Agnipath Scheme: यहां सेना से भी कड़ी ड्यूटी दे रहे अर्धसैनिक बल, अग्निवीरों की सेना में छह माह की ट्रेनिंग से नहीं चलेगा काम!


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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा है कि उनका मंत्रालय ऐसे मैकेनिज्म पर काम कर रहा है कि चार साल के बाद जब ‘अग्निवीर’ सेना से बाहर आएंगे, तो उन्हें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी। सीएपीएफ के पूर्व एडीजी एसएस संधू, सवाल के लहजे में कहते हैं, मौजूदा परिस्थितियों में सीएपीएफ में कैसे फिट बैठेंगे ‘अग्निवीर’। ये तो सभी जानते हैं कि कई मोर्चों पर सीएपीएफ के जवान, आर्मी से भी मुश्किल ड्यूटी कर रहे हैं। वहां, सेना की छह माह की ट्रेनिंग वाले ‘अग्निवीर’ कामयाब नहीं हो सकेंगे। अगर गृह मंत्रालय यह सोच रहा है कि सीएपीएफ में आने वाले अग्निवीरों को दोबारा से ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ेगी तो यह बड़ी गलतफहमी है।

सीएपीएफ के सभी थिएटर में नहीं हो सकते कामयाब

सीआरपीएफ में एडीजी पद से रिटायर हुए एसएस संधू, जिन्होंने नक्सल प्रभावित इलाकों के अलावा कश्मीर में भी लंबे समय तक सेवाएं दी हैं, वे कहते हैं कि कई जगहों पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की ड्यूटी आसान नहीं है। यहां पर हम आर्मी व सीएपीएफ की तुलना नहीं कर रहे हैं। जो हकीकत है, वही बता रहे हैं। सेना में भर्ती होने के बाद छह माह की ट्रेनिंग लेने वाले ‘अग्निवीर’ सीएपीएफ के सभी थियेटर में कामयाब नहीं हो सकते। खासतौर पर, आतंकवाद एवं नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनाती के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ को ‘कोबरा’ (कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन) का गठन करना पड़ा है। इस इकाई को जंगल वॉरफेयर एवं गुरिल्ला लड़ाई में खासी महारत हासिल है। अगर सेना की छह माह की ट्रेनिंग वाले जवानों को इन इलाकों में तैनात करेंगे तो वह एक जोखिम भरा कदम हो सकता है। सीएपीएफ में आने वाले अग्निवीरों को अलग से ट्रेनिंग देनी होगी। एक्सग्रेसिया केस में क्या रहेगा, अभी सरकार ने इस बाबत कुछ नहीं कहा है। सीएपीएफ में पेंशन भी नहीं मिलती। सेना में चार साल की नौकरी कर चुके अग्निवीरों की यह अवधि, सीएपीएफ की नौकरी में जुड़ेगी या नहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय, दोनों को इस पर गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो जवानों को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। उसे दोबारा से करियर शुरू करना पड़ेगा। एसएस संधू ने कहा, आखिर सीएपीएफ को कम क्यों आंका जा रहा है।

सेना और सीएपीएफ की ट्रेनिंग में है अंतर

बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद कहते हैं, सरकार कम से कम ट्रेनिंग का पैसा तो नहीं बचा पाएगी। आर्मी की संख्या 11 लाख है, सीएपीएफ की भी 11 लाख है। दोनों की ट्रेनिंग में बहुत फर्क होता है। आर्मी में लड़ाई की ट्रेनिंग होती है। वहां ‘एक गोली और एक दुश्मन’ का चुनाव, इस अवधारणा पर काम होता है। आर्मी व सीएपीएफ जवानों का माइंडसेट भी बिल्कुल अलग होता है। सीएपीएफ में तो कई जगह पर पब्लिक डीलिंग की ड्यूटी भी रहती है। कानून व्यवस्था की ड्यूटी में पुलिस के साथ आपको काम करना पड़ता है। आतंरिक सुरक्षा की ड्यूटी के अपने आयाम हैं। सीएपीएफ में तो रोजाना वही ड्यूटी देनी पड़ती है। कुछ हथियारों की ट्रेनिंग का समय अवश्य बच सकता है, लेकिन पूरी ट्रेनिंग छोड़ देंगे, ऐसा तो बिल्कुल नहीं है। आतंकी के लिए गनर की ट्रेनिंग अलग है तो बॉर्डर पर अलग है। अग्निवीरों को आर्टिलरी, आरओपी व आईईडी की ट्रेनिंग तो देनी होगी।

सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, आर्मी वालों को सीएपीएफ में ड्यूटी देना शुरु करना, अच्छी पहल है। वहां भर्ती बंद कर देनी चाहिए। यह नियम बनाया जाए कि अर्धसैनिक बलों में केवल आर्मी वालों को ही लेंगे। इससे सीएपीएफ में ट्रेंड लोग मिल जाएंगे। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत भर्ती हुए अफसर भी आ सकते हैं। ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) ने बताया, जब पी. चिदंबरम देश के गृह मंत्री थे, तब आर्मी से सेवानिवृत्त होने वाले जवानों को सीएपीएफ में भर्ती करने का प्रपोजल बना था। किन्हीं कारणों से वह प्रपोजल लागू नहीं हो सका। उस वक्त इस प्रपोजल का विरोध हुआ था।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा है कि उनका मंत्रालय ऐसे मैकेनिज्म पर काम कर रहा है कि चार साल के बाद जब ‘अग्निवीर’ सेना से बाहर आएंगे, तो उन्हें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी। सीएपीएफ के पूर्व एडीजी एसएस संधू, सवाल के लहजे में कहते हैं, मौजूदा परिस्थितियों में सीएपीएफ में कैसे फिट बैठेंगे ‘अग्निवीर’। ये तो सभी जानते हैं कि कई मोर्चों पर सीएपीएफ के जवान, आर्मी से भी मुश्किल ड्यूटी कर रहे हैं। वहां, सेना की छह माह की ट्रेनिंग वाले ‘अग्निवीर’ कामयाब नहीं हो सकेंगे। अगर गृह मंत्रालय यह सोच रहा है कि सीएपीएफ में आने वाले अग्निवीरों को दोबारा से ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ेगी तो यह बड़ी गलतफहमी है।

सीएपीएफ के सभी थिएटर में नहीं हो सकते कामयाब

सीआरपीएफ में एडीजी पद से रिटायर हुए एसएस संधू, जिन्होंने नक्सल प्रभावित इलाकों के अलावा कश्मीर में भी लंबे समय तक सेवाएं दी हैं, वे कहते हैं कि कई जगहों पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की ड्यूटी आसान नहीं है। यहां पर हम आर्मी व सीएपीएफ की तुलना नहीं कर रहे हैं। जो हकीकत है, वही बता रहे हैं। सेना में भर्ती होने के बाद छह माह की ट्रेनिंग लेने वाले ‘अग्निवीर’ सीएपीएफ के सभी थियेटर में कामयाब नहीं हो सकते। खासतौर पर, आतंकवाद एवं नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनाती के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ को ‘कोबरा’ (कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन) का गठन करना पड़ा है। इस इकाई को जंगल वॉरफेयर एवं गुरिल्ला लड़ाई में खासी महारत हासिल है। अगर सेना की छह माह की ट्रेनिंग वाले जवानों को इन इलाकों में तैनात करेंगे तो वह एक जोखिम भरा कदम हो सकता है। सीएपीएफ में आने वाले अग्निवीरों को अलग से ट्रेनिंग देनी होगी। एक्सग्रेसिया केस में क्या रहेगा, अभी सरकार ने इस बाबत कुछ नहीं कहा है। सीएपीएफ में पेंशन भी नहीं मिलती। सेना में चार साल की नौकरी कर चुके अग्निवीरों की यह अवधि, सीएपीएफ की नौकरी में जुड़ेगी या नहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय, दोनों को इस पर गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो जवानों को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। उसे दोबारा से करियर शुरू करना पड़ेगा। एसएस संधू ने कहा, आखिर सीएपीएफ को कम क्यों आंका जा रहा है।

सेना और सीएपीएफ की ट्रेनिंग में है अंतर

बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद कहते हैं, सरकार कम से कम ट्रेनिंग का पैसा तो नहीं बचा पाएगी। आर्मी की संख्या 11 लाख है, सीएपीएफ की भी 11 लाख है। दोनों की ट्रेनिंग में बहुत फर्क होता है। आर्मी में लड़ाई की ट्रेनिंग होती है। वहां ‘एक गोली और एक दुश्मन’ का चुनाव, इस अवधारणा पर काम होता है। आर्मी व सीएपीएफ जवानों का माइंडसेट भी बिल्कुल अलग होता है। सीएपीएफ में तो कई जगह पर पब्लिक डीलिंग की ड्यूटी भी रहती है। कानून व्यवस्था की ड्यूटी में पुलिस के साथ आपको काम करना पड़ता है। आतंरिक सुरक्षा की ड्यूटी के अपने आयाम हैं। सीएपीएफ में तो रोजाना वही ड्यूटी देनी पड़ती है। कुछ हथियारों की ट्रेनिंग का समय अवश्य बच सकता है, लेकिन पूरी ट्रेनिंग छोड़ देंगे, ऐसा तो बिल्कुल नहीं है। आतंकी के लिए गनर की ट्रेनिंग अलग है तो बॉर्डर पर अलग है। अग्निवीरों को आर्टिलरी, आरओपी व आईईडी की ट्रेनिंग तो देनी होगी।

सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, आर्मी वालों को सीएपीएफ में ड्यूटी देना शुरु करना, अच्छी पहल है। वहां भर्ती बंद कर देनी चाहिए। यह नियम बनाया जाए कि अर्धसैनिक बलों में केवल आर्मी वालों को ही लेंगे। इससे सीएपीएफ में ट्रेंड लोग मिल जाएंगे। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत भर्ती हुए अफसर भी आ सकते हैं। ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) ने बताया, जब पी. चिदंबरम देश के गृह मंत्री थे, तब आर्मी से सेवानिवृत्त होने वाले जवानों को सीएपीएफ में भर्ती करने का प्रपोजल बना था। किन्हीं कारणों से वह प्रपोजल लागू नहीं हो सका। उस वक्त इस प्रपोजल का विरोध हुआ था।



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