गढ़ बचाने और कब्जाने का दौर : रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से लेकर सोनिया के क्षेत्र में समर, मंत्रियों सहित कई बड़ों की परीक्षा


देशभर की मीडिया में सुर्खियां बनी लखीमपुर का चुनाव भी इसी चरण में है। साथ ही भाजपा नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के घरों में भी उनकी पकड़ व पहुंच का इम्तिहान भी पूरा हो जाएगा। जिन 59 सीटों पर मतदान होने जा रहा है, उसमें भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। भाजपा ने 50, गठबंधन सहयोगी अपना दल ने एक सीट जीतकर सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया था। वहीं, सपा को चार, बसपा व कांग्रेस को दो-दो सीटें मिली थीं।

महासमर का चौथा चरण विधानसभा उपाध्यक्ष नितिन अग्रवाल समेत चार वर्तमान और कुछ पूर्व मंत्रियों की परीक्षा लेगा तो मैदान से बाहर मौजूद कुछ बड़े चेहरों का भी इम्तिहान होगा। पूर्व नौकरशाह और सरोजनीनगर से भाजपा उम्मीदवार राजेश्वर सिंह भी कसौटी पर कसे जाएंगे तो भाजपा नेताओं के टिकट बदलने के निर्णयों की भी परीक्षा होगी। वर्तमान मंत्रियों में ब्रजेश पाठक, आशुतोष टंडन लखनऊ से मैदान में हैं तो रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ धुन्नी सिंह एवं सहयोगी दल अपना दल के कोटे से मंत्री जयकुमार जैकी क्रमश: फतेहपुर की हुसैनगंज व बिंदकी से मैदान में हैं। उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, मंत्री डॉ. महेन्द्र सिंह, स्वाति सिंह व मोहसिन रजा भले ही चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन लखनऊ की जंग में इनकी साख का सवाल भी मुद्दा रहेगा। इसी तरह ब्राह्मण चेहरे के नाम पर भाजपा में आए और मंत्री बने िजतिन प्रसाद की भी लोकप्रियता का इम्तिहान होगा।

केंद्रीय मंत्रियों में सिर्फ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की ही परीक्षा नहीं होने जा रही, कौशल किशोर का भी इम्तिहान है। उनकी पत्नी वर्तमान विधायक जयदेवी मलिहाबाद से और दूसरे रिश्तेदार मोहनलालगंज से भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी एवं केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की साख भी इस चुनाव में दांव पर है। टेनी लखीमपुर खीरी से सांसद हैं और साध्वी फतेहपुर से। सपा के राज्यसभा सदस्य विशंभर निषाद फतेहपुर की अयाहशाह से एवं रेप पीड़िता की मां भी किस्मत आजमा रही हैं ।

2012 में साइकिल ने दिखाई थी रफ्तार
इस चरण की जंग पर सपा व बसपा की भी उम्मीदें टिकी हैं तो इसकी वजह भी है। वर्ष 2017 में 59 सीटों में से गठबंधन सहित 51 पर यदि कमल खिला था तो 2012 में 39 सीटों पर साइकिल की रफ्तार ने सपा की उम्मीदों को पंख लगा दिए थे। बसपा को 12 सीटें मिलीं थीं जबकि भाजपा को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस को 3 सीटें मिली थी। जबकि रायबरेली सदर सीट से वर्तमान में कांग्रेस की विधायक एवं अबकी भाजपा प्रत्याशी अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह के रूप में पीस पार्टी को एक सीट मिली थी।

दलबदल के फैसले की परीक्षा
रायबरेली की सदर एवं हरचंदपुर सीटें कांग्रेस को मिलीं थीं, लेकिन निर्वाचित विधायकों अदिति सिंह एवं राकेश सिंह ने पाला बदल भाजपा से मैदान में हैं। 2017 में हरदोई की 8 सीटों में से भाजपा ने 7 जीती थीं। हरदोई सदर से सियासी हवा का रुख भांपने में माहिर चर्चित राजनेता नरेश अग्रवाल के पुत्र नितिन अग्रवाल सपा के टिकट पर जीते थे, लेकिन वह भी भाजपा में आ गए। भाजपा ने चुनाव की घोषणा से कुछ वक्त पहले उन्हें विधानसभा का उपाध्यक्ष भी बना दिया। वह इस बार हरदोई से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह उन्नाव की पुरवा सीट से बसपा के टिकट पर विधायक बने अनिल सिंह भी इस जंग में कमल के साथ मैदान में हैं। सिधौली से बसपा विधायक हरगोविंद भार्गव इस बार सपा से लड़ रहे हैं तो सपा विधायक रहे मनीष रावत ने कमल के साथ ताल ठोकी है। नतीजा न सिर्फ इनका भाग्य तय करेगा बल्कि दलबदल के फैसले को भी सही या गलत बताएगा।

