इटावा. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में प्रचार के दौरान राजनेता एक-दूसरे के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो किसी मायने में जहर से कम नहीं लग रही है. यही वजह है कि इस भाषा ने समाज में ना केवल वैमनस्य पैदा कर दिया है बल्कि सांप्रदायिक सदभाव पर भी सवाल खडे़ कर दिये हैं.
आज के दौर से ठीक विपरीत अगर हम पुराने चुनाव को याद करें तो ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलेंगे, जिसमें कट्टर विरोधियो ने भी एक-दूसरे से गले मिलने में ही अपनी भलाई समझी है, क्योंकि इससे समाज को फायदा होता है.
मुलायम सिंह यादव के गुरु की जीप में विरोधी ने भरवाया था पेट्रोल
दरअसल बात करते हैं एक पुराने एक व दिलचस्प मामले की, जिसमें चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के गुरु नत्थू सिंह यादव की जीप में पेट्रोल उनके प्रतिद्वंदी उम्मीदवार ने भरवाया था. राजनेताओं के आपसी सौहार्द का यह वाकया सन 1969 के विधानसभा चुनाव का है. उस समय जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से संसोपा के मुलायम सिंह यादव के सामने कांग्रेस के विशंभर सिंह यादव प्रत्याशी थे. करहल विधानसभा क्षेत्र से मुलायम सिंह यादव के गुरु नत्थू सिंह यादव (मेंबर साहब) प्रत्याशी थे. बता दें कि जसवंतनगर और करहल विधानसभा क्षेत्र की सीमा एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. कुर्रा की ओर से मेंबर साहब जीप से सीमावर्ती गांवों में जनसंपर्क कर रहे थे, दूसरी ओर विशंभर सिंह और सुरेंद्र बहादुर सिंह जीप से जनसंपर्क कर रहे थे. इस बीच रास्ते में मेंबर साहब की जीप खड़ी देखकर विशंभर सिंह ने अपनी जीप रुकवाकर उनकी कुशल क्षेम पूछकर रास्ते में रुकने की वजह जानी. वहीं, मेंबर साहब ने उनको बताया कि जीप का पेट्रोल खत्म हो गया है, इस पर विशंभर सिंह ने अपनी जीप से पेट्रोल निकलवा करके उनकी जीप में भरवाया.
अब तो नेता अपने स्वार्थ के लिए टुकडे़-टुकड़े करने पर आमादा हो गए
बहरहाल, आजादी के बाद प्रथम चुनाव से अभी तक के हर चुनाव में भाग ले रहे 80 वर्ष की आयु पार कर चुके सेवानिवृत्त शिक्षक रघुवीर सिंह भदौरिया अतीत को ताजा करते हुए बताते हैं कि उस समय के नेता एक-दूसरे का सम्मान करने में कोई कमी नहीं आने देते थे. सामना होने पर क्षेत्र की जानकारी साझा करते थे. हारने के बावजूद जीतने वाले को हार्दिक बधाई देते थे. इसके अलावा अन्य सामाजिक और निजी समारोह में धुर विरोधी नेता एक-दूसरे के प्रति आपसी सौहार्द में कमी नहीं आने देते थे. हालांकि वर्तमान दौर को देखकर काफी दुख होता है. अब तो नेता अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए समाज के टुकडे़-टुकड़े करने पर आमादा हो गए हैं.
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