कनॉट प्लेस की घटना : फर्जी मुठभेड़ में घायल कारोबारी को 25 साल बाद 15 लाख मुआवजा, हाईकोर्ट का केंद्र सरकार को निर्देश


सार

साल 1997 में हुई इस फर्जी मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस ने हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की हत्या कर दी थी। कारोबारियों के साथी तरुण प्रीत घायल हुए थे। अदालत ने कहा, घटना के समय तरुण की उम्र करीब 20 साल थी। पुलिस की लापरवाही से याची ने पूरी जवानी खो दी। उनके मानसिक आघात का अंदाजा आसानी से नहीं लगा सकते। आघात केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता, पत्नी और अब उसके बच्चे समेत उन प्रियजनों के लिए भी है, जिन्होंने याची को शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक सहारा दिया है।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने कनॉट प्लेस में 25 साल पहले हुई फर्जी मुठभेड़ में घायल कारोबारी तरुण प्रीत के परिवार को 15 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने केंद्र सरकार को इस अवधि के लिए आठ फीसदी ब्याज के भुगतान को भी कहा है। ब्याज के साथ यह राशि लगभग 45 लाख होने की संभावना है।

साल 1997 में हुई इस फर्जी मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस ने हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की हत्या कर दी थी। कारोबारियों के साथी तरुण प्रीत घायल हुए थे। अदालत ने कहा, घटना के समय तरुण की उम्र करीब 20 साल थी। पुलिस की लापरवाही से याची ने पूरी जवानी खो दी। उनके मानसिक आघात का अंदाजा आसानी से नहीं लगा सकते। आघात केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता, पत्नी और अब उसके बच्चे समेत उन प्रियजनों के लिए भी है, जिन्होंने याची को शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक सहारा दिया है।

आठ सप्ताह में करें भुगतान
जगजीत व प्रदीप के परिवारों को 2011 में 15-15 लाख और तरुण को 1999 में एक लाख का तदर्थ मुआवजा मिला था। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने निर्देश दिए कि आठ सप्ताह के भीतर मुआवजे का भुगतान किया जाए।

दो कारोबारियों की पुलिस ने की थी हत्या
31 मार्च 1997 को तत्कालीन एसीपी सत्यवीर सिंह राठी के नेतृत्व में पुलिस ने कार सवार दो कारोबारियों का एनकाउंटर कर दिया था। पुलिस ने दावा किया, यूपी के गैंगस्टर यासीन के धोखे में कारोबारियों को गलती से मारा गया। कार में से गोली चलाई गई थी। सीबीआई जांच में साबित हो गया कि कार से कोई गोली नहीं चली थी। पुलिस ने ही कार में पिस्टल रख दी थी। यह भी साबित हो गया कि उक्त पिस्टल से गोली ही नहीं चली थी। इन सभी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद हुई थी।

कनॉट प्लेस फर्जी मुठभेड़ मामले में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता के शरीर में अभी भी छर्रे हैं, जो अपने आप में दर्दनाक है, क्योंकि इसके दुष्प्रभाव अज्ञात हो सकते हैं।

अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता को 1997 में ही मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए था।  उनके दो बच्चे हैं, जिनके लिए उन्हें शिक्षा और शादी के मामले पूरा करने की जरूरत है। तथ्य यह है कि अन्य दो दोस्तों का निधन हो गया, लेकिन याचिकाकर्ता केवल घायल हो गया, इसके परिणामस्वरूप अलग-अलग मानकों को लागू नहीं किया जा सकता है, यहां तक  कि याचिकाकर्ता के मामले में भी जो जीवित है, उसने अपने जीवन का प्रमुख हिस्सा खो दिया है।

वह एक कपड़े की दुकान में काम करता है, उसके दो बच्चे और एक परिवार है, जो समय बीत चुका है, उसकी भरपाई भी नहीं की जा सकती है। जब सरकारी तंत्र के कारण चोट लगी है और वह भी जहां पुलिस अधिकारियों को अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है तो उस पर लापरवाही और निष्क्रियता के सामान्य मामलों की तुलना में उच्च स्तर पर विचार करने की आवश्यकता है।  

