दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क: वैवाहिक दुष्कर्म को तब तक माफ किया जाएगा जब तक कि यह एक स्पष्ट अपराध नहीं बन जाता


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Vikas Kumar
Updated Tue, 01 Feb 2022 01:52 AM IST

सार

वैवाहिक दुष्कर्म को तब तक माफ किया जाएगा जब तक कि यह एक स्पष्ट अपराध नहीं बन जाता। शादी में सहमति को नजरअंदाज करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है।

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वैवाहिक दुष्कर्म को तब तक माफ किया जाएगा जब तक कि यह एक स्पष्ट अपराध नहीं बन जाता। शादी में सहमति को नजरअंदाज करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है। दो गैर सरकारी संगठनों ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया। उन्होंने कहा वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद संविधान का उल्लंघन करता है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की संभोग के लिए एक खुशी से ‘हां’ कहने की क्षमता को छीन लेता है।

उन्होंने कहा कि यह आधार कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण विवाह की संस्था को नष्ट कर देगा, अस्वीकार्य है क्योंकि विवाह संस्थागत नहीं है बल्कि व्यक्तिगत है और कुछ भी विवाह की ‘संस्था’ को नष्ट नहीं कर सकता है सिवाय एक कानून के जो इसे अवैध और दंडनीय बनाता है।

याचिकाकर्ता एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने कहा कि अपराध की विशिष्ट लेबलिंग न केवल इसे रोकेगी बल्कि पत्नियों की शारीरिक अखंडता से संबंधित ‘सेक्स के दांपत्य अधिकार’ की सीमाओं को भी बढ़ावा देगी।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठनों की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने वाली अदालत की घोषणा सभी के लिए समान सम्मान के संवैधानिक लक्ष्य को साकार करने में एक लंबा रास्ता तय करेगी।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा महिलाओं को एक वस्तु के रूप में नहीं माना जा सकता है और शादी ने दुष्कर्म को गैर-दुष्कर्म नहीं बनाया है। यह मामला एक विवाहित महिला के अवांछित जबरन संभोग से इनकार करने के नैतिक अधिकार के बारे में है। यह पत्नी के ना कहने के अधिकार का सम्मान करने और यह मानने के बारे में है कि विवाह अब सहमति को अनदेखा करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है। नंदी ने कहा कि अपवाद को खत्म करने से कोई नया अपराध नहीं बनेगा क्योंकि दुष्कर्म का अपराध पहले से ही कानून में मौजूद है। 

लिखित दलीलों में याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद अनुच्छेद 14, 15, 19(1) (ए), और 21 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की संभोग के लिए एक खुशी से ‘हां’ कहने की क्षमता को छीन लेता है।

उन्होंने कहा कि यह आधार कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण विवाह की संस्था को नष्ट कर देगा, अस्वीकार्य है क्योंकि विवाह संस्थागत नहीं है बल्कि व्यक्तिगत है और कुछ भी विवाह की ‘संस्था’ को नष्ट नहीं कर सकता है सिवाय एक कानून के जो इसे अवैध और दंडनीय बनाता है।

केंद्र ने अपने 2017 के हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है। हालांकि इस महीने की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय को बताया कि केंद्र इस मुद्दे पर रचनात्मक दृष्टिकोण पर विचार कर रहा है और आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन पर कई हितधारकों और अधिकारियों से सुझाव मांगे हैं।

विस्तार

वैवाहिक दुष्कर्म को तब तक माफ किया जाएगा जब तक कि यह एक स्पष्ट अपराध नहीं बन जाता। शादी में सहमति को नजरअंदाज करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है। दो गैर सरकारी संगठनों ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया। उन्होंने कहा वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद संविधान का उल्लंघन करता है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की संभोग के लिए एक खुशी से ‘हां’ कहने की क्षमता को छीन लेता है।

उन्होंने कहा कि यह आधार कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण विवाह की संस्था को नष्ट कर देगा, अस्वीकार्य है क्योंकि विवाह संस्थागत नहीं है बल्कि व्यक्तिगत है और कुछ भी विवाह की ‘संस्था’ को नष्ट नहीं कर सकता है सिवाय एक कानून के जो इसे अवैध और दंडनीय बनाता है।

याचिकाकर्ता एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने कहा कि अपराध की विशिष्ट लेबलिंग न केवल इसे रोकेगी बल्कि पत्नियों की शारीरिक अखंडता से संबंधित ‘सेक्स के दांपत्य अधिकार’ की सीमाओं को भी बढ़ावा देगी।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठनों की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने वाली अदालत की घोषणा सभी के लिए समान सम्मान के संवैधानिक लक्ष्य को साकार करने में एक लंबा रास्ता तय करेगी।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा महिलाओं को एक वस्तु के रूप में नहीं माना जा सकता है और शादी ने दुष्कर्म को गैर-दुष्कर्म नहीं बनाया है। यह मामला एक विवाहित महिला के अवांछित जबरन संभोग से इनकार करने के नैतिक अधिकार के बारे में है। यह पत्नी के ना कहने के अधिकार का सम्मान करने और यह मानने के बारे में है कि विवाह अब सहमति को अनदेखा करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है। नंदी ने कहा कि अपवाद को खत्म करने से कोई नया अपराध नहीं बनेगा क्योंकि दुष्कर्म का अपराध पहले से ही कानून में मौजूद है। 

लिखित दलीलों में याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद अनुच्छेद 14, 15, 19(1) (ए), और 21 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की संभोग के लिए एक खुशी से ‘हां’ कहने की क्षमता को छीन लेता है।

उन्होंने कहा कि यह आधार कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण विवाह की संस्था को नष्ट कर देगा, अस्वीकार्य है क्योंकि विवाह संस्थागत नहीं है बल्कि व्यक्तिगत है और कुछ भी विवाह की ‘संस्था’ को नष्ट नहीं कर सकता है सिवाय एक कानून के जो इसे अवैध और दंडनीय बनाता है।

केंद्र ने अपने 2017 के हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है। हालांकि इस महीने की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय को बताया कि केंद्र इस मुद्दे पर रचनात्मक दृष्टिकोण पर विचार कर रहा है और आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन पर कई हितधारकों और अधिकारियों से सुझाव मांगे हैं।

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