बीसीसीआई और फैंस के लिए आया ‘अभी नहीं तो कभी नहीं वाला वक्त’?


क्रिकेट में टाइमिंग की अहमियत सबसे शानदार होती है. मतलब कि सही वक्त पर सही शॉट खेलना. इसलिए दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज़ों में सिर्फ एक ही समानता होती है और वो ये कि उनकी टाइमिंग का कोई जोड़ नहीं होता है. बीसीसीआई के मौजूदा अधिकारियों ने भले ही फर्स्ट क्लास क्रिकेट नहीं खेली हो लेकिन वो इस मामले में लकी है कि उनके अध्यक्ष सौरव गांगुली अपने दौर में बल्लेबाज़ी करने के समय लाजवाब टाइमिंग के लिए मशहूर थे. बीसीसीआई ने आईपीएल मीडिया राइट्स में करीब 50 हज़ार करोड़ की कमाई करने के बाद उसी टाइमिंग का परिचय दिया. बोर्ड ने एक आधिकारिक प्रेस रिलीज़ में कहा कि अब पूर्व खिलाड़ियों की पेंशन में ज़बरदस्त इज़ाफा होगा. हर किसी ने बोर्ड के इस कदम की तारीफ की है लेकिन ये सिर्फ एक पहला और छोटा सा कदम है. अगर बोर्ड वाकई में ये चाहता है कि इस असाधारण कमाई का जोरदार उपयोग हो तो उसे कई सुझावों पर ग़ौर करना होगा.

1. फैंस हैं खेल के सबसे बड़े हीरो

अक्सर बीसीसीआई की तारीफ करने के समय जगमोहन डालमिया से लेकर ललित मोदी तक को हीरो बना दिया जाता है कि कैसे इन्होंने अपने पेशेवर दिमाग और रणनीति के जरिये बोर्ड की आर्थिक स्थिति में आमूलचूल बदलाव कर दिया. लेकिन, हर कोई ये भूल जाता है कि कोई भी प्रशासक भारतीय क्रिकेट को बाज़ार में तब तक उस क्रांतिकारी तरीके से नहीं बेच सकता अगर उसके पास अरब लोगों का फैन बेस ना हो. इसलिए बीसीसीआई की सबसे पहली प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि उनके फैंस को वो सम्मान मिले जिसके वो सही हकदार हैं.

2. बुनियादी सुविधाओं की कमी

मुझे उम्मीद है कि शायद कभी कभी ना कभी आपने भारत में क्रिकेट मैच के लिए स्टेडियम के चक्कर जरूर लगाए होंगे. और ये बात आपसे बिलकुल नहीं छिपी होगी कि कैसे हर मैदान में फैंस के साथ बदसलूकी होती है. उन्हें किस तरह से कड़ी धूप में मैच देखने के लिए छोड़ दिया जाता है जहां पानी तक का इंतज़ाम नहीं होता है. क्या बीसीसीआई को अब भी बहानों की जरूरत है कि वो ऐसी मूलभूत सुविधाएं अपने फैंस को नहीं दे सकती है?

3. महिला फैंस के लिए अजीब सा रवैया

मशहूर महिला पत्रकार शारदा उगरा ने हाल ही में अपने एक लेख इस बात का ज़िक्र किया था कि महिला फैंस तो दूर की बात कई मैदानों में महिला पत्रकार के लिए टॉयलट जैसी सुविधा नहीं है. क्या दुनिया के सबसे अमीर बोर्ड को इस बात पर शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है?

4. क्रिकेट का हो अपना खेलो इंडिया महोत्सव

पिछले 25-30 साल में बोर्ड के पास पैसे की कमी नहीं रही है तो ऐसे में सुपरहिट सरकारी प्लान खेलो इंडिया को ये क्यों नहीं अपनाते हैं? देश में ना जाने कितनी ही शानदार प्रतिभाएं वक्त से पहले ही दम तोड़ देती है क्योंकि उनके मार्गदर्शन के लिए कोई मौजूद नहीं होता है. आखिर हर खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी और जसप्रीत बुमराह की तरह भाग्यशाली तो नहीं होता है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद उन्हें किसी परवाह करने वाला का हाथ मिल जाता है.

