योगी के छह मंत्रियों की कहानी: डिप्टी सीएम अखबार बेचते थे, कपड़े प्रेस करने वाले की बेटी से लेकर मजदूर और पंचर बनाने वाले तक बने मंत्री 


सार

योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को लगातार दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया है। इसके अलावा 50 मंत्री बनाए गए हैं। कुल 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 18 कैबिनेट, 14 स्वतंत्र प्रभार और 20 राज्य मंत्री हैं।

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आज आप जिन्हें यूपी के मंत्री के तौर पर देख रहे हैं, उनमें से कई ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ संघर्ष किया है। इन नेताओं को संघर्ष के दौर में कई तकलीफों का सामना करना पड़ा। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बचपन में अखबार बेचते थे। वहीं, तीसरी बार मंत्री बनीं गुलाब देवी के पिता कपड़े प्रेस करते थे।

योगी कैबिनेट में शामिल एक मंत्री तो पंचर बनाते थे। वहीं, एक मंत्री के पिता आज भी परचून की दुकान चलाते हैं, जबकि भाई चाट-फुल्की बेचते हैं। एक मंत्री सड़क किनारे पटाखा, रंग-गुलाल की दुकान लगाते थे। आइए योगी के उन मंत्रियों की कहानी जानते हैं… 
लगातार दूसरी बार डिप्टी सीएम बने केशव प्रसाद मौर्य अपने शुरुआती दिनों में साइकिल से अखबार बांटा करते थे। उनके पिता स्व. श्यामलाल की सिराथू तहसील के पास छोटी सी चाय की दुकान हुआ करती थी। अखबार बांटने के बाद जो भी समय बचता वह अपने पिता के साथ चाय की दुकान में हाथ बटाया करते थे। किशोर अवस्था में ही वह संघ से जुड़ गए और शाखा लगाने लगे।  

साधारण परिवार में जन्मे केशव मौर्य विहिप नेता अशोक सिंघल के करीबी रहे। 2013 में प्रयागराज के केपी कॉलेज में आए ईसाई धर्म प्रचारक का विरोध करने को लेकर चर्चा में आए थे। 18 साल तक केशव प्रसाद संघ के प्रचारक रहे। कट्टर हिंदूवादी छवि के कारण भाजपा ने पहली बार वर्ष 2002 में प्रयागराज शहर पश्चिमी से माफिया अतीक के खिलाफ उन्हें चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में केशव प्रसाद हार गए। 2007 में भाजपा ने फिर केशव को शहर पश्चिमी से प्रत्याशी बनाया, लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने फिर से केशव को उनके गृह क्षेत्र सिराथू से प्रत्याशी बनाया और वह भारी मतों से जीतकर विधायक बने। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में केशव को भाजपा ने फूलपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया। इसमें केशव करीब तीन लाख मतों से सपा प्रत्याशी धर्मराज सिंह पटेल से चुनाव जीते। 2016 में केशव को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा। 2017 में उनकी अगुवाई में ही यूपी का चुनाव भाजपा ने लड़ा और तीन सौ से ज्यादा सीटें जीतीं। इसके बाद उन्हें प्रदेश का डिप्टी सीएम बनाया गया। 
प्रयागराज के रहने वाले नंद गोपाल नंदी तीसरी बार मंत्री बने हैं। दो बार योगी सरकार में और एक बार मायावती की सरकार में वह मंत्री रहे। नंद गोपाल नंदी का जन्म 23 अप्रैल 1974 को हुआ। नंद गोपाल नंदी के पिता सुरेश चंद्र डाक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे।

मां विमला देवी घर में सिलाई-बुनाई करती थीं। आर्थिक तंगी के चलते उन्होंने बचपन में दिवाली पर पटाखे बेचे तो होली पर सड़क किनारे रंग-गुलाल की दुकान लगाई। पैसे कमाने के लिए उन्होंने पुराने बोरे भी बेचे। हालात सुधरने पर 1992 में मिठाई की दुकान खोली। यहीं से उनका व्यापार बढ़ गया। ट्रक लिया और फिर घी और दवाओं की एजेंसी ले ली। 1994 में ईंट-भट्टे का कारोबार शुरू किया। अब नंदी के पास 37.32 करोड़ रुपये की दौलत है। 

 2007 में वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। उन्हें मायावती ने मंत्री भी बनाया। 2012 में वह चुनाव हार गए। हालांकि, उनकी पत्नी अभिलाषा गुप्ता नंदी महापौर का चुनाव जीत गईं। इसके बाद 2014 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2016 में भाजपा में आ गए। 2017 में चुनाव लड़े और जीत गए। योगी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। एक बार फिर से चुनाव जीतने पर उन्हें मंत्री बनाया गया। 
मनोहर लाल पंथ उर्फ मन्नू कोरी लगातार दूसरी बार राज्यमंत्री बनाए गए हैं। मन्नू कोरी को घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ गई थी। पिता मूर्ति बनाने का काम करते थे। मन्नु भी पिता की मदद करते ते। उन्होंने मजदूरी भी की। 

