Brave Story: उत्तराखंड के इस ‘युवराज’ ने भी दी कैंसर को मात, बोला- हमारी जिंदगी का एक ही मकसद…


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उत्तराखंड की टीम ने इस बार रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया। बोर्ड में कई समस्याओं के बावजूद खिलाड़ियों का मनोबल नहीं टूटा और उन्होंने नॉकआउट राउंड तक का सफर तय किया। टीम को इस स्तर तक पहुंचाने में 22 साल के युवा बल्लेबाज कमल सिंह कनिहाल का अहम योगदान है। उन्होंने आठ पारियों में 229 रन बनाए। उत्तराखंड को क्वार्टरफाइनल में मुंबई के खिलाफ 725 रनों से हार का सामना करना पड़ा।

2020 में महाराष्ट्र के खिलाफ अपने डेब्यू प्रथम श्रेणी मैच में कमल ने शतकीय पारी खेली थी। उन्होंने ओपनिंग करते हुए 101 रन बनाए थे। इसके बाद दूसरी पारी में 57 रन बनाए थे। 2020-21 विजय हजारे ट्रॉफी में टीम के लिए कमल ने सबसे ज्यादा रन बनाए थे। उनकी चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि क्योंकि उन्होंने 14 साल की उम्र में कैंसर से लड़ाई लड़ी। उसे हराया और फिर क्रिकेट में अपना करियर बनाया।

बुखार और कमजोरी से शुरू हुई थी कहानी
2014 में कमल का क्रिकेट खेलने का सपना टूटने वाला था। 2014 के अंत में उन्हें अस्पताल के लगातार चक्कर लगाने पड़े। कमल को बुखार और शरीर में कमजोरी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “हमें पता चला कि प्लेटलेट काउंट बहुत कम था। डॉक्टर ने सुझाव दिया कि हम इलाज के लिए नोएडा (700 किलोमीटर से अधिक दूर) जाएं। उन्होंने हमें दिल्ली के पास किसी बेहतर अस्पताल में दिखाने के लिए कहा।”

पढ़ाई और क्रिकेट हो गई थी बंद
स्टेज टू ब्लड कैंसर का पता चलने के बाद कमल की पढ़ाई बंद हो गई। क्रिकेट खेलना भी बंद हो गया। कमल ने आगे कहा, “उस उम्र में मुझे बीमारी की भयावहता का एहसास नहीं था। ऐसा लग रहा था कि यह सिर्फ एक बीमारी थी, जिसे इलाज की आवश्यकता थी, जो छह महीने तक चलेगी। वापस जाकर क्रिकेट खेलने की सोच ने मुझे हिम्मत दी। मैंने कैंसर को हराया क्योंकि मैं क्रिकेट खेलना चाहता था।”
सेना में सुबेदार थे कमल के पिता
कमल ने आगे बताया, “बचपन में हम गलत चीज नहीं देखते, सिर्फ अच्छी चीज देखते हैं। मैं केवल वापस आने और खेलने के लिए उत्सुक था। जल्द से जल्द फिट होने के बारे में सोच रहा था। उस समस्या के बारे में नहीं सोच रहा था जिसका मैं सामना कर रहा था।” कमल के पिता भारतीय सेना में रिटायर सुबेदार हैं। इसलिए इलाज का खर्चा कम हो गया। इससे उन्हें मदद मिली। कमल को यह नहीं बताया गया था कि उन्हें कैंसर है। 

कमल ने कहा,  “मैं बहुत छोटा था। यहां तक कि मेरे परिवार ने भी नहीं दिखाया कि वे कितने डरे हुए और चिंतित थे। वास्तव में उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि मुझे क्या इलाज दिया जा रहा था। जब मुझे पता चला कि यह कैंसर है, तब तक मैं इलाज का आदी हो गया था। अच्छी बात यह थी कि मैं छोटा था।” कमल का इलाज दिसंबर 2014 से जून 2015 तक चला।

गंभीर के प्रशंसक कमल
कमल भारत के पूर्व ओपनर गौतम गंभीर के प्रशंसक के रूप में बड़े हुए हैं। कमल को कैंसर के दौरान युवराज सिंह का उदाहरण दिया जाता था।  डॉक्टर से लेकर परिवार के सदस्यों तक सभी के मुंह से युवराज सिंह की ही कहानी सुनने को मिलती थी। अंत में कमल ने भी कैंसर को हरा दिया और अब अपने पसंदीदा खेल क्रिकेट को खेल रहे हैं।

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उत्तराखंड की टीम ने इस बार रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया। बोर्ड में कई समस्याओं के बावजूद खिलाड़ियों का मनोबल नहीं टूटा और उन्होंने नॉकआउट राउंड तक का सफर तय किया। टीम को इस स्तर तक पहुंचाने में 22 साल के युवा बल्लेबाज कमल सिंह कनिहाल का अहम योगदान है। उन्होंने आठ पारियों में 229 रन बनाए। उत्तराखंड को क्वार्टरफाइनल में मुंबई के खिलाफ 725 रनों से हार का सामना करना पड़ा।

2020 में महाराष्ट्र के खिलाफ अपने डेब्यू प्रथम श्रेणी मैच में कमल ने शतकीय पारी खेली थी। उन्होंने ओपनिंग करते हुए 101 रन बनाए थे। इसके बाद दूसरी पारी में 57 रन बनाए थे। 2020-21 विजय हजारे ट्रॉफी में टीम के लिए कमल ने सबसे ज्यादा रन बनाए थे। उनकी चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि क्योंकि उन्होंने 14 साल की उम्र में कैंसर से लड़ाई लड़ी। उसे हराया और फिर क्रिकेट में अपना करियर बनाया।

बुखार और कमजोरी से शुरू हुई थी कहानी

2014 में कमल का क्रिकेट खेलने का सपना टूटने वाला था। 2014 के अंत में उन्हें अस्पताल के लगातार चक्कर लगाने पड़े। कमल को बुखार और शरीर में कमजोरी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “हमें पता चला कि प्लेटलेट काउंट बहुत कम था। डॉक्टर ने सुझाव दिया कि हम इलाज के लिए नोएडा (700 किलोमीटर से अधिक दूर) जाएं। उन्होंने हमें दिल्ली के पास किसी बेहतर अस्पताल में दिखाने के लिए कहा।”

पढ़ाई और क्रिकेट हो गई थी बंद

स्टेज टू ब्लड कैंसर का पता चलने के बाद कमल की पढ़ाई बंद हो गई। क्रिकेट खेलना भी बंद हो गया। कमल ने आगे कहा, “उस उम्र में मुझे बीमारी की भयावहता का एहसास नहीं था। ऐसा लग रहा था कि यह सिर्फ एक बीमारी थी, जिसे इलाज की आवश्यकता थी, जो छह महीने तक चलेगी। वापस जाकर क्रिकेट खेलने की सोच ने मुझे हिम्मत दी। मैंने कैंसर को हराया क्योंकि मैं क्रिकेट खेलना चाहता था।”



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