कमल खिलाना चुनौती
चौथे चरण की जंग में एक और दिलचस्प चुनौती भाजपा के सामने दिख रही है। इस चरण में चार सीटें लखनऊ की मोहनलालगंज, रायबरेली की ऊंचाहार, सीतापुर की सिधौली और उन्नाव की पुरवा ऐसी हैं, जिन पर कई दशकों से कमल खिलाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रही है। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन सीटों पर कमल न खिलने के मिथक को तोड़ पाती है या नहीं।

पीलीभीत में किसका पलड़ा भारी
वर्ष 2017 में भाजपा को सभी 4 सीटों पर जीत दिलाने वाले तराई के पीलीभीत में 2022 में किस दल का पलड़ा भारी बैठेगा, यह सवाल सभी की जुबान पर है। स्थानीय सांसद वरुण गांधी की चुप्पी कोई गुल खिलाएगी या भाजपा 2017 का करिश्मा फिर दोहराएगी या सपा 2012 की तरह यहां की ज्यादातर सीटों पर साइकिल दौड़ाने में कामयाब रहेगी… इन सभी सवालों के जवाबों को तलाशते हुए यहां की ज्यादातर सीटों पर साइकिल एवं कमल के बीच सीधी टक्कर होती दिख रही है। एक सीट पर बसपा का हाथी भी कमल और साइकिल को अपनी सूंड में लपेटने की कोशिश करता दिख रहा है।

कैसी रहेगी हरदोई की हवा
भाजपा ने 2017 में हरदोई की 8 में 7 सीटों पर जीत हासिल की थी तो 2012 में सपा 6 सीटें जीती थी। हरदोई के दिग्गज नेताओं में शुमार नरेश अग्रवाल भी अब भाजपा के साथ खड़े हैं तो स्वाभाविक रूप से उत्सुकता बढ़ गई है। कमल का कमाल बरकरार रहता है या नरेश अग्रवाल के बिना भी साइकिल की रफ्तार उनकी साख के लिए सवाल खड़ा कर देती है। यहां एक सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई और एक पर उलझी हुई है तो बाकी सीटों पर भाजपा का सपा से सीधा मुकाबला दिख रहा है। वैसे बागी भी भाजपा की मुसीबत बढ़ाने में जुटे हैं।

सीतापुर किसका देगा साथ
सीतापुर की 9 सीटों में भाजपा को पिछली बार 7 सीटें मिली थीं। इस बार समीकरण इतने उलझे हुए दिख रहे हैं कि सभी एक-दूसरे से कौन-किसके साथ का ही सवाल कर रहे हैं। कई बार मंत्री रहे और कार्यवाहक मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. अम्मार रिजवी के पुत्र मीसम बसपा के टिकट पर महमूदाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि वे खुद भाजपा में है। ज्यादातर सीटों पर सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले के आसार हैं।

बांदा में कौन रहेगा बुलंद
बुंदेलखंड के अन्य जिलों की तरह बांदा में भी 2017 में सभी सीटों पर कमल खिला था। उससे पहले 2012 में यहां की 4 सीटों में किसी में भाजपा नहीं जीती थी। अब 2022 में यहां किसका झंडा बुलंद रहता है, यही सबसे बड़ा सवाल है।

किस करवट बैठेगा उन्नाव का ऊंट
यहां की 6 सीटों में भाजपा ने 5 पर कमल खिलाया था। बसपा से जीते अनिल सिंह अब भाजपा के टिकट पर पुरवा से मैदान में हैं। विधानसभा अध्यक्ष एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता हृदयनारायण दीक्षित चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनकी जगह भाजपा ने आशुतोष शुक्ल को भगवंतनगर से उतारा है। इस जिले की ज्यादातर सीटों पर सीधी टक्कर के आसार दिख रहे हैं, जबकि एक पर कांग्रेस भी मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाती दिख रही है।

फतेहपुर में किसकी होगी फतह
चौथे चरण में जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है, उसमें लखनऊ के अलावा यही जिला ऐसा है जिसे भाजपा सरकार में मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी मिलने का सौभाग्य मिला। पिछली बार यहां की सभी 6 सीटों पर भाजपा गठबंधन की हवा बही थी। उससे पहले 2012 में बसपा ने तीन, सपा ने दो और भाजपा ने एक सीट जीती थी।

अटल के घर में प्रदर्शन दोहराने की चुनौती
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के घर एवं प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस चुनाव में किसका परचम फहरेगा, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। भाजपा ने लखनऊ के कुछ पुराने और कुछ नए चेहरों पर दांव लगाया है। तीन मौजूदा विधायक मैदान में नहीं हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में पश्चिम से निर्वाचित सुरेश श्रीवास्तव का कोरोना के दौरान निधन हो गया था। उनकी जगह अंजनी श्रीवास्तव को उतारा गया है जबकि पिछली बार मध्य से निर्वाचित विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक को मौजूदा विधायक सुरेश तिवारी की जगह कैंट से प्रत्याशी बनाया गया है। तिवारी को टिकट नहीं दिया गया है।