5. शेड्यूल क्यों नहीं मिलता एडवांस में

इसके लिए तो बीसीसीआई को चवन्नी भी खर्च करने की जरूरत नहीं है लेकिन फैंस के लिए यह बेहद अहम बात होती है. टीम इंडिया किस महीने कौन सा फॉर्मेट किस मुल्क में किसके ख़िलाफ खेलेगी, यह बात आपको बहुत पहले पता नहीं चलती है. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में एशेज़ सीरीज़ और टिकटों की घोषणा 1 से 2 साल पहले हो जाया करती है ताकि फैंस अपनी यात्रा प्लान कर पाएं. इसकी तुलना में अगर देखें तो टीम इंडिया को जुलाई के मध्य में वेस्टइंडीज़ का दौरा करना है और उसका कार्यक्रम जून के पहले हफ्ते में आया है. फैंस तो छोड़ दें, यहां तक कि मीडिया संस्थानों के लिए भी कवरेज करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि आखिरी समय में वीज़ा से लेकर प्लाइट्स की दिक्कतें हो जाती हैं.

6. टिकट कहां और कब मिलेगा

टिकट कहां मिलेगा और कब मिलेगा और कितने में मिलेगा? ये वो सवाल है जिसे हर मैच से पहले यह लेखक पिछले दो दशक से फैंस, रिश्तेदार, दोस्त और हर किसी से सुनते आए हैं लेकिन मीडिया से जुड़े होने के बावजूद इसके बारे में अक्सर जानकारी का अभाव होता है. ऐसे कई बुनियादी सवाल होते है जो फैंस अपने बोर्ड से पूछना चाहते हैं लेकिन उन्हें पता नहीं होता है कि वो पूछे तो किससे पूछें. क्या बीसीसीआई का अपना कस्टम केयर नंबर नहीं होना चाहिए?

7. स्टेडियम में मिले मुफ्त खानाकोविड के संकट के समय हमने देखा कि कैसे पूरे देश के लोगों ने दिलदारी दिखाई और जरूरतमंदो को खाना खिलाया. बीसीसीआई जो अपने फैंस के दम पर अरबों रुपए की कमाई करता है तो क्या वो फैंस को स्टेडियम में मुफ्त में शानदार खाना भी नहीं खिला सकता है? इससे बीसीसीआई के बजट पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन मुमकिन है कि बोर्ड को इस कदम से ऐसी गुडविल मिले जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाने लगेगी. ये अपने आप में बोर्ड का एक अनोखा कदम होगा जिससे उनकी छवि और शानदार और मानवीय हो सकती है.

8. फैंस के लिए परिवहन की व्यवस्था

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में मैच के दिन फैंस के लिए परिवहन की शानदार व्यवस्था होती है और वहीं भारत में ट्रैफिक जाम लग जाता है. आखिर बीसीसीआई ऐसा इंतज़ाम क्यों नहीं कर सकती है कि शहर के हर कोने से फैंस बिना किसी परेशानी के मैदान पहुंचे औऱ उसके बाद मैच खत्म होने के बाद अपने घर वापस लौट सकें.

9. पानी का इंतजाम तो फ्री करा दो अब

आपने कभी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम का चक्कर नहीं लगाया हो तो आपको बता दूं कि कई मौके पर यहां 20 रुपये की बोतल को 5 गिलास में बांट कर 20-20 रुपए में बेचा जाता है! इतना ही नहीं देश के हर स्टेडियम में शुद्ध पेय जल का संकट बना रहता है. क्या बोर्ड इतनी कमाई के बावजूद अपने फैंस को मुफ्त में पेय-जल के इंतज़ाम भी अब नहीं करवा सकता है?

10. दिव्यांगों को भी मिलनी चाहिए सुविधाएं

देश में कितने ऐसे स्टेडियम हैं जहां पर दिव्यांगों के लिए ख़ास सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं? कितने ऐसे मैदान है जहां पर कार या बाइक की पार्किंग की ऐसी सुविधाएं हैं कि आप ये कह पाएं कि वाह क्या बात है. कितने ऐसे मैदान हैं जहां पर बारिश से निपटने के लिए हर तरह के ठोस इंतज़ाम हैं.

ये तो सिर्फ 10 मुद्दे यहां लिखे गए हैं. हकीकत में हज़ारों ऐसे छोटे-छोटे मुद्दे हैं जिन्हें सही करने का वक्त अब आ चुका है. बीसीसीआई ये नहीं कह सकती है कि उनके पास संसाधनों की किसी तरह की कमी है. कई मायनों में देखा जाए तो ये फैंस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाला वक्त है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)



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