Assembly Elections 2022: एक बड़ा तबका फिर से अपने वोट देने के अधिकार से रह जाएगा वंचित!


कुछ वक्त पहले एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म (Documentary Film) आई थी जिसमें बताया गया था कि किस तरह दुनिया की सबसे बड़ी और जटिल चुनावी प्रक्रिया को भारत में सफलतापूर्वक संचालित किया जाता है. इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में यह भी दिखाया गया कि पहाड़ों के बीच रहने वाले एक मात्र मतदाता के लिए पूरा बूथ लगाया दिया जाता है ताकि वह आसानी से अपना वोट डाल सके. ठीक इसी तरह फिल्म ‘मंडेला’ (Madela) के नायक का एक वोट पाने के लिए दो राजनीतिक दल (Political Paries) अपना पूरा दम लगा देते हैं. कभी गांव के लिए गैरजरूरी समझा जाने वाला शख्स अचानक इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि पूरे गांव के विकास की सड़क उसके घर के आगे से निकलने लगती है. इससे हमें पता चलता है कि वोट की ताकत कितनी है और एक वोट भी कितना कीमती है.

प्रवासी कामगारों की समस्या

पांच राज्यों की विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को अपनी तरफ लुभाने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं. इसी बीच एक बड़ा तबका जिसके हाथों में भारत के विकास की बागडोर है,  वह अपने वोट को देने से वंचित हो जाएगा क्योंकि उसके काम की परिभाषा ऐसा करने की वजह बनेगी. यह तबका और कोई नहीं देश का प्रवासी मजदूर है, जो काम की तलाश में अपने गांवो और घरों को छोड़कर बड़े शहरों में मजदूरी और दूसरे छोटे-मोटे काम करता है. समाजशास्त्रियों के अनुसार पिछले 3 दशकों में इन प्रवासी कामगारों की संख्या में तेजी से इज़ाफा देखने को मिला है. स्वाभाविक तौर पर इसकी वजह आर्थिक स्थिति और काम की कमी का होना है.

प्रवासी मजदूरों के सामने चुनौती

कोरोना महामारी के दौरान पूरे देश के सामने एक आइना रखा गया जिसमें वह तस्वीर साफ थी, जो बताती है कि किस तरह देश का एक बड़ा तबका,  असुरक्षा के मौहाल में जीवन जी रहा है, स्वास्थ्य से लेकर काम और आजीविका को लेकर उनके पास कुछ भी स्थायी नहीं है. खास बात यह है कि अपना सब कुछ छोड़ कर आने वाले इन मजदूरों के पास ना तो अच्छी जिंदगी है और ना ही यह राजनीतिक तौर पर अपनी भागीदारी दे पाते हैं. काम की वजह से अपने घरों से दूर रहने वाले यह कामगार सामाजिक और राजनीतिक तौर पर एक बे-चेहरा व्यक्ति हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि यह चाहकर भी अपने वोट का उपयोग नहीं कर सकते हैं. वोट देने के लिए घर जाना मतलब पैसा लगना और काम का छूटना, यह दोनों ही बातें मंजूर करना इस तबके के लिए संभव नहीं है.

वर्तमान चुनाव प्रक्रिया कानून और कामगार

भारतीय संविधान सभी नागरिकों को देश के किसी भी कोने में जाने और रहने की आजादी देता है. साथ ही दुनिया का सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में मौजूद हर वयस्क को मतदान करने का भी अधिकार देता है. संविधान के अनुच्छेद 326 के मुताबिक देश का कोई भी नागरिक जिसने 18 वर्ष पूरे कर लिए हों वह मत देने का अधिकार रखता है.  वहीं जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1950 मतदाता पंजीकरण की शर्तों का निर्धारण करता है. इसकी धारा 19 के अनुसार मतदान देने का योग्य कोई नागरिक तभी होगा जब वह निर्वाचन क्षेत्र का सामान्य निवासी होगा. इस आधार पर प्रवासी कामगार जिस शहर में काम करते हैं वहां पर ना तो दीर्घ काल और ना ही स्थायी निवासी हैं. ऐसे में इस अधिनियम की धारा 20 के तहत उन्हें मतदान पहचान पत्र नहीं मिल सकता है. यही वजह है कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र को स्थानांन्तरित नहीं कर सकते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि यह संभव नहीं है लेकिन जिन हालातों में यह कामगार रहते हैं ऐसे में इसके लिए ज़रूरी दस्तावेज जुटाना उनके बस का नहीं होता है. कुल मिलाकर भारत के नागरिक को वोट देने के लिए किसी एक जगह का स्थाई निवासी होना ज़रूरी है. और प्रवासी कामगारों के मामले में यह बात संभव नहीं हो पाती है.  ऐसे में उनके मतदान अधिकार पर बात होना बेहद जरूरी हो जाता है.

इसके अलावा कुछ तकनीकी दिक्कतें भी हैं. भारत के मतदान प्रक्रिया में भौतिक तौर पर उपस्थिति जरूरी है.  मतदाता को मतदाता पहचान पत्र और मतदान सूची में नाम ढूंढना होता है. डाक मतपत्र इसका एक अपवाद है. लेकिन वर्तमान में जो प्रक्रिया है वह प्रवासियों को डाक मतपत्र देने की अनुमति नहीं प्रदान करती है. यह सुविधा केवल सरकार और सैन्य कर्मचारियों के लिए ही होती है.

समाधान क्या है

भारतीय चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) को लागू करने पर विचार कर रहा है. इस प्रक्रिया में डाक मतपत्र को इलेक्ट्रानिक तरीके से भेजा जा सकेगा, इससे प्रवासियों के लिए प्रावधान में विस्तार हो सकता है. इसके अलावा प्रॉक्सी मतदान भी एक तरीका हो सकता है जिसका इस्तेमाल वर्तमान में सैन्य दल, पुलिस और सरकारी अधिकारियों के लिए होता है. इस प्रक्रिया के तहत मतदाता अपने क्षेत्र में किसी दूसरे निवासी को अपना वोट देने के लिए अधिकृत कर सकता है. हालांकि इस प्रक्रिया के अपने जोखिम भी हैं.

वर्तमान चुनाव प्रणाली कहती है कि मतदान के लिए स्थायित्व ज़रूरी है. वहीं प्रवासी कामगारों के पास स्थायित्व नहीं हो सकता है. ऐसे में एक बड़ा तबका वोट के अधिकार से वंचित हो रहा है,  उसके लिए समाधान निकालना,  जितना कामगारों के लिए जरूरी है उतना ही हमारे लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक है.

Tags: Assembly elections, Assembly Elections 2022



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