वे हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहते थे। उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है। एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसकी इजाजत है और किसकी नहीं है। उनका इशारा सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा के मामले की ओर था।

सरकार की आलोचना को असंतोष पैदा करने के रूप में नहीं मान सकते: सिब्बल

वहीं सिब्बल ने कहा, सरकार की आलोचना को असंतोष पैदा करने के रूप में नहीं माना जा सकता है। यह प्रावधान बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। केदार नाथ सिंह के फैसले के बाद काफी बदलाव हुए हैं। सिब्बल ने कहा, औपनिवेशिक स्वामी चले गए हैं। हम अपने भाग्य के स्वामी हैं। हम स्वतंत्र हैं और अब क्राउन (राजा) के अधीन नहीं हैं।

पीठ ने केंद्र से एक साल से लंबित याचिकाओं पर भी जवाब मांगा  

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को करीब एक साल से लंबित याचिकाओं के समूह पर सोमवार तक लिखित जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका भी दिया है।

 



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