UP Election 1st Charan: पश्चिम में योगी के इन मंत्रियों की है अग्निपरीक्षा, क्या बरकरार रख पाएंगे 2017 वाला रुतबा?


सार

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति की नब्ज को समझने वाले डीके त्यागी कहते हैं कि इन मंत्रियों के लिए सिर्फ अपनी सीट ही बचाना बहुत बड़ी चुनौती नहीं होगी, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के बने जनाधार को भी बचाने के लिए इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा पहले चरण में ही दांव पर लग गई है…

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान गुरुवार को होगा। 11 जिलों के 58 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनावों में वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के 13 मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। इन मंत्रियों पर न सिर्फ खुद की सीट जीतने का दबाव है बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बनाकर वही 2017 वाला रुतबा बरकरार रखने की भी चुनौती बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी के मुताबिक उनके सभी नेता मजबूती के साथ मैदान में हैं, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस बार चुनाव पिछली बार के मुकाबले बड़ा पेचीदा हो चुका है।

किसान आंदोलन बना चुनौती

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर गुरुवार को चुनाव होना है, वहां 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड मतों से सीटें जीती थीं। 58 सीटों में से 53 सीटों पर कब्जा जमाया था। विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ करने के एवज में भाजपा ने इस इलाके के कद्दावर नेताओं को इनाम दिया और योगी सरकार में मंत्री बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को न सिर्फ बड़ी तवज्जो दी, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी भी मंत्रियों को दी।

अब इस चुनाव में इन्हीं मंत्रियों पर सरकार की साख बचाने का दांव फिर से भारतीय जनता पार्टी ने लगाकर सभी मंत्रियों को दोबारा चुनावी मैदान में उतार दिया है। राजनीतिक विश्लेषक डीके त्यागी कहते हैं कि 2017 में जो लहर थी, इस बार उस लहर को रोकने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चला किसानों का आंदोलन मजबूत चक्रव्यूह के तौर पर भाजपा के सामने खड़ा है। जिसे भाजपा के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।  

हालांकि भाजपा किसानों के आंदोलन की काट के तौर पर राज्य में कानून व्यवस्था और विकास के नारों के साथ साथ पहले होने वाले दंगे, पलायन और इलाकाई माफियाओं से भयमुक्त समाज की बात और उनके नारों को आगे बढ़ा रहा है। राजनीतिक जानकार डीके त्यागी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के विपक्ष में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने मुस्लिम और जाटों के समीकरण को साध कर भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। इसके अलावा विपक्षी दलों ने इस इलाके में महंगाई बेरोजगारी और गन्ना किसानों के भुगतान को एक बड़ा मुद्दा बनाया है। वह कहते हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की समस्याएं और किसानों से जुड़े सभी मामले चुनावी मुद्दे हमेशा से रहे हैं। इस बार भी आवारा पशुओं से बर्बाद होने वाली फसल और महंगी बिजली के साथ-साथ पुराने ट्रैक्टर के न चलने देने का मामला भी राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ा रहा है।

ये मंत्री हैं चुनावी दंगल में

विपक्षियों के तमाम मुद्दों से निपटने के लिए भाजपा थाना भवन सीट से चुनाव लड़ रहे मंत्री सुरेश राणा, बुलंदशहर के शिकारपुर सीट से चुनाव लड़ रहे मंत्री अनिल शर्मा, मथुरा की छाता सीट से लड़ रहे मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी, मुजफ्फरनगर सदर से विधायक और मंत्री कपिल देव अग्रवाल, मेरठ की हस्तिनापुर सीट से विधायक और मंत्री दिनेश खटीक, आगरा कैंट से विधायक और मंत्री डॉक्टर जीएस धर्मेश, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र और अलीगढ़ के अतरौली विधानसभा सीट से विधायक और मंत्री संदीप सिंह, मथुरा से विधायक और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के अलावा गाजियाबाद से विधायक और मंत्री अतुल गर्ग को दोबारा मैदान में उतारा है।

सीट बचाना बड़ी चुनौती

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक इन मंत्रियों के लिए सबसे बड़ा चैलेंज किसानों की नाराजगी से निपटना है। किसानों की नाराजगी न सिर्फ किसानों के आंदोलन से जुड़ी हुई है, बल्कि महंगाई, बेरोजगारी समेत गन्ने के भुगतान को लेकर भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति की नब्ज को समझने वाले डीके त्यागी कहते हैं कि इन मंत्रियों के लिए सिर्फ अपनी सीट ही बचाना बहुत बड़ी चुनौती नहीं होगी, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के बने जनाधार को भी बचाने के लिए इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा पहले चरण में ही दांव पर लग गई है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की जो समस्याएं हैं, उन्हें दूर करने के लिए उनकी पार्टी ने न सिर्फ काम किया, बल्कि किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री ने जिस तरीके कानून समाप्त कर दिए, उससे किसानों के बीच कोई भी नाराजगी नहीं है। भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जो माहौल 2017 से पहले था, उसे पूरी तरह न सिर्फ सामान्य किया है, बल्कि कानून व्यवस्था को बहुत बेहतर कर दिया है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं है।

