चंडीगढ़. पंजाब में इस बार ‘आम आदमी’ (AAP) की बदलाव की आंधी में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासत की रियासत भी ढह गई. वे पंजाब की सियासत (Punjab Politics) में इस वक्त अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल (Prakash Singh Badal) की तरह दूसरे ‘बड़े नाम वाले’ नेता हैं. बादल की तरह अमरिंदर भी अपनी उम्र और राजनीति के आखिरी पड़ाव पर हैं. पटियाला रियासत के राजा हैं. भारत की सेना में कैप्टन रह चुके हैं. युद्ध के मोर्चे से लेकर सियासत के रण में रणनीति बनाकर पहले कई बार अपने प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटा चुके हैं. लेकिन इस बार बादल की तरह अपने किले ‘पटियाला में ही पटखनी’ खा गए हैं. पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Elections-2022) के गुरुवार, 10 मार्च को आए नतीजों/रुझानों (Election Results) के मुताबिक, पटियाला में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) 28,231 वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे हैं. जबकि ‘आप’ के अजीत पाल सिंह कोहली 48,104 वोट लेकर पहले स्थान पर रहे हैं.
इस बार राजनीति का रुख नहीं भांप सके अमरिंदर
राजनीति के जानकार बताते हैं कि इस बार अमरिंदर पंजाब का रुख भांपने में चूक गए. जब तक उन्होंने राज्य में कांग्रेस की सरकार का नेतृत्त्व किया, उस पर कई आरोप लगे. नशीले पदार्थों के धंधे पर लगाम न लगा पाने का. बेरोजगारी से जूझते पंजाब के युवाओं को राहत न दे पाने का. गुरु ग्रंथ साहित की बेअदबी करने वाले आरोपियों पर कार्रवाई न करने का. किसानों के मसले को ठीक तरह से न सुलझा पाने का. और सड़क-बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की तरफ पूरा ध्यान न देने का. इतना ही नहीं, कैप्टन को विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) से कुछ समय पहले जब कांग्रेस छोड़नी पड़ी, तो उन्होंने अपना अलग दल बनाकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का हाथ थाम लिया. जबकि 3 विवादित केंद्रीय कृषि कानून लाने वाली भाजपा से पंजाब के किसान ही सबसे अधिक नाराज थे. इस सबका नतीजा उनकी और उनके दल (Punjab Lok Congress) के तमाम प्रत्याशियों की बुरी तरह हार के रूप में सामने आया.
जबकि अमरिंदर ‘रण के रणनीतिकार’ रहे हैं
कैप्टन अमरिंदर ‘रण का रणनीतिकार’ रहे हैं. यह बात उन्होंने तब साबित की, जब वे जून 1963 से दिसंबर 1966 तक सेना में रहे. सिख रेजीमेंट में सेवाएं देते हुए 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध (India-Pakistan War-1965) में हिस्सा लिया. कांग्रेस की अगुवाई करते हुए 2017 में उन्होंने अकाली-दल और भारतीय जनता पार्टी (Akali Dal-BJP) की 10 साल से चल रही गठबंधन सरकार सत्ता से बेदखल कर फिर खुद को कुशल रणनीतिकार साबित किया. अमृतसर (Amritsar) से 2014 में जब भाजपा ने अपने दिग्गज नेता अरुण जेटली को लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) में उतारा तो, अमरिंदर ही थे जिन्होंने कांग्रेस (Congress) की ओर से उन्हें चुनौती दी और 1 लाख से अधिक मतों से हराया भी. यही नहीं, 1997-98 के दौर में जब कांग्रेस पंजाब में अपनी वापसी के लिए संघर्ष कर रही थी, तब अमरिंदर सिंह ही उसके खेवैया बने थे. वे 1999 में पंजाब इकाई के प्रमुख बने और 3 साल के भीतर 2002 पार्टी को सत्ता में ले आए. इसके बाद 2007 में पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस की जड़ों को राज्य में और मजबूत किया.