योगी मंत्रिमंडल: भाजपा की इस रणनीति से सपा की मुश्किलें बढ़ना तय, ऐसे बदलता रहा समीकरण


योगी मंत्रिमंडल में कुर्मी बिरादरी को खास तवज्जो देने के पीछे सियासी निहितार्थ हैं। भाजपा ने इस जाति के तीन कैबिनेट और एक राज्यमंत्री बनाकर भविष्य का सियासी संदेश दिया है। मिशन 2024 की तैयारी में अभी से जुटी भाजपा की इस रणनीति ने सपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस बार सदन में पिछड़ी जाति के विधायकों में कुर्मी जाति के विधायकों की संख्या 37 से बढ़कर 41 हो गई है। विधानसभा में पिछली बार भाजपा के 26 और अपना दल के पांच कुर्मी विधायक चुने गए थे। इस बार भाजपा में कुर्मी जाति के विधायकों की संख्या घटकर 22 रह गई है। हालांकि अपना दल से फिर पांच विधायक चुने गए हैं। सपा में कुर्मी विधायकों की संख्या इस बार दो से बढ़कर 14 हो गई है। ऐसे में भाजपा ने इस बार मंत्रिमंडल में तीन कैबिनेट मंत्री के रूप में स्वतंत्रदेव सिंह, राकेश सचान, अपना दल के आशीष पटेल और राज्यमंत्री संजय गंगवार को शामिल किया है।

सियासी जानकारों का कहना है कि पिछड़ी जाति में यादवों को सपा का वोट बैंक माना जाता है। गैर यादव पिछड़ी जातियों में दूसरे नंबर पर कुर्मी हैं। यह कहीं भाजपा के साथ हैं तो कहीं सपा के साथ। एक बड़ा धड़ा अपना दल के साथ भी जुड़ा है। ऐसे में भाजपा इस वोट बैंक के बड़े हिस्से को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है।

भाजपा की रणनीति की एक बड़ी वजह यह भी है कि आधा दर्जन से ज्यादा सीटें सपा सिर्फ 200 वोटों के अंतर से हारी है। दूसरी तरफ, बसपा के कद्दावर कुर्मी नेता सपा के साथ आ गए हैं जिससे अंबेडकरनगर में भाजपा का खाता भी नहीं खुला।

 

यहां सपा को मिली ताकत

अंबेडकरनगर में राममूर्ति वर्मा के बाद बसपा से लालजी वर्मा सपा में आए तो यहां भाजपा का खाता ही नहीं खुला। सिराथू में भाजपा के दिग्गज नेता उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सपा की डॉ. पल्लवी पटेल ने मात दी। प्रयागराज, जौनपुर, वाराणसी में जिस भी सीट पर कुर्मी बिरादरी का झुकाव सपा की ओर था, वहां उसे जीत मिली। कानपुर देहात, बुंदेलखंड में कुर्मी बिरादरी का झुकाव भाजपा की ओर हुआ तो सपा को शिकस्त मिली।

नई पीढ़ी तैयार करने की रणनीति

प्रदेश की सियासत में कभी भाजपा के पास विनय कटियार, ओमप्रकाश सिंह, रामकुमार वर्मा जैसे दिग्गज नेता थे तो सपा के लिए बेनी प्रसाद वर्मा पतवार साबित होते थे। वक्त बदला, हालात बदले। नई पीढ़ी में पुराने नेता नेपथ्य में चले गए। कुर्मी नेता भाजपा और सपा सहित अन्य दलों में सामने आए, लेकिन जातीय गोलबंदी नहीं हो सकी है। यही वजह है कि भाजपा को अपना दल का सहारा लेना पड़ा। ऐसे में भाजपा कुर्मी जाति के अलग-अलग क्षेत्र में नेताओं को आगे कर रही है। वह इस वोट बैंक को यह बताना चाहती है कि उसका भविष्य भाजपा में ही सुरक्षित है।



Source link

Enable Notifications OK No thanks