Beast Review: सुपरस्टार विजय के फैंस भी निराश ही होंगे तमिल फिल्म ‘बीस्ट’ से


तमिल फिल्म के चाहने वाले दलपति विजय से अच्छी तरह वाकिफ हैं. एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले विजय ने जीवन में कई अभाव देखे हैं. पिता फिल्म प्रोड्यूसर थे लेकिन उनका काम कुछ चल नहीं रहा था. विजय की माँ, कॉन्सर्ट में गाने गाती थीं जिसके उनके 100 रुपये मिलते थे. जिस दिन ये पैसे मिलते उस दिन घर में खाने की व्यवस्था हो पाती थी. बचपन में विजय बहुत मस्तीखोर बच्चे थे लेकिन उनकी छोटी बहन विद्या का मात्र 2 साल की उम्र में ही देहांत हो गया और विजय के चेहरे से हंसी, और ज़िन्दगी से नासमझी छिन गयी. पढाई आधी छोड़ कर विजय ने एक्टिंग को पूरी तरह अपना लिया. कभी फैमिली फिल्म, कभी रोमांटिक फिल्म करते करते विजय का करियर काफी उतर चढ़ाव भरा रहा. 2000 के दशक में विजय ने एक्शन फिल्मों में काम करना शुरू किया और विजय का सितारा बुलंदी पर पहुंच गया. आज विजय की फिल्म करने की फीस, तमिल फिल्मों में सबसे ज़्यादा है, रजनीकांत से भी कम से कम तीन गुना ज़्यादा. पिछले कुछ समय से विजय की फिल्में लगातार बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा रही हैं. विजय की एक्टिंग, उनकी यूनिक डांसिंग स्टाइल, बेहतरीन एक्शन और शरारती आँखों से की जाने वाली कॉमेडी की वजह से देश-विदेश में विजय के नाम पर लोग फिल्में देखने पहुँच जाते हैं. उनकी पिछली फिल्म मास्टर का जलवा अभी तक बरकरार है. इसके ठीक विपरीत उनकी हालिया फिल्म “बीस्ट” जो 13 अप्रैल 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज़ की गयी, वो बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा चली नहीं जबकि एडवांस बुकिंग बहुत अच्छी थी. इसी वजह से ये फिल्म अब नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ की गयी है. दर्शक फिल्म विजय की वजह से देखेंगे, विजय का किरदार फिल्म पर छाया हुआ भी है लेकिन फिल्म की स्क्रिप्ट कमज़ोर है.

फिल्म में विजय एक रॉ एजेंट वीरा की भूमिका में हैं जो रॉ से इस्तीफ़ा दे देता है क्योंकि एक गुप्त मिशन में उमर फ़ारूक़ (लिलिपुट) नाम के आतंकवादी को गिरफ्तार करने के चक्कर में एक मासूम बच्ची उसके हाथों अनजाने में मारी जाती है. पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से पीड़ित विजय एक मनोचिकित्सक से ट्रीटमेंट लेता है लेकिन कुछ खास फर्क नहीं पड़ता बल्कि मनोचिकित्सक को एक बड़े मनोचिकित्सक के पास जाना पड़ता है. उमर फ़ारूक़ के साथी चेन्नई में मॉल में घुस जाते हैं और उस पर कब्ज़ा कर के करीब 250 लोगों को बंधक बना लेते हैं. विजय भी उस मॉल में ही होता है. वो छुप कर आतंकवादियों की प्लानिंग को विफल करने लगता है. एक एक करके वो आतंकवादियों को मार गिराता है. उधर एक भ्रष्ट गृह मंत्री की वजह से उमर फ़ारूक़ रिहा कर दिया जाता है. लेकिन विजय उसे पाकिस्तान जा कर ढूंढ लाता है और फिर से गिरफ्तार करवा देता है.

