एकनाथ शिंदे आखिर क्यों डुबोने में लगे हैं महाराष्ट्र में गठबंधन की नाव? क्या है उनकी अगली रणनीति, जानें


(प्रज्ञा कौशिक और रोहिणी स्वामी)

महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार को संकट में लाने वाले एकनाथ शिंदे कट्टर शिवसैनिक माने जाते हैं लेकिन अचानक उनके बागी तेवर ने अपनी पार्टी के लोगों को भी हैरान कर दिया है. आखिर अचानक उनके रुख में परिवर्तन क्यों आया? कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और संजय राउत दोनों से खफा हैं और उन्हें हटा कर आदित्य ठाकरे को तवज्जो दिए जाने से नाराज हैं. सूत्रों का कहना है कि तनाव पिछले कुछ दिनों से बढ़ रहा था लेकिन एमवीए में किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि अचानक कुछ इस तरह से फट पड़ेगा.

दो दिन पहले ही शिंदे ने मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ शिव सेना की 56वीं वर्षगांठ के अवसर पर मंच साझा करने का फोटो भी पोस्ट किया था. एकनाथ शिंदे पिछले हफ्ते आदित्य ठाकरे के साथ अयोध्या भी गए थे, लेकिन उनकी मुख्यमंत्री के साथ बमुश्किल बात हो रही थी और वह पार्टी में हताश महसूस कर रहे हैं.

अनबन का भाजपा ने उठाया फायदा
उनके और मुख्यमंत्री के बीच संवाद में कमी का फायदा भाजपा उठाना चाहती है. सूत्रों का दावा है कि शिंदे को अपने विभाग शहरी विकास और पीडब्ल्यूडी में आजादी के साथ काम करने नहीं दिया जा रहा था. मुख्यमंत्री कार्यालय लगातार उनके मंत्रालय के विकास कार्यों पर नजर बनाए हुए था और तमाम अहम फैसलों में मुख्यमंत्री की रजामंदी की ज़रूरत पड़ती है. कुछ का यह भी आरोप है कि आदित्य ठाकरे शिंदे के विभाग में हस्तक्षेप कर रहे थे. वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस कैबिनेट में भी काम कर चुके हैं और उनके पूर्व मुख्यमंत्री के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. ऐसे में लगता है कि यह भाजपा के पक्ष में काम करेगा.

शिंदे को नहीं मिल रहा था किसी से सहयोग
एकनाथ शिंदे के समर्थकों और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शिवसेना विधायकों ने शिकायत की थी, कि न तो शरद पवार और न ही एनसीपी के विधायक सहयोग कर रहे थे. और यहां तक कि उद्धव ठाकरे भी उनसे नहीं मिल रहे थे. इस बात की वजह से रैंकों में दरार पैदा हो गई है. अब भाजपा सूत्रों का दावा है कि शिंदे के साथ करीब दो दर्जन विधायक हैं और वह उन्हें सूरत ले गए हैं.

एमएलसी चुनाव में उभरी है दरार

एक बात जो शिंदे को अखर सकती है वह राज्यसभा चुनाव के दौरान संजय राउत के साथ दो युवा सेना के नेताओं को एमएलसी चुनाव का प्रभार दिया जाना है. घायल एकनाथ शिंदे जो 2019 में मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब तक पाल चुकेथे, एक बार फिर उद्धव ठाकरे से निराश हैं. यह बात एमएलसी चुनाव में जाहिर होती है जहां भाजपा ने क्रॉस वोटिंग में जीत हासिल की है. सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री और उनके परिवार की लगातार दखलअंदाजी और उपेक्षा के शिकार शिंदे ने इन्हीं वजहों से एमवीए के खिलाफ सख्त कदम उठाया है.

2019 में मुख्यमंत्री की दौड़ में थे शिंदे
2019 में जब यह घोषणा हुई कि मुख्यमंत्री शिवसेना से होगा तो इस दौड़ में एकनाथ शिंदे सबसे आगे थे. संजय राउत और सुभाष देसाई ने इस बात पर जोर दिया कि ठाकरे मुख्यमंत्री के तौर पर शिंदे से बेहतर चयन रहेंगे. तभी से उनके घाव नासूर बन रहे थे. इसके बाद ताबूत में आखरी कील साबित हुआ राउत को राज्यसभा सीट और एमएलसी की जिम्मेदारी सौंपना.

ठाकरे की मुखालफत करने में भी पुरानी रणनीति
आज शिंदे उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं जिसे उन्होंने 2019 में एमवीए विधायकों को सरकार बनाने में मदद करने के लिए अपनाया था. उन्होंने विधायकों को एक रिसॉर्ट में रोक कर रखा था. विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे को शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के विधायकों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उन्हें मुंबई के रिसॉर्ट में रखा गया था जिसका पूरा खर्चा भी शिंदे ने ही वहन किया था. अब उन्होंने जब उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका है तो कथित तौर पर सूरत के एक रिसॉर्ट में 20 विधायकों को रखा है.

अपने समर्पण से इस मुकाम तक पहुंचे
एकनाथ शिंदे ने इस कद तक पहुंचने के लिए बहुत नीचे से शुरुआत की है. ऑटो रिक्शा और टेंपो चालक से वह अपनी रणनीति, समर्पण और तेज दिमाग के चलते यहां तक पहुंचे हैं. जल्दी ही वह उद्धव ठाकरे के भरोसेमंद लोगों में से एक बन गए. उन्हें संगठनात्मक हुनर और कुशल प्रशासन के लिए जाना जाता है. देवेंद्र फड़णवीस के दिल्ली जाने के साथ ही यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शिंदे जिनके भाजपा और फड़णवीस के साथ करीबी नाते हैं, शायद मिलकर महाराष्ट्र की राजनीति को बदलने की रणनीति पर काम कर सकते हैं.

Tags: BJP, Congress, Maharashtra, NCP, Shivsena



Source link

Enable Notifications OK No thanks