ज्यूरिख यूनिवर्सिटी में थ्योरिटिकल एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर और स्टडी के सह-लेखक रवित हेल्ड के अनुसार, पृथ्वी पर पानी के तरल रूप में होने का एक कारण इसका वातावरण है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर नैचुरल ग्रीनहाउस के प्रभाव से महासागरों, नदियों और बारिश के लिए जरूरी गर्मी पैदा होती है।
जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था, तब उसके वायुमंडल में ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम थी। समय के साथ पृथ्वी ने इस वातावरण को खो दिया, लेकिन कुछ बड़े ग्रह इस वातावरण को अनिश्चित काल तक बनाए रख सकते हैं।
रवित हेल्ड का कहना है कि इस तरह का वातावरण भी ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को प्रेरित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में यही पता लगाया कि क्या ऐसे वातावरण तरल पानी के लिए जरूरी परिस्थितियां बना सकते हैं। नेचर एस्ट्रोनॉमी में पब्लिश अपनी स्टडी में रिसर्चर्स ने कई ग्रहों का मॉडल तैयार किया और अरबों साल में हुए उनके विकास को देखा। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन ग्रहों में उनका वातावरण बना रहता है, वहां लिक्विड वॉटर के लिए सही स्थिति हो सकती है।
रिसर्च की फाइंडिंग्स बताती हैं कि ग्रहों पर ऐसी स्थितियां कई अरब वर्षों तक रह सकती हैं। हालांकि स्टडी के एक और लेखक ने कहा है कि इस तरह की स्थितियों में जीवन के पनपने की संभावना का अभी पता नहीं है। गौरतलब है कि वैज्ञानिकों ने ऐसे एक्सोप्लैनेट का भी पता लगा लिया है, जो अपनी संरचना की वजह से पृथ्वी से मिलते-जिलते हैं। हालांकि वहां अभी जीवन मुमकिन नहीं है, क्योंकि उन ग्रहों का तापमान बहुत ज्यादा है। अब नई रिसर्च यह बताती है कि एक्सोप्लैनेट की सतह पर कई अरब साल तक पानी मौजूद रह सकता है।