हाइलाइट्स
शीर्ष संवैधानिक पद के लिये कई शीर्षक सुझाए गए थे.
संविधान सभा ने ‘राष्ट्रपति’ को लेकर सहमति जताई.
चौधरी ने हालांकि स्पष्ट किया है कि उन्होंने “चूकवश” ऐसा बोल दिया था.
नई दिल्ली. भारत के शीर्ष संवैधानिक पद के लिये ‘सरदार’, ‘प्रधान’, ‘नेता’, ‘कर्णधार’ और ‘मुख्य कार्यकारी व राष्ट्र अध्यक्ष’ समेत कई शीर्षक सुझाए गए थे लेकिन संविधान सभा ने ‘राष्ट्रपति’ को लेकर सहमति जताई. पिछले 75 वर्षों में हालांकि राष्ट्र प्रमुख के लिए कई बार लैंगिक रूप से तटस्थ शब्द के इस्तेमाल का आह्वान किया गया और इस पर बहस भी हुई है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा ‘राष्ट्रपत्नी’ के रूप में संदर्भित किए जाने पर राजनीतिक हंगामे से एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है. चौधरी ने हालांकि स्पष्ट किया है कि उन्होंने “चूकवश” ऐसा बोल दिया था.
कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को कहा कि हाल के वर्षों में कुछ शब्दों और वाक्यांशों को विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक रूप से ज्यादा तटस्थ शब्दों से बदल दिया गया है. जैसे अंग्रेजी में ‘स्पोक्समैन’ (प्रवक्ता) के लिये ‘स्पोक्सपर्सन’, ‘चेयरमैन’ (अध्यक्ष) के लिये ‘चेयरपर्सन’ और क्रिकेट में ‘बेट्समैन’ (बल्लेबाज) के लिये ‘बेटर’ शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है जो लैंगिक रूप से तटस्थ हैं.
‘पीपल अगेंस्ट रेप इन इंडिया’ की प्रमुख और महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि ‘चेयरपर्सन’ की तरह ‘प्रेसीडेंट’ (राष्ट्रपति) भी लैंगिक रूप से तटस्थ है. हिंदी में अनुवाद करने पर शब्द का भाव बदल जाता है लेकिन प्रासंगिकता वही है. भयाना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “लेकिन चौधरी की टिप्पणी असंवेदनशील थी. मुझे लगता है कि वह लैंगिक रूप से बेहद स्पष्ट होना चाहते थे क्योंकि वह पितृसत्तात्मक बयान देना चाहते थे. हमनें कभी प्रतिभा पाटिल (पूर्व राष्ट्रपति) को उस नजरिये से नहीं देखा.”
उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति का जिक्र करते हुए कोई भी लैंगिक रूप से तटस्थ होने के बारे में सोच सकता है, लेकिन उन्होंने (चौधरी) एक अलग कारण से बयान दिया. हालांकि, भविष्य में पद के लिए उपयुक्त शब्द होना चाहिए.” सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि राष्ट्रपति के लिए ‘चेयरपर्सन’ की तरह लैंगिक रूप से तटस्थ शब्द होना चाहिए. उन्होंने कहा, “मंत्री भी लैंगिक भाव नहीं दर्शाते हैं, लेकिन जिस क्षण आप ‘पति’ और ‘पत्नी’ कहते हैं, उसके अन्य अर्थ भी होते हैं.” हालांकि कुछ कार्यकर्ताओं का मानना है कि राष्ट्रपति क्योंकि एक संवैधानिक पद है यह पहले ही लैंगिक रूप से तटस्थ है.
सामाजिक कार्यकर्ता और ‘सेंटर फॉर सोशल रिसर्च’ की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि चाहे पुरुष हो या महिला, राष्ट्रपति के पास समान शक्ति और अधिकार होता है और यह एक संवैधानिक पद है. उन्होंने कहा, “तो मुझे समझ नहीं आता कि लोग भ्रमित क्यों हैं.” उन्होंने कहा, “लेकिन अगर सरकार लैंगिक रूप से तटस्थ शब्द चाहती है तो वे इसे ‘राष्ट्रप्रधान’ कह सकते हैं. लेकिन मुझे नहीं पता कि हमें राष्ट्रपति को ‘लैंगिक’ शब्द के रूप में क्यों देखना चाहिए क्योंकि ‘पति’ वास्तव में यहां किसी का पति नहीं है इसलिए मुझे विवाद का कारण नहीं दिखता.”
उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें ‘राष्ट्रपत्नी’ कहना एक बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात के रूप में देखती हूं और यह बहुत अपमानजनक था. राष्ट्रपति को लैंगिक तटस्थ बनाने के इरादे से बदला नहीं जाना चाहिए. मैं इसे पहले से ही लैंगिक रूप से तटस्थ शब्द मानती हूं.” जुलाई 1947 में एक संविधान सभा की बहस के दौरान, ‘राष्ट्रपति’ शब्द को ‘नेता’ या ‘कर्णधार’ से बदलने के लिए एक संशोधन का आह्वान किया गया था, लेकिन इसे आगे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि एक समिति को इसे देखना था. बाद में, भारत के राष्ट्रपति के लिए हिंदी शब्द के रूप में ‘राष्ट्रपति’ को जारी रखने का निर्णय लिया गया.
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Tags: Adhir Ranjan Chaudhary, Draupadi murmu
FIRST PUBLISHED : July 29, 2022, 05:00 IST