इसी तरह, मंत्री एवं सरोजनीनगर से विधायक स्वाती सिंह का टिकट काटकर वीआरएस लेकर सियासत में उतरे राजेश्वर सिंह पर दांव लगाया गया है। यहां सपा से पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र मैदान में हैं। अभिषेक 2012 में उत्तर सीट से विधायक चुने गए थे। इस बार उनकी सीट बदल दी गई। भाजपा ने उत्तर में वर्तमान विधायक डॉ. नीरज बोरा को ही फिर मैदान में उतारा है। बख्शी का तालाब में भाजपा ने वर्तमान विधायक अविनाश त्रिवेदी की जगह योगेश शुक्ल को मैदान में उतारा है जबकि सपा ने पहले विधायक रह चुके गोमती यादव को उम्मीदवार बनाया है। मध्य में भी नए चेहरे के रूप में भाजपा के पार्षद रजनीश गुप्त चुनाव लड़ रहे हैं। सपा ने रजनीश के खिलाफ पूर्व विधायक रविदास मेहरोत्रा को उतारा है। मलिहाबाद में मौजूदा विधायक जयदेवी चुनाव लड़ रही हैं। वर्ष 2017 में भाजपा ने 9 में आठ सीटें जीती थीं तो 2012 में सपा ने सात। बदले चेहरों के साथ यह देखना दिलचस्प होगा भाजपा अपना प्रदर्शन दोहरा पाएगी या नहीं।

लखीमपुर खीरी हिंसा का क्या दिखेगा रंग
अजय मिश्र टेनी की साख सिर्फ इसलिए दांव पर नहीं है कि उनके क्षेत्र में चुनाव हो रहा है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि किसानों के आंदोलन को लेकर दिल्ली बार्डर के बाद प्रदेश के जिस इलाके में ज्यादा हंगामा हुआ, वह लखीमपुर खीरी ही है। इसमें किसानों पर गाड़ी चढ़ाकर उनकी हत्या करने के आरोप में उनके पुत्र आशीष की गिरफ्तारी भी हुई। आशीष हाल में ही जमानत पर छूटे हैं। ऐसे में चौथे चरण में उस घटना के हवा के रुख की परीक्षा होनी है। मतदान के रुझान व परिणाम से पता चलेगा कि लखीमपुर हिंसा की नाराजगी क्या रंग दिखाती है। इसका कोई असर पड़ता है या नहीं। असर पड़ता है तो कितनी सीटों पर और 2017 में यहां की सभी 8 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार कितनी सीटें हासिल कर पाती है।

रायबरेली में कमल के प्रयोगों की परीक्षा
कांग्रेस के हाथ को मजबूत बनाने के लिए पिछले कई महीने से जुटीं प्रियंका गांधी की मेहनत अपनी दादी इंदिरा व मां सोनिया के इलाके रायबरेली में कोई चमत्कार दिखा पाती है या नहीं, यह बड़ा सवाल है। देखना होगा कि पिछली बार तीन सीटें जीतकर अपनी धमाकेदार आमद करने वाली भाजपा कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं को अपने साथ लाने के बाद सीटों का आंकड़ा कहां तक पहुंचा पाती है। ऊंचाहार सीट भी कड़ी चुनौती है जहां अभी तक कमल कभी नहीं खिल पाया है। देखना होगा कि वहां भाजपा का अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार और प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को उतारने का प्रयोग कोई सार्थक नतीजा ला पाता है अथवा पूर्व मंत्री मनोज पांडेय तीसरी बार भी यहां साइकिल दौड़ाने में कामयाब हो जाते हैं।

(भाजपा को पीलीभीत की सभी चार, लखीमपुरखीरी की सभी आठ, फतेहपुर की छह सीटों पर सहयोगी अपना दल सहित सभी सीटों पर जीत मिली थी। राजधानी लखनऊ की 9 में आठ सीटों पर भाजपा को विजय मिली थी जबकि कांग्रेस के घर रायबरेली में 6 में इस चरण  में जिन पांच सीटों पर चुनाव हो रहा है उनमें दो सीटें मिली थीं। दो पर कांग्रेस एवं एक ऊंचाहार में सपा जीती थी। उन्नाव में छह में 5 पर, सीतापुर में 9 में 7, हरदोई में 8 में 7 एवं बुंदेलखंड की जिन 4 सीटों पर इस चरण में चुनाव हो रहा है उन सभी पर भाजपा को जीत मिली थी।)



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