फिल्म की विफलता के कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत फिल्म की स्क्रिप्ट है. फिल्म कश्मीर में शुरू होती है और विजय को शुरू से ही सुपर हीरो बना दिया जाता है क्योंकि वो आसानी से आतंकवादियों को मार गिराता है और उमर फ़ारूक़ को बंदी बना लेता है. इस हमले में एक बच्ची की मौत हो जाती है क्योंकि विजय का अफसर उसे गलत जानकारी देता है. विजय को इस बच्ची से लगाव होता है. विजय को इसका दुःख मनाने का पूरा मौका नहीं मिला और उसके मन में ग्लानि पैदा हुई थी वो फिल्म से नदारद थी और उसकी जगह मनोचिकित्सा की कॉमेडी डाल कर पीटीएसडी का मज़ाक बनाने की कोशिश की गयी है. विजय और पूजा के बीच का प्रेम बड़े ही अजीब तरीके से शुरू होता है और जल्द ही इतना गहरा हो जाता है कि पूजा उसे अपनी कंपनी में नौकरी भी दिलवा देती है. विजय के नौकरी के दिन स्क्रिप्ट में नहीं रखे हैं. सिक्योरिटी एजेंसी में सब गार्ड बूढ़े हैं और उसके ज़रिये हास्य पैदा करके की कोशिश की गयी है. विजय का मॉल में होना अच्छा इत्तेफ़ाक़ है लेकिन आतंकवादियों से उसका बचना और छुपना बड़ा कमज़ोर सीन बना है. फ़ोन के जैमर लगे हैं लेकिन विजय का फ़ोन बजता है क्योंकि वो रॉ का एजेंट बना है. उसके हैंडलर के रूप में सेल्वाराघवन (अभिनेता धनुष के भाई जो स्वयं एक सफल फिल्म निर्देशक हैं) का उन्हें संपर्क करना भी आधा अधूरा है क्योंकि मॉल में कौन कौन है ये पता लगाना संभव नहीं है. विजय एक चाकू की मदद से आतंकवादियों को मारने की शुरुआत करता है लेकिन वो उनकी बंदूकों इत्यादि को हाथ भी नहीं लगता. मंत्री की बेटी अपर्णा, आइपीएस बनना चाहती है लेकिन बंधक है। विजय जब उसे छुड़ा लेता है तब भी उसे बन्दूक थमा कर मदद करने के लिए नहीं कहता। कहानी के क्लाइमेक्स में विजय फाइटर जेट मिग भी उड़ाता है, पाकिस्तान के एफ 16 विमानों को मारने के लिए वो सरकार से दसॉल्ट रफाएल विमानों को भेजने की दरख्वास्त करता है. फिल्मों में कल्पना की उड़ान होती है लेकिन वो उड़ान इतनी ऊंची नहीं होती कि देखने वालों को समझ आना बंद हो जाये.

विजय का रोल तो सोच समझ कर लिखा गया है. लेखक निर्देशक नेल्सन अपनी फिल्में खुद ही लिखते हैं. उनकी आखिरी फिल्म डॉक्टर, जो कि बहुत सफल हुई थी, कमज़ोर स्क्रिप्ट की मारी थी. हालाँकि विजय को नेल्सन की स्क्रिप्ट बहुत पसंद आयी इसलिए उन्होंने ये फिल्म साइन की थी. फिल्म पूरी तरह विजय का महिमा मंडन करती है जबकि इसके पहले किसी भी फिल्म में विजय की फिल्मों में विजय को लार्जर दैन लाइफ नहीं बताया गया था. विजय की खूबसूरती इस बात में रहती है कि वो हर रोल ऐसा करते हैं कि दर्शक उन पर विश्वास करते हैं. बीस्ट में ऐसा नहीं हो पाया है. एक्शन और स्टंट लाजवाब है, बेहतरीन हैं लेकिन तमिल सिनेमा में इस से बेहतर स्टंट देखने को मिल चुके हैं. एक रॉ एजेंट का सुपर ह्यूमन की तरह आतंकवादियों से भिड़ना या मिग हवाई जहाज़ उड़ाना, दर्शकों को हज़म नहीं हुआ. ये हवाई जहाज़ कहां से आया, ये बात भी स्क्रिप्ट में नहीं है. विजय के साथ पूजा हेगड़े हीरोइन हैं जो दो गानों और कुछ आधा दर्ज़न सीन की ही मेहमान हैं. पूजा को अभिनय करने के लिए कोई स्कोप दिया ही नहीं गया बस अरैबिक कुथु और जॉली ओ जिमखाना गानों में उनका डांस ज़बरदस्त है. पूजा खूबसूरत अभिनेत्री हैं लेकिन सिर्फ ग्लैमर कोशंट के लिए फिल्म में थीं. अपर्णा दास का रोल छोटा और महत्वहीन था. सेल्वाराघवन एक निर्देशक के रूप में सफल हैं लेकिन बतौर अभिनेता उन्हें काम नहीं आता. लिलिपुट और अंकुर विकल का रोल भी छोटा ही था. कुछ खास करने को नहीं था.

