राजस्थान: चार राज्यों में भाजपा की बंपर जीत से वसुंधरा खेमा क्यों है बेचैन, क्या मोदी-शाह के नाम पर होगा 2023 का चुनाव?


सार

राजस्थान के राजनीतिक जानकार कहते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे दोनों ही अब अगली रणनीति के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे। इन चुनाव से ये देखना था कि भाजपा की राष्ट्रवाद की लहर अभी भी मजबूत है या कमजोर पड़ चुकी है…

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चार राज्यों में भगवा परचम फहराने की सबसे ज्यादा खुशी इन दिनों राजस्थान भाजपा के नेताओं के चेहरों पर साफ नजर आ रही है। पार्टी का एक खेमा इसे मोदी-शाह की जीत बताकर जश्न मनाने में लगा हुआ है। तो दूसरे खेमे की बेचैनी इन परिणामों ने बढ़ा दी है। दरअसल, राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजस्थान भाजपा के रणनीतिकारों के सामने यह चुनौती है कि 2023 का चुनाव किसी चेहरे के साथ लड़ा जाए या फिर मोदी शाह के नाम पर। अगर सीएम चेहरा हो तो किसे बनाया जाए। क्योंकि चुनाव के 18 माह पहले से सीएम फेस को लेकर कई नाम सामने आ रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ राज्य के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गुट राजे को सीएम फेस घोषित करने को लेकर दबाव बनाए हुए है।

राजे ने किया शक्ति प्रदर्शन

भाजपा की यह बंपर जीत राजस्थान भाजपा संगठन के नेताओं के लिए दोहरी खुशी लेकर आया है। क्योंकि प्रदेश की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गुट राजे को सीएम फेस बनाने को लेकर प्रदेश से लेकर दिल्ली हाईकमान तक दबाव बनाए हुए है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से दो दिन पहले यानी आठ मार्च को अपने जन्मदिन पर वसुंधरा राजे ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया, तो वह भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता की नई लकीर है। राजे के इस शक्ति प्रदर्शन में न सिर्फ हजारों की भीड़ पहुंची बल्कि पार्टी के 58 विधायक भी उस जलसे में शामिल हुए थे। राजे की एक तरह से यह पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति थी ताकि राज्य के कमान उनके हाथ में सौंप दी जाए।

लेकिन चार राज्यों में भाजपा को मिली बंपर जीत का सीधा असर राजे की इस रणनीति पर दिखाई दे सकता है। अब उनके सीएम फेस बनाए जाने की मांग पहले की तुलना में कमजोर पड़ेगी। क्योंकि प्रदेश भाजपा दूसरा गुट चार राज्यों की जीत पीएम मोदी के नाम और काम की जीत बताने में लगा हुआ है। विरोधी नेताओं का कहना है कि यह जीत केवल पीएम मोदी के काम के आधार पर हुई हैं। चारों राज्यों में प्रचार के दौरान मुख्य केंद्र बिंदु पीएम ही थे।  

भाजपा का राष्ट्रवाद का गणित

राज्य के राजनीतिक जानकार कहते है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राजे के विकल्प के रूप में करीब आधा दर्जन नेताओं की फौज खड़ी कर दी। इसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और सांसद दीया कुमारी जैसे चेहरे प्रमुख हैं। लेकिन भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे दोनों ही अब अगली रणनीति के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे। इन चुनाव से ये देखना था कि भाजपा की राष्ट्रवाद की लहर अभी भी मजबूत है या कमजोर पड़ चुकी है। क्योंकि भाजपा का सीधा गणित है, अगर राष्ट्रवाद की लहर चुनाव में काम कर रही हो तो फिर सीएम फेस की खास जरूरत नहीं है। पार्टी बिना चेहरे के भी चुनाव जीत सकती है।

ऐसे में राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व की अपनी अब तक की रणनीति पर आगे बढ़ा जा सकता है। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा पहले से सत्ता में थी, लिहाजा मुख्यमंत्रियों के चेहरे चुनाव में थे। लेकिन सीएम से अधिक सभी राज्यों में पीएम मोदी का फेस और राष्ट्रवाद की लहर ने इस बार भी अधिक काम किया। सिर्फ यूपी का अपवाद छोड़ दे, तो यूपी में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी भी लोकप्रिय चेहरा थे। उत्तराखंड में तो तीन बार सीएम बदलने के बावजूद भाजपा ने बंपर जीत दर्ज की, जिसे पीएम मोदी की लोकप्रियता का ही चमत्कार माना जा रहा है।

