राजस्थान: आदिवासी बेल्ट में खिसक रही कांग्रेस की जमीन, अब फिर से जमायेगी सिक्का, पढ़ें कैसे?


जयपुर. कांग्रेस (Congress) राजस्थान में अपने कार्यक्रमों में आदिवासी क्षेत्र को खास तवज्जो दे रही है. पार्टी के कार्यक्रम आदिवासी क्षेत्र (Tribal belt) को केन्द्र में रखकर डिजाइन किए जा रहे हैं और इसके पीछे की मंशा आदिवासी वोट बैंक को साधने की नजर आ रही है. आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस का गढ़ रहा है. पिछले कुछ बरसों में इस क्षेत्र में ना केवल बीजेपी का दखल बढ़ा है बल्कि भारतीय ट्राइबल पार्टी भी इस क्षेत्र में खासी सक्रिय हो रही है. साल 2018 के चुनाव में इस इलाके में जहां बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिली वहीं बीटीपी भी इस क्षेत्र में दो सीटें जीत पाने में कामयाब रही थी.

आदिवासी बेल्ट में ढीली होती जा रही इस पकड़ से कांग्रेस चिंतित है. यही वजह है कि पार्टी ने अपने इस गढ़ को फिर से साधने के जतन अभी से शुरू कर दिए हैं. कांग्रेस के नव संकल्प चिंतन शिविर का स्थान उदयपुर में रखने की पीछे की भी यही वजह मानी जा रही है. वहीं चिंतन शिविर के बाद 16 मई को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी का बेणेश्वर धाम में कार्यक्रम भी प्रस्तावित है.

बेणेश्वर धाम को आदिवासियों का कुम्भ कहा जाता है
सोम, माही और जाखम नदी के संगम पर स्थित बेणेश्वर धाम को आदिवासियों का कुम्भ कहा जाता है. आदिवासियों की इस स्थल के प्रति अटूट श्रद्धा है. यहां बड़ी सभा कर कांग्रेस आदिवासियों को साधने का प्रयास करेगी. आदिवासी क्षेत्र में खास तौर से उदयपुर संभाग के 4 जिलों उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ को गिना जाता है.

आदिवासी बेल्ट की सीटों का यह है गणित
इन 4 जिलों की सीटों के समीकरण की बात करें तो बांसवाड़ा जिले की 5 में से 2 सीट कांग्रेस, 2 सीट बीजेपी और 1 सीट निर्दलीय के पास है. डूंगरपुर जिले की 4 में से 1 सीट कांग्रेस, 1 सीट बीजेपी और 2 सीट बीटीपी के पास है. प्रतापगढ़ जिले की दोनों सीटें कांग्रेस के पास हैं. उदयपुर जिले की 8 में से 6 सीटें बीजेपी और 2 सीटें कांग्रेस के पास हैं. यानि इन चार जिलों में 19 में से 9 सीट बीजेपी के पास है. कांग्रेस के पास 7, बीटीपी के पास 2 और 1 सीट निर्दलीय के पास है.

आरएसएस आदिवासी बेल्ट में सक्रियता से काम रहा है
डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले की सभी सीटें और उदयपुर जिले की 5 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं. पिछले कुछ बरसों से इस बेल्ट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बहुत सक्रियता से काम कर रहा है. इसका फायदा बीजेपी को मिल रहा है. वहीं कांग्रेस इस क्षेत्र में जनाधार खो रही है. अपनी इस खिसकती से जमीन से चिंतित कांग्रेस अब फिर से इस क्षेत्र में सक्रिय हो रही है. पिछले दिनों भी कांग्रेस की एक बड़ी सभा इस क्षेत्र में रखी गई थी जब कांग्रेस की आजादी की गौरव यात्रा ने राजस्थान में प्रवेश किया था.

आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस को इसलिये उम्मीद बंधी है
गहलोत मंत्रिमंडल में दो मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय और अर्जुन सिंह बामणिया इस क्षेत्र से शामिल हैं. अब सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की भी है कि इस क्षेत्र से किसी नेता को पार्टी में भी बड़ा ओहदा दिया जा सकता है. उपचुनाव के परिणामों से कांग्रेस को इस क्षेत्र में फिर से अपनी पैठ जमाने की उम्मीदें बंधी है. इस क्षेत्र की वल्लभनगर और धरियावद सीट कांग्रेस ने जीती थीं जबकि बीजेपी दूसरा स्थान भी हासिल नहीं कर पाई थी. अब कांग्रेस इस क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाकर फिर से अपने पक्ष में माहौल तैयार करने का प्रयास कर रही है ताकि इस क्षेत्र से लीड ली जा सके. मिशन-2023 में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए इस आदिवासी बेल्ट ही अहम भूमिका होगी.

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