‘पेंट-वार्निश कारखानों में जा रहा 23 प्रतिशत खाद्य तेल, इसे रोकना जरूरी’ पढ़िए क्या है ये मामला


इंदौर . भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि देश का 23 प्रतिशत खाद्य तेल पेंट और वार्निश सरीखे उत्पादों के कारखानों में जा रहा है. खाने के तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के मद्देनजर इस प्रवृत्ति पर रोक जरूरी है. आईसीएआर अधिकारी ने यह बात ऐसे वक्त कही है, जब देश में खाद्य तेलों की महंगाई आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ रही है.

आईसीएआर के सहायक महानिदेशक (तिलहन और दलहन) डॉ. संजीव गुप्ता ने इंदौर में कहा,‘‘यह एक महत्वपूर्ण विषय है कि देश का 23 प्रतिशत खाद्य तेल पेंट, वार्निश और अन्य उत्पाद बनाने वाले कारखानों में चला जाता है. खाद्य तेल के इस औद्योगिक इस्तेमाल को रोकना बेहद जरूरी है.’’

तेल के आयात पर 1.17 लाख करोड़ रुपये खर्च
गुप्ता ने बताया कि भारत फिलहाल अपनी जरूरत का करीब 60 फीसद खाद्य तेल आयात कर रहा है, जिस पर देश को 1.17 लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि सरकार इस आयात को घटाते हुए देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में लगातार कदम उठा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईसीएआर को तिलहन उत्पादन बढ़ाने की कार्ययोजना प्रस्तुत करने को कहा है.

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युद्ध के चलते सूरजमुखी तेल की आपूर्ति बाधित
गुप्ता ने बताया ‘‘देश को खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत पूरी करने के लिए बाहरी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दोनों देशों से सूरजमुखी तेल की आपूर्ति बाधित हुई है.’’ आईसीएआर अधिकारी ने बताया कि आमतौर पर भारत अपनी जरूरत का कुल 85 प्रतिशत सूरजमुखी तेल रूस और यूक्रेन से आयात करता है. गुप्ता ने बताया, ‘‘हम देश में सूरजमुखी का उत्पादन बढ़ाने की योजना पर काम कर रहे हैं.’’

इंडोनेशिया द्वारा पाम (ताड़) तेल के निर्यात पर पिछले महीने रोक लगाए जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार ने देश में ताड़ के पेड़ों का रकबा चार लाख हेक्टेयर से 10 गुना बढ़ाकर 40 लाख हेक्टेयर करने का खाका तैयार किया है.

खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत तीन गुना बढ़ी
उन्होंने बताया कि देश ने 1990 के दशक के दौरान ‘‘पीली क्रांति’’ के जरिये खुद को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का बीड़ा उठाया था, लेकिन तब के मुकाबले आज देश में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत तीन गुना बढ़ चुकी है और आबादी में भी इजाफा हुआ है.

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गुप्ता, अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना की 52वीं वार्षिक समूह बैठक में भाग लेने इंदौर आए थे. उन्होंने बताया ‘‘ देश में फिलहाल 120 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती होती है और उन्नत किस्मों के जरिये इस तिलहन फसल की प्रति हेक्टेयर पैदावार बढ़ाने के प्रयास जारी हैं. ’’

सोयाबीन की नयी किस्में विकसित करनी चाहिए
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश, देश में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक है जहां इस तिलहन फसल का रकबा और पैदावार स्थिर होने से खासकर प्रसंस्करण उद्योग की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. गुप्ता ने जोर देकर कहा, ‘‘वैज्ञानिकों को खासकर कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा के साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों के मौसमी हालात के मुताबिक सोयाबीन की नयी किस्में विकसित करनी चाहिए ताकि देश में इस तिलहन फसल की खेती का विस्तार हो सके.’

आईसीएआर अधिकारी ने एक सवाल पर कहा कि आनुवांशिक रूप से संवर्धित (जीएम) सोयाबीन की खेती को देश में मानवीय उपभोग के लिए मंजूरी दिए जाने के बारे में सर्वसम्मति से ही कोई फैसला किया जा सकता है.

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