विस्तार

चार राज्यों में भगवा परचम फहराने की सबसे ज्यादा खुशी इन दिनों राजस्थान भाजपा के नेताओं के चेहरों पर साफ नजर आ रही है। पार्टी का एक खेमा इसे मोदी-शाह की जीत बताकर जश्न मनाने में लगा हुआ है। तो दूसरे खेमे की बेचैनी इन परिणामों ने बढ़ा दी है। दरअसल, राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राजस्थान भाजपा के रणनीतिकारों के सामने यह चुनौती है कि 2023 का चुनाव किसी चेहरे के साथ लड़ा जाए या फिर मोदी शाह के नाम पर। अगर सीएम चेहरा हो तो किसे बनाया जाए। क्योंकि चुनाव के 18 माह पहले से सीएम फेस को लेकर कई नाम सामने आ रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ राज्य के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गुट राजे को सीएम फेस घोषित करने को लेकर दबाव बनाए हुए है।

राजे ने किया शक्ति प्रदर्शन

भाजपा की यह बंपर जीत राजस्थान भाजपा संगठन के नेताओं के लिए दोहरी खुशी लेकर आया है। क्योंकि प्रदेश की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गुट राजे को सीएम फेस बनाने को लेकर प्रदेश से लेकर दिल्ली हाईकमान तक दबाव बनाए हुए है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से दो दिन पहले यानी आठ मार्च को अपने जन्मदिन पर वसुंधरा राजे ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया, तो वह भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता की नई लकीर है। राजे के इस शक्ति प्रदर्शन में न सिर्फ हजारों की भीड़ पहुंची बल्कि पार्टी के 58 विधायक भी उस जलसे में शामिल हुए थे। राजे की एक तरह से यह पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति थी ताकि राज्य के कमान उनके हाथ में सौंप दी जाए।

लेकिन चार राज्यों में भाजपा को मिली बंपर जीत का सीधा असर राजे की इस रणनीति पर दिखाई दे सकता है। अब उनके सीएम फेस बनाए जाने की मांग पहले की तुलना में कमजोर पड़ेगी। क्योंकि प्रदेश भाजपा दूसरा गुट चार राज्यों की जीत पीएम मोदी के नाम और काम की जीत बताने में लगा हुआ है। विरोधी नेताओं का कहना है कि यह जीत केवल पीएम मोदी के काम के आधार पर हुई हैं। चारों राज्यों में प्रचार के दौरान मुख्य केंद्र बिंदु पीएम ही थे।  

भाजपा का राष्ट्रवाद का गणित

राज्य के राजनीतिक जानकार कहते है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राजे के विकल्प के रूप में करीब आधा दर्जन नेताओं की फौज खड़ी कर दी। इसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और सांसद दीया कुमारी जैसे चेहरे प्रमुख हैं। लेकिन भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे दोनों ही अब अगली रणनीति के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे। इन चुनाव से ये देखना था कि भाजपा की राष्ट्रवाद की लहर अभी भी मजबूत है या कमजोर पड़ चुकी है। क्योंकि भाजपा का सीधा गणित है, अगर राष्ट्रवाद की लहर चुनाव में काम कर रही हो तो फिर सीएम फेस की खास जरूरत नहीं है। पार्टी बिना चेहरे के भी चुनाव जीत सकती है।

ऐसे में राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व की अपनी अब तक की रणनीति पर आगे बढ़ा जा सकता है। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा पहले से सत्ता में थी, लिहाजा मुख्यमंत्रियों के चेहरे चुनाव में थे। लेकिन सीएम से अधिक सभी राज्यों में पीएम मोदी का फेस और राष्ट्रवाद की लहर ने इस बार भी अधिक काम किया। सिर्फ यूपी का अपवाद छोड़ दे, तो यूपी में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी भी लोकप्रिय चेहरा थे। उत्तराखंड में तो तीन बार सीएम बदलने के बावजूद भाजपा ने बंपर जीत दर्ज की, जिसे पीएम मोदी की लोकप्रियता का ही चमत्कार माना जा रहा है।



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