Azam Khan: सियासत को नई धार देने की तैयारी में आजम, ‘मुसलमानों की तबाही…’ बहुत कुछ कहता है उनका यह बयान


सार

सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम खां ने बार-बार जौहर विश्वविद्यालय, मुस्लिमों की शिक्षा, खुद के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने का हवाला दिया। इसके जरिए उन्होंने मुस्लिम शिक्षा की वकालत की और खुद उसे बढावा देने वाला शख्स बताया। यह साबित करने की कोशिश की कि उन्हें मुस्लिमों को शिक्षित बनाने की सजा मिल रही है। इसके सियासी निहितार्थ हैं। 

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सपा के संस्थापक सदस्यों में शुमार आजम खां अब मुस्लिम सियासत को नए सिरे से धार देने की तैयारी में हैं। इसका आगाज विधान सभा सत्र से होगा। इस सत्र में वह कई मायने में सुर्खियों में दिखेंगे। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने इसका इजहार भी कर दिया है।

सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम खां ने बार-बार जौहर विश्वविद्यालय, मुस्लिमों की शिक्षा, खुद के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने का हवाला दिया। इसके जरिए उन्होंने मुस्लिम शिक्षा की वकालत की और खुद उसे बढावा देने वाला शख्स बताया। यह साबित करने की कोशिश की कि उन्हें मुस्लिमों को शिक्षित बनाने की सजा मिल रही है। इसके सियासी निहितार्थ हैं। 

वह नई पीढ़ी से खुद को जोड़ने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मुसलमानों की तबाही के लिए उनका वोट देने का तरीका भी जिम्मेदार है। यह बात इससे पहले मुस्लिम संगठन भी उठा चुके हैं। ऐसे में सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का कहना है कि 26 माह 23 दिन जेल में रहने के बाद आजम खां अपनी सियासी पकड़ को फिर से मजबूती देना चाहते हैं। 

इसके लिए मुसलमानों की शिक्षा पर बात करना जरूरी है। आजम खां खुद के 10 बार से विधायक होने का हवाला देते हैं तो यह अनायास नहीं है। सियासी जानकारों का कहना है कि उन्हें किसी न किसी रूप में इस बात का अहसास है कि उनके जेल जाने के बाद सपा में कई मुस्लिम चेहरे चमके हैं। ऐसे में खुद की ताकत को लेकर वह नया फंडा अपनाने से पीछे नहीं हटेंगे। आजम खां ने खुद पर हुए हमले से लेकर हेलीकाप्टर दुर्घटना और जेल में कोविड की चपेट में आने का जिक्र करके खुद के जिंदा होने की वजह समाज की दुआएं बताई हैं। यह भी उनकी सियासी रणनीति का हिस्सा है।

बजट सत्र में रहेंगे सुर्खियों में
सपा विधायक आजम खां बजट सत्र में सुर्खियों में रहेंगे। उन्हें लेकर सपाइयों ही नहीं विपक्षियों में भी कौतुहल बना हुआ है। वह बतौर सपा विधायक पहले की तरह पार्टी के लिए पग-पग पर बचाव की मुद्रा में रहते हैं अथवा बीच का रास्ता अपनाते हुए शिवपाल की तरफदारी करते हैं, इस रहस्य से भी पर्दा उठेगा। जेल से छूटने के बाद उन्होंन साफ कहा कि जेल में दाल नहीं सिर्फ पानी मिलता है। इससे साफ है कि वजह सदन में अपनी जेल यात्रा का जिक्र करने से भी गुरेज नहीं करेंगे। ऐेसे में उनकी जेल से जुड़े संस्मरण भी अहम होंगे।

अब्दुल्लाह आजम खां के भविष्य को लेकर फिक्रमंद
आजम खां से गहरे ताल्लुख रखने वालों का कहना है कि वह अब्दुल्लाह आजम खां के भविष्य को लेकर फिक्रमंद हैं। अब्दुल्लाह अभी विधायक हैं। ऐसे में कोई भी कदम उठाने से पहले अब्दुल्लाह का चेहरा उनके सामने होता है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचे के बाद वह नई राह पकड़ेंगे, इस पर संशय है। यह भी कहा जा रहा है कि आजम खां सपा के  संस्थापक रहे तो जब भी सपा सरकार बनी, उनके सियासी कद का हमेशा ध्यान रखा गया।

राज्यसभा व विधान परिषद पर भी निगाह
सपा सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा और विधान परिषद पर भी आजम खां की निगाह है। रामपुर से उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दिया है। ऐसे में यहां उप चुनाव होना है। जाहिर है कि आजम खां रामपुर लोकसभा उपचुनाव पर मनपसंद उम्मीदवार चाहेंगे। क्योंकि उपचुनाव में परिवार के किसी व्यक्ति केमैदान में उतरने की संभावना नहीं है। वह राज्यसभा व विधानसभा, विधान परिषद में परिवार या अपने खास व्यक्ति को भेजने की ख्वाहिशमंद हैं।

आजम ने कहा… नहीं जानता इस नफरत का सबब
मैं लंबे समय से जेल में था, पता नहीं राजनीतिक रूप से क्या हुआ। कुछ मजबूरियां रही होंगी (सपा की )। मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन अफसोस है कि कोई बदलाव नहीं आया। अब सोचूंगा कि मैं अपनी वफादारी, कड़ी मेहनत और ईमानदारी में कहां चूक गया कि इस कदर नफरत का सबब बन गया। बहरहाल, मैं उन सभी का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और सहानुभूति दी। चाहे वह सपा, बसपा, कांग्रेस, टीएमसी, या यहां तक कि भाजपा हो, सभी दलों को समाज के कमजोर लोगों के बारे में सोचने की जरूरत है।