विस्तार

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान गुरुवार को होगा। 11 जिलों के 58 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनावों में वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के 13 मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। इन मंत्रियों पर न सिर्फ खुद की सीट जीतने का दबाव है बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बनाकर वही 2017 वाला रुतबा बरकरार रखने की भी चुनौती बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी के मुताबिक उनके सभी नेता मजबूती के साथ मैदान में हैं, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस बार चुनाव पिछली बार के मुकाबले बड़ा पेचीदा हो चुका है।

किसान आंदोलन बना चुनौती

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर गुरुवार को चुनाव होना है, वहां 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड मतों से सीटें जीती थीं। 58 सीटों में से 53 सीटों पर कब्जा जमाया था। विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ करने के एवज में भाजपा ने इस इलाके के कद्दावर नेताओं को इनाम दिया और योगी सरकार में मंत्री बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को न सिर्फ बड़ी तवज्जो दी, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी भी मंत्रियों को दी।

अब इस चुनाव में इन्हीं मंत्रियों पर सरकार की साख बचाने का दांव फिर से भारतीय जनता पार्टी ने लगाकर सभी मंत्रियों को दोबारा चुनावी मैदान में उतार दिया है। राजनीतिक विश्लेषक डीके त्यागी कहते हैं कि 2017 में जो लहर थी, इस बार उस लहर को रोकने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चला किसानों का आंदोलन मजबूत चक्रव्यूह के तौर पर भाजपा के सामने खड़ा है। जिसे भाजपा के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।  

हालांकि भाजपा किसानों के आंदोलन की काट के तौर पर राज्य में कानून व्यवस्था और विकास के नारों के साथ साथ पहले होने वाले दंगे, पलायन और इलाकाई माफियाओं से भयमुक्त समाज की बात और उनके नारों को आगे बढ़ा रहा है। राजनीतिक जानकार डीके त्यागी कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के विपक्ष में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने मुस्लिम और जाटों के समीकरण को साध कर भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। इसके अलावा विपक्षी दलों ने इस इलाके में महंगाई बेरोजगारी और गन्ना किसानों के भुगतान को एक बड़ा मुद्दा बनाया है। वह कहते हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की समस्याएं और किसानों से जुड़े सभी मामले चुनावी मुद्दे हमेशा से रहे हैं। इस बार भी आवारा पशुओं से बर्बाद होने वाली फसल और महंगी बिजली के साथ-साथ पुराने ट्रैक्टर के न चलने देने का मामला भी राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ा रहा है।

ये मंत्री हैं चुनावी दंगल में

विपक्षियों के तमाम मुद्दों से निपटने के लिए भाजपा थाना भवन सीट से चुनाव लड़ रहे मंत्री सुरेश राणा, बुलंदशहर के शिकारपुर सीट से चुनाव लड़ रहे मंत्री अनिल शर्मा, मथुरा की छाता सीट से लड़ रहे मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी, मुजफ्फरनगर सदर से विधायक और मंत्री कपिल देव अग्रवाल, मेरठ की हस्तिनापुर सीट से विधायक और मंत्री दिनेश खटीक, आगरा कैंट से विधायक और मंत्री डॉक्टर जीएस धर्मेश, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र और अलीगढ़ के अतरौली विधानसभा सीट से विधायक और मंत्री संदीप सिंह, मथुरा से विधायक और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के अलावा गाजियाबाद से विधायक और मंत्री अतुल गर्ग को दोबारा मैदान में उतारा है।

सीट बचाना बड़ी चुनौती

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक इन मंत्रियों के लिए सबसे बड़ा चैलेंज किसानों की नाराजगी से निपटना है। किसानों की नाराजगी न सिर्फ किसानों के आंदोलन से जुड़ी हुई है, बल्कि महंगाई, बेरोजगारी समेत गन्ने के भुगतान को लेकर भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति की नब्ज को समझने वाले डीके त्यागी कहते हैं कि इन मंत्रियों के लिए सिर्फ अपनी सीट ही बचाना बहुत बड़ी चुनौती नहीं होगी, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के बने जनाधार को भी बचाने के लिए इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा पहले चरण में ही दांव पर लग गई है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की जो समस्याएं हैं, उन्हें दूर करने के लिए उनकी पार्टी ने न सिर्फ काम किया, बल्कि किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री ने जिस तरीके कानून समाप्त कर दिए, उससे किसानों के बीच कोई भी नाराजगी नहीं है। भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जो माहौल 2017 से पहले था, उसे पूरी तरह न सिर्फ सामान्य किया है, बल्कि कानून व्यवस्था को बहुत बेहतर कर दिया है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं है।



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