इस बीच, वह बुंदेलखंड के मशहूर बुंदेला परिवार के संपर्क में आए। यहीं से उनका सियासी करियर शुरू हुआ। 1995 में पहली बार जिला पंचायत में शामिल हुए। शुरू से ही बीजेपी के साथ रहे कोरी जिला पंचायत से लेकर विधानसभा तक कई बार चुनाव हारे। 2012 में वह बसपा के फेरनलाल अहिरवार से महज 1700 वोटों से हारे थे, लेकिन 2017 में बीजेपी ने उन्हें फिर टिकट मिला और वह 99,000 से ज्यादा वोटों से जीत गए। तब उन्हें पहली बार राज्यमंत्री का पद मिला। इस बार फिर चुनाव जीतने पर उन्हें पार्टी ने राज्यमंत्री का तोहफा दिया है। 
 

चन्दौसी विधानसभा क्षेत्र से पांचवी बार विधायक बनने वाली गुलाब देवी को तीसरी बार राज्यमंत्री का पद मिला है। गुलाब देवी के पिता बाबूराम अपने के घर के बाहर ही दूसरों के कपड़े प्रेस करते थे। इकलौती बेटी को उन्होंने काफी प्रोत्साहित किया। उन्हें पढ़ाया-लिखाया। एमए-बीएड कराया। इसके बाद उन्हें चन्दौसी के ही कन्या इंटर कॉलेज में शिक्षक की नौकरी मिल गई। यहां वह प्रिंसिपल तक बनीं। शिक्षक रहने के दौरान ही गुलाब देवी राजनीति में सक्रिय हो गईं। भाजपा के साथ जुड़ गईं। जिलाध्यक्ष भी रहीं। 

2018 में गुलाब देवी के पिता का निधन हो गया। बेटी के शिक्षक, फिर विधायक और मंत्री बनने के बाद भी वह उन्होंने अपना पुराना काम नहीं छोड़ा था। वह लोगों के कपड़े प्रेस करते थे। कहते थे कि इसी रोजगार की वजह से मेरी बेटी आगे बढ़ी है। इसे कैसे छोड़ दिया जाए?
 
योगी कैबिनेट में राज्यमंत्री बने धर्मवीर प्रजापति हाथरस के बहरदोई गांव के रहने वाले हैं। 1998 में गांव छोड़कर वह हाजीपुर खेड़ा, खंदौली में रहने लगे थे। हालांकि, गांव में आज भी उनका परिवार रहता है। धर्मवीर प्रजापति तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं। पिता गेंदालाल गांव में एक छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे। छोटे भाई छोटेलाल आज भी गांव में चाट-फुल्की बेचते हैं। धर्मवीर प्रजापति का घर आज भी गांव में जर्जर स्थिति में है। 

धर्मवीर का सफर भी संघर्षों से भरा रहा है। 2005 में वह भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह के संपर्क में आए थे। पहले संगठन से जुड़े, बाद में प्रदेश कार्यकारिणी में जगह बनाई और फिर एमएलसी बने। 2017 में धर्मवीर को माटी कला बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था। 
 
उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले राकेश राठौर की कहानी भी संघर्षों से भरी है। सीतापुर से विधायक और योगी सरकार में मंत्री बने राकेश राठौर ‘गुरु’ आठवीं पास हैं। एक जमाने में मिस्त्री हुआ करते थे। आरएमपी रोड पर उनकी साइकिल और स्कूटर ठीक करने की दुकान थी। बाद में उन्होंने स्पेयर्स पार्ट्स बेचने का भी काम किया और आखिर में इन्वर्टर तक बेचा। बताया जाता है कि जब उन्होंने स्कूटर मिस्त्री के रूप में काम करना शुरू किया तो सब उन्हें गुरु बोलने लगे। 2017 में भी वह विधायक चुने गए थे और इस बार उन्हें मंत्री बनाया गया है।

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आज आप जिन्हें यूपी के मंत्री के तौर पर देख रहे हैं, उनमें से कई ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ संघर्ष किया है। इन नेताओं को संघर्ष के दौर में कई तकलीफों का सामना करना पड़ा। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बचपन में अखबार बेचते थे। वहीं, तीसरी बार मंत्री बनीं गुलाब देवी के पिता कपड़े प्रेस करते थे।

योगी कैबिनेट में शामिल एक मंत्री तो पंचर बनाते थे। वहीं, एक मंत्री के पिता आज भी परचून की दुकान चलाते हैं, जबकि भाई चाट-फुल्की बेचते हैं। एक मंत्री सड़क किनारे पटाखा, रंग-गुलाल की दुकान लगाते थे। आइए योगी के उन मंत्रियों की कहानी जानते हैं… 



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