फिल्म का हीरो सुपर हीरो क्यों बनाया जाना चाहिए, ये सवाल हम दर्शक अभी तक पूछने से घबराते हैं. पिछले कुछ सालों में अच्छी फिल्मों और वेब सीरीज में हमें रॉ या आर्मी के एजेंट्स के काम करने के तरीके का काफी रीयलिस्टिक अंदाजा लग गया है ऐसे में रॉ एजेंट का इस तरह की एक्शन करना, समझ से बाहर है. जुड़वाँ भाइयों अंबुमणि और अरिवुमणि ने एक्शन पर बहुत अच्छा काम किया है. विजय ने भी इन सीक्वेंसेस को बखूबी निभाया है. अंबु और अरिवु के साथ विजय के पहली फिल्म है. किसी और के हिस्से कोई एक्शन आयी नहीं है, आतंकवादी तो सिर्फ विजय के हाथों पिटने या मरने के लिए फिल्म में रखे गए हैं. फिल्म का स्केल बड़ा है. मॉल के दृश्य फिल्माने के लिए पूरा सेट बनाया गया था. फिल्म का संगीत कोलावेरी वाले अनिरुद्ध का है जिनकी निर्देशक नेल्सन के साथ तीसरी और विजय के साथ भी तीसरी फिल्म है. फिल्म का एक गाना अरैबिक कुथु बहुत लोकप्रिय हुआ, और इंस्टाग्राम पर रील्स की भरमार देखी गयी. फिल्म में गानों की गुंजाईश पैदा की जानी चाहिए थी लेकिन रोमांटिक ट्रैक की लम्बाई बहुत कम थी इसलिए सिर्फ दो गाने थे. तीसरा गाना बीस्ट फिल्म के लिए थीम सॉन्ग जैसा था.

फिल्म पूरी तरह विजय पर केंद्रित है. विजय छाये हुए हैं. लेकिन विजय का सुपरस्टार का दर्ज़ा उन्हें फिल्म की कहानी से बड़ा नहीं बना सकता. यदि पटकथा कमजोर हो तो अच्छे से अच्छा हीरो भी फिल्म को नहीं बचा सकता. विजय के फैंस फिल्म तो जरूर देखेंगे लेकिन अजीब से पटकथा से निराश होंगे. विजय की एक्शन भरपूर देखने को मिलेगा लेकिन उनकी कॉमेडी और स्टारडम गायब है. बस अंत में पुरानी फिल्मों के हिट डायलॉग डाल कर विजय की लोकप्रियता को थोड़ा और भुनाने की कोशिश है लेकिन ये सब बहुत देर के बाद आता है. बीस्ट में बीस्ट जैसा कुछ नहीं है, हाँ एंटरटेनमेंट है तो फिल्म देखी जा सकती है. हिंदी डब “रॉ” के नाम से ही नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Film review, Netflix, Pooja Hegde

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