फोन पर उन्होंने अपनी बेहद मधुर आवाज में उत्साह भरे लहजे में ‘नमस्कार’ कहकर मेरा अभिवादन किया। जवाब में मैंने धीमी आवाज में कहा, ‘नमस्कार मैम, मैं आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूं।’
आखिर, लता मंगेशकर से रोज-रोज बात करने का मौका नहीं मिलता है, खासकर तब जब वह लगभग आठ दशकों तक 36 भारतीय भाषाओं में 25,000 से अधिक गाने गाने के बाद सार्वजनिक जीवन से लगभग सेवानिवृत्त हो चुकी होती हैं।
लेकिन मुझे उनकी आवाज में जरा भी अहं नहीं नजर आया। उन्होंने घबराती आवाज में किए गए मेरे नमस्कार का जवाब, ‘अरे नहीं, धन्यवाद, धन्यवाद’ कहकर दिया।
यह मौका था ‘ठीक नहीं लगता’ के प्रदर्शन का, जो 20 साल बाद मिली विशाल भारद्वाज-गुलजार की रचना थी और 28 सितंबर 2021 को उनके 92वें जन्मदिन पर रिलीज हुई थी।
मुझे शुरुआत में सिर्फ पांच सवाल भेजने के लिए कहा गया था और बदले में वॉयस नोट्स देने का वादा किया गया था। मैंने सवाल भेजे, मान बैठी थी कि इंटरव्यब बिल्कुल नहीं हो सकता है।
लगभग दस दिनों के बाद मेरे पास फोन आया कि मैं उनसे सीधे बात कर सकती हूं। मेरे द्वारा तैयार की गई सवालों की सूची पर अधिक सोच-विचार न करने के लिए मेरी पहली प्रतिक्रिया मेरे लिए एक काल्पनिक किक थी। ‘पीटीआई भाषा’ से उनका यह आखिरी इंटरव्यू सिर्फ दस मिनट का था, लेकिन मेरे लिए, एक पत्रकार और फैन के लिए, इतना ही काफी था।
लता ने गुलजार और भारद्वाज के साथ काम करने के अनुभवों को विस्तार से याद करते हुए एक-एक वाक्य पर जोर देते हुए धीरे-धीरे बात की। उन्होंने मशहूत गीतकार की जमकर तारीफ की।
लता ने कहा, ‘गुलजार साहब बहुत अच्छा लिखते हैं और पूरा देश इससे वाकिफ है… लेकिन जब मैं विशाल से मिली, तब मैं थोड़ा डरी हुई थी, क्योंकि मैं उनके संगीत के बारे में नहीं जानती थी, लेकिन मुझे उनका पहला गाना बहुत पसंद आया।’