भोजपुरी सिनेमा में दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, पवन सिंह, खेसारीलाल यादव, राकेश मिश्रा, प्रदीप पाण्डेय ‘चिंटू’ यश मिश्रा, अरविन्द अकेला ‘कल्लू’, प्रमोद प्रेमी, रितेश पांडे, आदित्य ओझा ये कुछ नाम हैं जिनकी फिल्मों का इनके प्रशंसक आज भी इंतजार करते हैं। लेकिन, सिनेमाघरों को अब इनकी फिल्मों का वैसा इंतजार नहीं होता, जैसा कोरोना संक्रमण काल से पहले हुआ करता था। बीते दो साल में देश में जिस किसी एक सिनेमा का पतन सबसे ज्यादा हुआ है, वह भोजपुरी सिनेमा है। भोजपुरी सिनेमा में इन दिनों करीब 15 से 20 हीरो काम कर रहे हैं। इनमें से हर किसी की औसतन पांच से छह फिल्में बीते दो साल में बनकर तैयार हैं। भोजपुरी सिनेमा के जानकार बताते हैं कि आज की तारीख में सौ से ज्यादा भोजपुरी फिल्में बनकर तैयार हैं जिनको न सिनेमाघर मिल रहे हैं और न ही वितरक।
बिहार में टूट रहे सिनेमाघर
भोजपुरी सिनेमा की वर्तमान हालत पर विचार करने के लिए ‘अमर उजाला’ ने भोजपुरी फिल्मों के सबसे बड़े वितरण क्षेत्र बिहार का जायजा लेने की कोशिश की। पता चला कि राज्य के तमाम सिनेमा हॉल टूटकर कोल्ड स्टोरेज या शॉपिंग मॉल बन चुके हैं। कुछ सिनेमा हॉल बाकी बचे भी हैं तो उनका फिर से सौंदर्यीकरण करके वहां साउथ की डब फिल्में रिलीज होने लगी हैं। बिहार में ही बहुत कम सिनेमा हॉल बचे हैं जो भोजपुरी फ़िल्में लगाते हैं। और, इसमें भी किसी तरह भोजपुरी के बड़े स्टार्स की फिल्मे अगर रिलीज हो भी रही हैं तो दर्शक फिल्मो को देखने नहीं आ रहे।
दर्शकों ने बनाई दूरी
पटना में भोजपुरी फिल्मों का सबसे बड़ा बाजार है। यहीं से भोजपुरी फिल्मों का पूरा कारोबार चलता है। लेकिन, ये बाजार भी अब सूना सूना है। पटना में भोजपुरी सिनेमा के सबसे बड़े वितरक रहे अभय सिन्हा अब हिंदी सिनेमा में अपना दबदबा बनाने की तैयारी में हैं। कभी देश में निर्माताओं की सबसे बड़ी संस्था रही इम्पा के वह हाल ही में अध्यक्ष भी बन गए हैं। उनके दफ्तर के करीब के ही एक वितरक कहते हैं, ‘बड़े सितारों की फिल्मे किसी तरह रिलीज तो हो रही हैं लेकिन उन्हें देखने दर्शक थिएटर में नहीं आ रहे। छोटे बजट की फिल्मों के निर्माता तो फिल्म रिलीज करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं।’
सैटेलाइट पर सिमटता बाजार
भोजपुरी सिनेमा का बाजार धीरे धीरे सिनेमाघरों से सिमट कर टीवी चैनलों और यूट्यूब पर पहुंच रहा है। इसके चलते भोजपुरी फिल्मों का बजट भी सिमटकर 30-40 लाख तक आ गया है। दर्शकों क इन दिनों नई से नई भोजपुरी फिल्में सैटेलाइट और यूट्यूब पर मुफ्त में मिल रही हैं। और, यही वजह है कि भोजपुरी सिनेमा को सिनेमाघरों में दर्शक नहीं मिल रहे। पवन सिंह को लेकर कई फिल्में निर्देशित कर चुके भोजपुरी के निर्देशक बताते हैं, ‘भोजपुरी फिल्में पहले से बहुत ज्यादा बन रही हैं लेकिन थिएटर में रिलीज नहीं हो पा रही हैं। लोग अब थिएटर को ध्यान में रख कर फिल्में बना भी नहीं रहे हैं। अधिकतर निर्माता अब सैटेलाइट के लिए फिल्में बना रहे हैं। पहले भोजपुरी में एक करोड़ से ढाई करोड़ के बजट में फिल्मे बन रही थीं। अब वही फिल्मे 20 से 50 लाख में सिर्फ सैटेलाइट के लिए बन रही हैं। लोग उस स्तर की फिल्में बना ही नहीं रहे हैं जिन्हें देखने दर्शक थिएटर में पैसे लगाकर आए।’
फीकी पड़ रही सितारों की चमक
फिल्म प्रचारक से डिस्ट्रीब्यूटर और फिर निर्माता बने भोजपुरी फिल्मों के एक कारोबारी कहते हैं, ‘जब भी किसी इंड्रस्ट्री के बड़े स्टार नहीं चलते हैं तो लगता है कि इंड्रस्ट्री बैठ रही है। भोजपुरी में भी ऐसा ही हो रहा है। इस समय भोजपुरी के दो बड़े स्टार पवन सिंह और खेसारीलाल यादव की फिल्में थिएटर में नहीं चल रही हैं। इन लोगों को थिएटर में देखने की दिलचस्पी भी अब दर्शकों में नजर नहीं आती। इसके जिम्मेदार ये लोग खुद ही हैं। एक दूसरे से गाली गलौज करना, हर दूसरे दिन फेसबुक पर लाइव करना और यूट्यूब पर गानों की अति कर देने से इन सितारों की चमक फीकी पड़ चुकी है। ये हर समय सोशल मीडिया पर इफरात में उपलब्ध हैं तो फिर सिनेमाघरों में इन्हें टिकट लेकर देखने कोई क्यों जाएगा?’