2008 Ahmedabad Blast: 70 मिनट, 21 धमाके, 56 मौतें… अधिकारी ने बताया फिर कैसे सुलझा अहमदाबाद ब्लास्ट केस


अहमदाबाद. गुजरात (Gujarat) के अहमदाबाद में साल 2008 के सिलसिलेवार धमाकों में जान गंवाने वाले 56 लोगों और 200 से ज्यादा घायलों को शुक्रवार को न्याय मिल गया. विशेष अदालत ने 38 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई है. वहीं, 11 को उम्रकैद मिली है. 70 मिनट में पूरे देश को हिला देने वाली इस घटना को 14 साल बीत चुके हैं, लेकिन उस दौरान मामले की जांच में जुटी पुलिस इसे बड़ी जांच चुनौतियों में से एक मानती है.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, क्राइम ब्रांच में सहायक पुलिस आयुक्त और मामले की जांच में शामिल रहे जीतेंद्र यादव तत्कालीन उपायुक्त अभय चूडासमा का जिक्र करते हुए बताते हैं, ‘हम धमाके के बाद 5 दिनों तक सो नहीं पाए. वह बहुत ही चुनौती भरा समय था. लोग हमारे सामने मर रहे थे और कोई लीड नहीं थी. पांचवे दिन (अभय) चूडासमा को बड़ी जानकारी मिली कि आतंकियों का बेस बरूच के पास था.’ पुलिस की टीम भरूच पहुंची. हालांकि, इस दौरान हमलावर भाग गए थे, लेकिन टीम को इलाके से कुछ मोबाइल नंबर मिले, जो लीड हासिल करने में सहायक साबित हुए.

यादव ने कहा, ‘धमाके हमारे देश के खिलाफ साजिश का हिस्सा थे. जयपुर, दिल्ली में ब्लास्ट हुए और इसी तरह की कोशिशें सूरत में भी हुईं. सिमी के सदस्य इंडियन मुजाहिदीन के रूप में एक बार फिर तैयार होने की कोशिश कर रहे थे. कोई भी अपराधी फरार नहीं हुआ है. आज देश में IM खत्म हो चुकी है.’ उस दौरान अहमदाबाद पुलिस ने मुंबई, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के समकक्षों के साथ संपर्क किया. खुफिया जानकारी साझा करने के बाद अहमदाबाद, वडोजरा और जयपुर में हमले को अंजाम देने के लिए आयोजित हुई बैठकों की जानकारी मिली.

उन्होंने कहा, ‘हमें पता चला कि अहमदाबाद में ब्लास्ट से पहले दो ट्रेनिंग कैंप आयोजित किए गए थे. ये कैंप हलोल के पास जंगली इलाके में आयोजित हुए थे. हमें पता चला कि इस तरह के ट्रेनिंग सेशन दक्षिण केरल और कर्नाटक में भी हुए थे और हमने वहां लोगों से पूछताछ शुरू की.’ मामले में मौत की सजा पाने वाले तब सिमी के प्रमुख रहे सफदर नागौरी और कमरुद्दीन नागौरी का नाम भी शामिल है. कहा जाता है कि इन दोनों ने केरल के जंगल में करीब 50 लोगों को धमाके की ट्रेनिंग दिलाई थी.

यह भी पढ़ें: Inside Story: अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के 14 साल, जब मोदी-शाह की सक्रियता से ऐसे सुलझा मामला

यादव ने कहा, ‘अब्दुल और यासीन भटकल मामले के मुख्य साजिशकर्ता थे, वे पुणे में थे, जहां से हमने उन्हें पकड़ा था. वे पाकिस्तान में ISI से निर्देश हासिल कर रहे थे. बाटला हाउस एनकाउंटर अहमदाबाद धमाकों की जांच का नतीजा था.’ जांच के दौरान फील्ड ऑपरेशन और टेक्निकल टीम की अगुवाई करने वाले यादव बताते हैं कि धमाके के 15 दिनों के बाद पहली गिरफ्तारी हुई और 15 नवंबर 2008 तक गुजरात पुलिस ने लगभग सभी दोषियों को पकड़ लिया था.

भाषा के अनुसार, यह पहली बार है, जब इतने दोषियों को किसी अदालत ने एक बार में मौत की सजा सुनाई है. जनवरी 1998 में तमिलनाडु की एक टाडा अदालत ने 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों के करीब 14 साल बाद मामले में सजा सुनायी है. अदालत ने आठ फरवरी को मामले में 49 लोगों को दोषी ठहराया था और 28 अन्य को बरी कर दिया था. अदालत ने 48 दोषियों में से प्रत्येक पर 2.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और एक अन्य पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. घायलों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये तथा मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया.

Tags: Blast



Source link

Enable Notifications OK No thanks