एक करोड़ की थी मांग
अदालत ने कहा, तरुण प्रीत विकलांगता के कारण पिछले 25 वर्षों से सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं है। 20 साल के एक युवा के लिए किसी भी तरह की अक्षमता के कारण पीड़ित होने को उचित या तुच्छ नहीं ठहराया जा सकता है। अदालत ने यह निर्णय तरुण प्रीत सिंह की मुआवजा याचिका पर दिया है। याची ने केंद्र सरकार से एक करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा था। यह याचिका दिसंबर 1998 से लंबित थी।

इन पुलिसकर्मियों को हुई थी उम्रकैद की सजा
इस मामले में एसीपी सत्यवीर सिंह राठी, इंस्पेक्टर अनिल कुमार, सब इंस्पेक्टर अशोक राणा, हवलदार शिव कुमार, तेजपाल और महावीर सिंह, सिपाही सुमेर सिंह, सुभाष चंद्र, सुनील कुमार और कोठारी राम को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, यह दोषी समय-समय पर पेरोल और फरलो लेकर जेल से बाहर आते रहे थे। इन पूर्व पुलिसकर्मियों ने 16 साल तिहाड़ जेल में बिताए हैं।

इन सभी के बेहतर व्यवहार के कारण इन्हें तिहाड़ की सेमी ओपन और ओपन जेल में शिफ्ट किया गया था। मार्च 2020 में एसआरबी ने इन सभी पुलिसकर्मियों के व्यवहार को देखते हुए रिहा करने की सिफारिश की थी। इसी सिफारिश के आधार पर इन पुलिस कर्मियों को जेल से रिहा किया गया।

विस्तार

दिल्ली हाईकोर्ट ने कनॉट प्लेस में 25 साल पहले हुई फर्जी मुठभेड़ में घायल कारोबारी तरुण प्रीत के परिवार को 15 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने केंद्र सरकार को इस अवधि के लिए आठ फीसदी ब्याज के भुगतान को भी कहा है। ब्याज के साथ यह राशि लगभग 45 लाख होने की संभावना है।

साल 1997 में हुई इस फर्जी मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस ने हरियाणा के कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की हत्या कर दी थी। कारोबारियों के साथी तरुण प्रीत घायल हुए थे। अदालत ने कहा, घटना के समय तरुण की उम्र करीब 20 साल थी। पुलिस की लापरवाही से याची ने पूरी जवानी खो दी। उनके मानसिक आघात का अंदाजा आसानी से नहीं लगा सकते। आघात केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता, पत्नी और अब उसके बच्चे समेत उन प्रियजनों के लिए भी है, जिन्होंने याची को शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक सहारा दिया है।

आठ सप्ताह में करें भुगतान

जगजीत व प्रदीप के परिवारों को 2011 में 15-15 लाख और तरुण को 1999 में एक लाख का तदर्थ मुआवजा मिला था। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने निर्देश दिए कि आठ सप्ताह के भीतर मुआवजे का भुगतान किया जाए।

दो कारोबारियों की पुलिस ने की थी हत्या

31 मार्च 1997 को तत्कालीन एसीपी सत्यवीर सिंह राठी के नेतृत्व में पुलिस ने कार सवार दो कारोबारियों का एनकाउंटर कर दिया था। पुलिस ने दावा किया, यूपी के गैंगस्टर यासीन के धोखे में कारोबारियों को गलती से मारा गया। कार में से गोली चलाई गई थी। सीबीआई जांच में साबित हो गया कि कार से कोई गोली नहीं चली थी। पुलिस ने ही कार में पिस्टल रख दी थी। यह भी साबित हो गया कि उक्त पिस्टल से गोली ही नहीं चली थी। इन सभी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद हुई थी।



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