विस्तार

सपा के संस्थापक सदस्यों में शुमार आजम खां अब मुस्लिम सियासत को नए सिरे से धार देने की तैयारी में हैं। इसका आगाज विधान सभा सत्र से होगा। इस सत्र में वह कई मायने में सुर्खियों में दिखेंगे। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने इसका इजहार भी कर दिया है।

सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम खां ने बार-बार जौहर विश्वविद्यालय, मुस्लिमों की शिक्षा, खुद के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने का हवाला दिया। इसके जरिए उन्होंने मुस्लिम शिक्षा की वकालत की और खुद उसे बढावा देने वाला शख्स बताया। यह साबित करने की कोशिश की कि उन्हें मुस्लिमों को शिक्षित बनाने की सजा मिल रही है। इसके सियासी निहितार्थ हैं। 

वह नई पीढ़ी से खुद को जोड़ने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मुसलमानों की तबाही के लिए उनका वोट देने का तरीका भी जिम्मेदार है। यह बात इससे पहले मुस्लिम संगठन भी उठा चुके हैं। ऐसे में सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का कहना है कि 26 माह 23 दिन जेल में रहने के बाद आजम खां अपनी सियासी पकड़ को फिर से मजबूती देना चाहते हैं। 

इसके लिए मुसलमानों की शिक्षा पर बात करना जरूरी है। आजम खां खुद के 10 बार से विधायक होने का हवाला देते हैं तो यह अनायास नहीं है। सियासी जानकारों का कहना है कि उन्हें किसी न किसी रूप में इस बात का अहसास है कि उनके जेल जाने के बाद सपा में कई मुस्लिम चेहरे चमके हैं। ऐसे में खुद की ताकत को लेकर वह नया फंडा अपनाने से पीछे नहीं हटेंगे। आजम खां ने खुद पर हुए हमले से लेकर हेलीकाप्टर दुर्घटना और जेल में कोविड की चपेट में आने का जिक्र करके खुद के जिंदा होने की वजह समाज की दुआएं बताई हैं। यह भी उनकी सियासी रणनीति का हिस्सा है।

बजट सत्र में रहेंगे सुर्खियों में

सपा विधायक आजम खां बजट सत्र में सुर्खियों में रहेंगे। उन्हें लेकर सपाइयों ही नहीं विपक्षियों में भी कौतुहल बना हुआ है। वह बतौर सपा विधायक पहले की तरह पार्टी के लिए पग-पग पर बचाव की मुद्रा में रहते हैं अथवा बीच का रास्ता अपनाते हुए शिवपाल की तरफदारी करते हैं, इस रहस्य से भी पर्दा उठेगा। जेल से छूटने के बाद उन्होंन साफ कहा कि जेल में दाल नहीं सिर्फ पानी मिलता है। इससे साफ है कि वजह सदन में अपनी जेल यात्रा का जिक्र करने से भी गुरेज नहीं करेंगे। ऐेसे में उनकी जेल से जुड़े संस्मरण भी अहम होंगे।

अब्दुल्लाह आजम खां के भविष्य को लेकर फिक्रमंद

आजम खां से गहरे ताल्लुख रखने वालों का कहना है कि वह अब्दुल्लाह आजम खां के भविष्य को लेकर फिक्रमंद हैं। अब्दुल्लाह अभी विधायक हैं। ऐसे में कोई भी कदम उठाने से पहले अब्दुल्लाह का चेहरा उनके सामने होता है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचे के बाद वह नई राह पकड़ेंगे, इस पर संशय है। यह भी कहा जा रहा है कि आजम खां सपा के  संस्थापक रहे तो जब भी सपा सरकार बनी, उनके सियासी कद का हमेशा ध्यान रखा गया।

राज्यसभा व विधान परिषद पर भी निगाह

सपा सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा और विधान परिषद पर भी आजम खां की निगाह है। रामपुर से उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दिया है। ऐसे में यहां उप चुनाव होना है। जाहिर है कि आजम खां रामपुर लोकसभा उपचुनाव पर मनपसंद उम्मीदवार चाहेंगे। क्योंकि उपचुनाव में परिवार के किसी व्यक्ति केमैदान में उतरने की संभावना नहीं है। वह राज्यसभा व विधानसभा, विधान परिषद में परिवार या अपने खास व्यक्ति को भेजने की ख्वाहिशमंद हैं।

आजम ने कहा… नहीं जानता इस नफरत का सबब

मैं लंबे समय से जेल में था, पता नहीं राजनीतिक रूप से क्या हुआ। कुछ मजबूरियां रही होंगी (सपा की )। मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन अफसोस है कि कोई बदलाव नहीं आया। अब सोचूंगा कि मैं अपनी वफादारी, कड़ी मेहनत और ईमानदारी में कहां चूक गया कि इस कदर नफरत का सबब बन गया। बहरहाल, मैं उन सभी का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और सहानुभूति दी। चाहे वह सपा, बसपा, कांग्रेस, टीएमसी, या यहां तक कि भाजपा हो, सभी दलों को समाज के कमजोर लोगों के बारे में सोचने की जरूरत है।



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