उत्तर प्रदेश चुनाव: बदले हुए ‘मुस्लिमों’ के इस गांव में 11 हजार वोट, मगर 8वीं तक का स्कूल नहीं 


जितेंद्र भारद्वाज, थाना भवन से 
Published by: Amit Mandal
Updated Tue, 08 Feb 2022 11:27 PM IST

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में गन्ना मंत्री रहे सुरेश राणा के विधानसभा क्षेत्र ‘थाना भवन’ के अंतर्गत आने वाले गांव ‘भैसानी इस्लामपुर’ की कहानी खुद ब खुद बहुत कुछ बयां कर देती है। ये गांव सामान्य मुस्लिमों वाला नहीं है। यहां बदले हुए मुस्लिम भी हैं। जो पहले राजपूत थे, मगर बाद में वे किन्हीं कारणों से मुस्लिम बन गए। हालांकि इसके बावजूद कई लोगों ने अपने गोत्र में बदलाव नहीं किया। राणा ‘सरनेम’ लगा लेते हैं। वे दाढ़ी भी नहीं रखते। 

बातचीत में जब तक वे खुद न कहें कि हम मुस्लिम हैं, तब तक पता ही नहीं चलता। राहुल राणा, जिन्होंने बहुत स्पष्ट तरीके से बता दिया कि हम बदले हुए मुस्लिम हैं। आगे कहते हैं कि इसके बावजूद गांव में कभी कोई तनाव नहीं रहा। यहां जो कुछ झेलना है, उसमें सब भागीदार हैं। दंगा कहीं भी होता रहे, मगर यहां सब ठीक रहता है। करीब 11 हजार वोट हैं। बतौर राणा, इनमें से लगभग एक हजार वोट भाजपा प्रत्याशी को मिलने का दावा किया जाता है। सुविधाएं कुछ नहीं हैं। विधानसभा क्षेत्र के सबसे बड़े गांव में आठवीं कक्षा से ऊपर स्कूल नहीं है। बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं है। फौज पुलिस की भर्ती आए लंबा वक्त गुजर चुका है। युवाओं में निराशा पनपने लगी है। 

गन्ना पेमेंट की बात करें तो पाकिस्तान का जिक्र करने लगते हैं… 
राहुल राणा बताते हैं, मंत्री जी ने कुछ नहीं किया। जब कभी किसी ने गन्ने के भुगतान को लेकर सुरेश राणा से गुहार लगाई तो उन्होंने हिंदू मुस्लिम या पाकिस्तान जैसे विषय छेड़ दिए। कहने लगे कि हम तो मंदिर बना रहे हैं। ये क्या छोटा काम है। इसके बाद गांव वालों ने उनके पास जाना ही छोड़ दिया। गन्ने की पेमेंट में देरी होने से परिवार के सारे कामकाज बिगड़ने लगते हैं। बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। मौजूदा सरकार में कालेज तक नहीं बन सका। युवाओं को इधर उधर भटकना पड़ता है। भर्ती के इंतजार में युवा ओवरएज हो रहे हैं। इंटर कालेज के लिए ग्रामीणों से प्रयास किया, मगर वह सरकारी पक्ष की ओर से अधर में लटका दिया गया। अब्बास कहते हैं कि ये देख लो जी, यही तो कॉलेज है। दीवार खड़ी हैं, लैंटर नहीं है। सरकार चाहती तो ये कॉलेज बन जाता, लेकिन नहीं बन सका। सड़कें टूटी पड़ी हैं। 

सरकारी सांड छोड़ दिए, इन्होंने खेती बर्बाद कर दी 
खेतों के बीच खड़े नरेश और जयप्रकाश कहते हैं, हमें तो ऐसा लगा रहा है कि अब खेती खत्म होने वाली है। सरकार का इरादा ठीक नहीं है। गन्ने की पेमेंट तो समय पर मिलेगी नहीं। कभी छह माह तो कहीं एक साल में पेमेंट मिलती है। किसान नुकसान में जाता जाएगा। सरकार जैसे अपने कर्मियों का वेतन बढ़ाती है, उन्हें भत्ता देती है, ऐसे ही किसान को दे। ये सब तो किया नहीं, उल्टा सरकारी सांड हमारे खेतों में छोड़ दिए। वे सारी फसल को बर्बाद कर देते हैं। चुनाव में हिंदू मुस्लिम को लेकर उन्होंने कहा, मुसलमान को भी मजदूरी करके खाना है। उसे भी हमारे साथ रहना है। हम भी मजदूर हैं, हमें भी तो उनके साथ रहना है। ये तो नेताओं का काम है लड़ाई करवाना। हमारा काम तो मिल जुलकर ही चलेगा। 

