‘गली गुलियां’ को ओटीटी पर रिलीज होने में 4 साल क्‍यों लगे? मनोज बाजपेयी बोले- ये लंबी लड़ाई थी!


मनोज बाजपेयी की फिल्‍म ‘गली गुलियां’ चार साल के लंबे इंतजार के बाद ओटीटी पर रिलीज हो गई है। अमेजन प्राइम वीडियो पर शुक्रवार से यह फिल्‍म स्‍ट्रीम हो रही है। यह दिलचस्‍प है कि आज जब सिनेमाघरों में रिलीज के एक से दो महीने के भीतर ही फिल्‍में ओटीटी पर आ जाती हैं, वहीं मनोज बाजपेयी की इस फिल्‍म को यह सफर तय करने में पांच साल का वक्‍त लग गया। 2018 में रिलीज हुई इस फिल्‍म को बॉक्‍स ऑफिस पर बहुत अच्‍छा रेस्‍पॉन्‍स नहीं मिला था। लेकिन ‘गली गुलियां’ दुनियाभर में 20 से अधिक फिल्म फेस्‍ट‍िवल्‍स में चुनी गई। 2017 में 22वें बुसान इंटरनैशनल फिल्म फेस्‍ट‍िवल में इसे प्रीमियर किया गया था। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आख‍िर ओटीटी पर आने में ‘गली गुलियां’ को इतना वक्‍त क्‍यों लगा? मनोज बाजपेयी कहते हैं कि फिल्‍म के लिए ओटीटी तक आने का सफर किसी लड़ाई से कम नहीं था।

Manoj Bajpayee कहते हैं, ‘Gali Guleiyan फिल्म ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों के जरिए दुनियाभर की यात्रा की है और कई पुरस्कार जीते हैं। पहले मैं चाहता था कि यह फिल्म हमारे देश के दर्शकों के लिए रिलीज हो, लेकिन इसे करना एक लड़ाई रही है और यह आखिरकार सामने आ गई है। मैं आपको बता नहीं सकता कि मैं इसे आप सभी के साथ यह शेयर करते हुए कितना एक्‍साइटेड हूं। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह फिल्‍म दर्शकों को खूब पसंद आएगी।’

साइकोलॉजिकल ड्रामा है ‘गली गुलियां’
मनोज बाजपेयी के अलावा दीपेश जैन के डायरेक्‍शन में बनी इस फिल्‍म में रणवीर शौरी, नीरज काबी, शाहाना गोस्वामी और ओम सिंह भी हैं। यह एक साइकोलॉजिकल ड्रामा फिल्‍म है जो शहर की दीवारों और अपने दिमाग की उलझन में फंसे एक इंसान के बारे में है। यह फिल्‍म खुद को अपने दिमाग की दीवारों के कैद से आजाद करने की कहानी है। यह मानवीय संबंध पर भी एक नई रोशनी डालती है।

‘गली गुलियां’ का ट्रेलर


रोल के कारण खुद के दिमाग पर पड़ने लगा था असर
मनोज बाजपेयी की गिनती इंडस्‍ट्री के मेथड एक्‍टर्स में होती है। वह बताते हैं ‘गली गुलियां’ में लीड रोल निभाने के लिए उन पर खुद भी भावनात्मक असर पड़ा। मनोज कहते हैं, ‘यह फिल्म असल में नोयर शैली में आती है और मानसिक स्वास्थ्य के सभी पहलुओं को दिखाती है। इसने न केवल मुझे एक एक्‍टर के रूप में चुनौती दी, बल्कि मुझे एक ऐसे व्यक्ति के दिमाग को भी पर्दे पर शेयर करना था, जो एक गहरे जख्मी मेंटल ट्रॉमा और चोट से गुजर रहा है। जब इस तरह के किरदार निभाने की बात आती है तो एक अभिनेता के रूप में, आपको फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद खुद को होने वाले मानसिक आघात के लिए तैयार रहना चाहिए।’

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मनोज बाजपेयी ने फीस में की थी कटौती
‘गली गुलियां’ के बजट को मेकर्स ने कम से कम रखने की कोश‍िश की थी। यही कारण है कि मनोज बाजपेयी ने इसके लिए अपनी फीस में एक चौथाई की कटौती की। वो कहते हैं, ‘यह फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब रही है और मैंने इसके लिए जिम्मेदार महसूस किया। एग्‍जीबिटर्स और डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स से बात करने से लेकर इसे सभी प्रमुख फिल्म समारोहों में ले जाने और ओटीटी पर इसकी रिलीज के लिए लड़ने तक, मैं टीम के लिए हर कदम पर मौजूद था। हमने इसे यहां तक लाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है।’

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