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में गन्ना मंत्री रहे सुरेश राणा के विधानसभा क्षेत्र ‘थाना भवन’ के अंतर्गत आने वाले गांव ‘भैसानी इस्लामपुर’ की कहानी खुद ब खुद बहुत कुछ बयां कर देती है। ये गांव सामान्य मुस्लिमों वाला नहीं है। यहां बदले हुए मुस्लिम भी हैं। जो पहले राजपूत थे, मगर बाद में वे किन्हीं कारणों से मुस्लिम बन गए। हालांकि इसके बावजूद कई लोगों ने अपने गोत्र में बदलाव नहीं किया। राणा ‘सरनेम’ लगा लेते हैं। वे दाढ़ी भी नहीं रखते। 

बातचीत में जब तक वे खुद न कहें कि हम मुस्लिम हैं, तब तक पता ही नहीं चलता। राहुल राणा, जिन्होंने बहुत स्पष्ट तरीके से बता दिया कि हम बदले हुए मुस्लिम हैं। आगे कहते हैं कि इसके बावजूद गांव में कभी कोई तनाव नहीं रहा। यहां जो कुछ झेलना है, उसमें सब भागीदार हैं। दंगा कहीं भी होता रहे, मगर यहां सब ठीक रहता है। करीब 11 हजार वोट हैं। बतौर राणा, इनमें से लगभग एक हजार वोट भाजपा प्रत्याशी को मिलने का दावा किया जाता है। सुविधाएं कुछ नहीं हैं। विधानसभा क्षेत्र के सबसे बड़े गांव में आठवीं कक्षा से ऊपर स्कूल नहीं है। बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं है। फौज पुलिस की भर्ती आए लंबा वक्त गुजर चुका है। युवाओं में निराशा पनपने लगी है। 

गन्ना पेमेंट की बात करें तो पाकिस्तान का जिक्र करने लगते हैं… 

राहुल राणा बताते हैं, मंत्री जी ने कुछ नहीं किया। जब कभी किसी ने गन्ने के भुगतान को लेकर सुरेश राणा से गुहार लगाई तो उन्होंने हिंदू मुस्लिम या पाकिस्तान जैसे विषय छेड़ दिए। कहने लगे कि हम तो मंदिर बना रहे हैं। ये क्या छोटा काम है। इसके बाद गांव वालों ने उनके पास जाना ही छोड़ दिया। गन्ने की पेमेंट में देरी होने से परिवार के सारे कामकाज बिगड़ने लगते हैं। बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। मौजूदा सरकार में कालेज तक नहीं बन सका। युवाओं को इधर उधर भटकना पड़ता है। भर्ती के इंतजार में युवा ओवरएज हो रहे हैं। इंटर कालेज के लिए ग्रामीणों से प्रयास किया, मगर वह सरकारी पक्ष की ओर से अधर में लटका दिया गया। अब्बास कहते हैं कि ये देख लो जी, यही तो कॉलेज है। दीवार खड़ी हैं, लैंटर नहीं है। सरकार चाहती तो ये कॉलेज बन जाता, लेकिन नहीं बन सका। सड़कें टूटी पड़ी हैं। 

सरकारी सांड छोड़ दिए, इन्होंने खेती बर्बाद कर दी 

खेतों के बीच खड़े नरेश और जयप्रकाश कहते हैं, हमें तो ऐसा लगा रहा है कि अब खेती खत्म होने वाली है। सरकार का इरादा ठीक नहीं है। गन्ने की पेमेंट तो समय पर मिलेगी नहीं। कभी छह माह तो कहीं एक साल में पेमेंट मिलती है। किसान नुकसान में जाता जाएगा। सरकार जैसे अपने कर्मियों का वेतन बढ़ाती है, उन्हें भत्ता देती है, ऐसे ही किसान को दे। ये सब तो किया नहीं, उल्टा सरकारी सांड हमारे खेतों में छोड़ दिए। वे सारी फसल को बर्बाद कर देते हैं। चुनाव में हिंदू मुस्लिम को लेकर उन्होंने कहा, मुसलमान को भी मजदूरी करके खाना है। उसे भी हमारे साथ रहना है। हम भी मजदूर हैं, हमें भी तो उनके साथ रहना है। ये तो नेताओं का काम है लड़ाई करवाना। हमारा काम तो मिल जुलकर ही चलेगा। 



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